विफल प्रयोग में सुधार
अब केंद्र सरकार ने शिक्षा नीति में उस फैसले में सुधार किया है, जिसमें पांचवीं व आठवीं में किसी छात्र को फेल न करके, अगली कक्षा में जाने का सरल रास्ता दे दिया गया था। कहा जा रहा था कि इस फैसले के चलते छात्रों द्वारा परीक्षाओं को गंभीरता से न लेने से शैक्षिक गुणवत्ता में गिरावट देखी जा रही थी। छात्रों को लगने लगा था कि जब वे फेल नहीं होंगे और अगली कक्षा में बिना पढ़े चले जाएंगे, तो पढ़ना किस लिए। जिसके चलते शैक्षिक स्तर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही थी। दरअसल, पहले सरकार ने इस मुद्दे पर संवेदनशील व मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए छात्रों के प्रति उदार रवैया अपनाया। यह माना गया कि छात्रों को फेल करने से उनके आत्मसम्मान को ठेस लगती है। कतिपय स्थानों पर फेल होने के तनाव में आत्महत्या तक के मामले प्रकाश में आए थे। यही वजह थी कि विद्यार्थियों के स्वाभाविक विकास व उनका मनोबल ऊंचा रखने के लिये उन्हें फेल न करने की नीति अपनायी गई। दरअसल, नो डिटेंशन नीति लागू करने का मकसद यही रहा कि वंचित व पिछड़े समाज के छात्रों को स्कूलों में अधिक से अधिक दाखिला पाने का मौका मिले। यह नीति राइट टू एजुकेशन का हिस्सा थी। दरअसल, इस नीति का मकसद स्कूलों में बेहतर वातावरण बनाना था जिससे बच्चे बिना किसी भय के नियमित स्कूल आते रहें। उन्हें फेल न करने की नीति का मकसद यह भी था कि वे फेल होने पर शर्म महसूस न करें। किसी तरह का तनाव न झेलें। लेकिन इस कोशिश का परिणाम यह हुआ कि बड़ी संख्या में छात्र पढ़ाई से विमुख होने लगे। उनके मन से परीक्षा की गंभीरता का भाव जाता रहा। यही वजह थी कि जुलाई 2018 में राइट टू एजुकेशन को संशोधित करने हेतु लोकसभा में बिल पेश किया गया। इसमें स्कूलों में लागू नो डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने का विचार किया गया। कालांतर 2019 में राज्य सभा में भी यह बिल पारित हुआ।
दरअसल, संशोधित नीति के अंतर्गत परीक्षाओं में फेल होने वाले विद्यार्थियों के लिये दो माह के भीतर पुन: परीक्षा की व्यवस्था की गई। कहा गया कि पांचवीं व आठवीं के विद्यर्थियों के लिये नियमित परीक्षा करायी जाए। दरअसल, संसद में संशोधन बिल पारित होने के उपरांत राज्य सरकारों को छूट दी गई थी कि वे नो डिटेंशन नीति को हटा सकते हैं। इसे राज्यों के विवेक पर छोड़ा गया क्योंकि शिक्षा राज्यों का विषय होता है। बहरहाल, अब केंद्र सरकार ने शैक्षिक सुधारों की दिशा में कदम उठाते हुए नई नीति के तहत केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों तथा सैनिक स्कूलों में नो डिटेंशन नीति को खत्म कर दिया है। परीक्षा में अनुत्तीर्ण विद्यार्थियों को एक और परीक्षा का मौका तो दिया जाएगा, लेकिन उन्हें स्कूल से निकाला नहीं जाएगा। दुबारा फेल होने पर वे उसी कक्षा में फिर से पढ़ाई करेंगे। निस्संदेह, फैसले के बाद छात्र इम्तिहानों को गंभीरता से लेने पर परीक्षाओं की गरिमा भी बरकरार रहेगी। दरअसल, सरकार की कोशिश रही है कि नई शिक्षा नीति उदार बनी रहे और इससे उनकी सीखने की प्रवृत्ति का विकास हो सके। यहां उल्लेखनीय है कि पहले ही बीस राज्य व केंद्रशासित प्रदेश नो डिटेंशन पॉलिसी को समाप्त कर चुके हैं। लेकिन यहां जरूरी है कि स्कूलों में शिक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूती दी जाए। इसके लिये आवश्यक है कि शिक्षा में छात्रों की रुचि बढ़ाने वाले पाठ्यक्रम लागू हों, व्यक्तिगत शिक्षण दृष्टिकोण तथा व्यापक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम को बढ़ावा मिले। ऐसे में यदि छात्रों को प्रणालीगत विपलताओं का त्रास झेलना पड़े तो यह उनके प्रति अन्याय करने जैसा ही होगा। चिंता व्यक्त की जाती रही है कि नये फैसले से हाशिये पर रहने वाले समुदायों के बच्चों के साथ न्याय नहीं होगा। उनमें फेल होने के डर से स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है। जिसकी आशंका तमिलनाडु जैसे राज्य पहले ही जता चुके हैं। चिंता जतायी जाती रही है कि ऐसे प्रयासों से शिक्षा के अधिकार की रचनात्मक पहल बाधित हो सकती है।