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पर्व के दोहे

12:33 PM Aug 07, 2022 IST
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राधेश्याम शुक्ल

आया सावन- ‘डाकिया’, घर-आंगन गाम।

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‘पीहर’ की चिट्टी लिये, ‘धी-बेटी’ के नाम॥

पाकर बहनें, बेटियां, पीहर की सौगात।

‘सुधियों’ से करने लगीं, ‘जनम-जनम’ की बात॥

अम्मा ने ‘आंसू’ लिखे, लिखा पिता ने, ‘नेह’।

‘भैया-भाभी’ ने लिखा, ‘मोह-माया’ का मेह॥

भाभी ने दीं चूड़ियां, माथे का सिन्दूर।

और कहा है—ननद जी, सुख भोगो भरपूर॥

चना-चबेना, कोथली और साज शृंगार।

प्यारी बहिना के लिए, भैया का उपहार॥

‘मेहंदी’ चहकी हाथ में, खिला ‘महावर’ पांव।

‘कंजली’ झूले पर चढ़ी, घनी नीम की छांव॥

बहन-बेटियां ‘दर्द’ हैं, ‘मछरी’ की औकात।

अंगारों के बीच में, ये ‘पानी’ की जात॥

पिंजरे की ‘मैना’ कहे, बहे पसीज-पसीज।

‘सावन’ फिर-फिर आइयो, ले हरियाली तीज॥

जाना बादल ‘वीरना’, तुम पीहर के देश।

कहना मां की ‘पीर’ से, बेटी का सन्देश॥

बना रहे ‘पीहर’ सदा, सुखी रहे दहलीज।

अम्मां-बाबूजी सहित, भैया और ‘भतीज’॥

भाभी, मुझे न भूलना, रखना सदा दुलार।

मैं पंछी पिंजरे बसी, सात समन्दर पार॥

‘राखी’ तू बंध जाइयो, ‘बिरना जी’ के हाथ।

करियो मंगलकामना, बना रहे यों साथ॥

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