फैसले से स्तब्ध देश
सारा देश कतर की एक अदालत के उस फैसले से स्तब्ध है, जिसमें आठ पूर्व नौसेना कर्मियों को मौत की सजा दी गई है। निस्संदेह, इस संवेदनशील मामले का निपटारा भारत सरकार के लिये बड़ी चुनौती है। यह मोदी सरकार की अग्नि परीक्षा होगी क्योंकि कतर के साथ भारत के रिश्ते उतने मधुर नहीं हैं जितने यूएई व सऊदी अरब के साथ हैं। फलत: भारत के लिये यह बड़ी डिप्लोमैटिक चुनौती बन गई है। दरअसल, जिन आठ लोगों को कतर में फांसी दी गई है, वे सभी भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी हैं और एक डिफेंस सर्विसेज देने वाली ओमान की कंपनी के लिये काम कर रहे थे। जिन्हें गत वर्ष 30 अगस्त को गिरफ्तार किया गया है। हालांकि, कतर सरकार ने सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट नहीं किया है कि इन्हें किस अपराध में गिरफ्तार करके फांसी की सजा दी गई है। इनके परिवारों को भी लगाये गए आरोपों की जानकारी नहीं दी गई है। वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यह कोई ऐसा संवेदनशील मामला है जिसे दोनों देश उजागर नहीं करना चाहते। दरअसल, नौसेना कर्मियों पर इस साल मार्च में मुकदमा शुरू हुआ था और कतर स्थित भारतीय दूतावास इस मामले में कार्रवाई करता रहा है। बहरहाल, अब मामले में केंद्र सरकार से तुरंत हस्तक्षेप करने का दबाव पीड़ितों के परिजनों की तरफ से बढ़ रहा है। वहीं राजनीतिक दल भी इस मामले पर टिप्पणी करने लगे हैं। पीड़ितों के परिजन सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि केंद्र अपने राजनयिक व राजनीतिक प्रभाव से पूर्व नौसेना कर्मियों को राहत दिलाने का प्रयास करे। ऐसा नहीं है कि विगत में मोदी सरकार ने इस दिशा में प्रयास नहीं किये, लेकिन कतर इस मामले में राहत देने को तैयार नहीं था। उसे सऊदी अरब व यूएई से बेहतर होते भारत के रिश्ते रास नहीं आते। वहीं दूसरी ओर वह ईरान व तुर्की के प्रभाव में अधिक बताया जाता है।
उल्लेखनीय है कि ये पूर्व नौसेना कर्मी एक ओमानी नागरिक की कंपनी दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजिज एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज के लिये कतर में सेवाएं दे रहे थे। कतर की सुरक्षा एजेंसी ने इस कंपनी के मालिक को भी गिरफ्तार किया था, लेकिन उसे पिछले साल के अंत में छोड़ दिया गया था। यह कंपनी कतर की एक कंपनी के लिये सेवाएं उपलब्ध करा रही थी। उल्लेखनीय है कि मौत की सजा पाने वालों में एक पूर्व नौसेना कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, जो इस ओमानी कंपनी में प्रबंध निदेशक थे, भी शामिल हैं। उन्हें विगत में भारत व कतर के बीच संबंध सुधारने में योगदान हेतु प्रवासी भारतीय सम्मान दिया गया था। बहरहाल, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि कतर की खुफिया एजेंसी स्टेट सिक्योरिटी ब्यूरो ने इन पूर्व नौसेना कर्मियों को क्यों गिरफ्तार किया है। जिसकी मुख्य वजह यह है कि आरोप सार्वजनिक नहीं हुए हैं। जिसकी वजह से सजा पाने वाले पूर्व अधिकारियों के परिजन खासे चिंतित हैं। इनमें से कई वरिष्ठ नागरिक होने के साथ कई तरह के उम्र से जुड़े रोगों से जूझ रहे हैं। उनका कहना है कि इन लोगों ने लंबे समय तक नौसेना अधिकारियों के रूप में देश की सेवा की है, तो जब इन पर संकट आया है तो देश को प्राथमिकता के आधार पर इन्हें राहत देने का प्रयास करना चाहिए। बहरहाल, देश में धीरे-धीरे इस मुद्दे पर जनदबाव बढ़ेगा, तो चुनावी मौसम में सरकार को भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। विषय की संवेदनशीलता को देखते हुए केंद्र सरकार की भी कोशिश होगी कि राजनयिक स्तर पर या मध्यपूर्व के मित्र देशों की मदद से गिरफ्तार लोगों की जान बचाने का प्रयास किया जाए। वहीं दूसरी ओर कतर में करीब नौ लाख भारतीय कार्यरत हैं। ऐसे में कतर से संबंध खराब करके भारत सरकार उनके लिये मुश्किल नहीं खड़ी कर सकती। बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि आरोप किस प्रकृति के हैं। कहा जा रहा है कि शरिया कानूनों पर चलने वाली कतर की अदालत शायद ही अपने फैसले से पीछे हटे, लेकिन उम्मीद की किरण कतर के अमीर को लेकर है,जो विशेष परिस्थितियों में क्षमादान देने की शक्ति रखते हैं।