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सजायाफ्ता नुमाइंदे

06:30 AM Sep 18, 2023 IST

देश की राजनीति में बढ़ती अपराधीकरण की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के बाबत दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए देश की शीर्ष अदालत ने एमिकस क्यूरी नियुक्त कर सुझाव मांगे थे। अदालत मित्र ने इस बाबत सुझाव दिया है कि गंभीर आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गये राजनेताओं पर ताउम्र चुनाव लड़ने की पाबंदी लगनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि फिलहाल यह अवधि दोष सिद्ध होने पर महज छह वर्ष है। इस तर्क के पक्ष में दलील दी गई है कि जब ऐसे किसी मामले में सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त कर दिया जाता है तो राजनेताओं को छूट क्यों दी जाती है? उन्होंने इसे संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार का अतिक्रमण बताया। उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया इस बाबत दायर की गई याचिका, जिसमें आपराधिक मामलों में राजनेताओं पर शीघ्र मुकदमा चलाने की मांग की गई थी, अदालत मित्र की भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। उनका तर्क है कि दोषी ठहराए गये सांसदों को उनकी रिहाई के छह साल बाद चुनावी राजनीति में फिर से सक्रिय होने देना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है। निस्संदेह, किसी सभ्य समाज में कानून व्यवस्था का यही तकाजा है कि बलात्कार, हत्या, मादक पदार्थों की तस्करी, भ्रष्टाचार और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने जैसे गंभीर अपराधों में दोषी ठहराए गये व्यक्ति को चुनाव लड़ने से स्थायी रूप से रोक दिया जाना चाहिए। भले ही वह रिहा हो गया हो। इस जटिल समस्या का नैतिक पक्ष भी यही कहता है। इसके अतिक्रमण का समाज में अच्छा संदेश कदापि नहीं जायेगा।
दरअसल, शीर्ष अदालत में प्रस्तुत रिपोर्ट में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-8 पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसमें कहा गया है कि किसी दोषी राजनेता की अयोग्यता उसकी रिहाई के छह साल तक ही बढ़ाई जा सकती है। निस्संदेह यह एक कानूनी खामी है। जो सही मायनों में राजनीति को अपराधमुक्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा है। इस गंभीर व जटिल समस्या के समाधान के लिये इस बाधा को प्राथमिकता के आधार पर दूर करने की जरूरत है। वहीं दूसरी ओर ऐसे सांसदों और विधायकों से जुड़े मामलों में तेजी लाना भी जरूरी है। ताकि वे जिस भी राजनीतिक दल से जुड़े हैं, उनका दल अदालत के फैसले के आधार पर आरोपी राजनेता की उम्मीदवारी या पद पर बने रहने संबंधी निर्णय ले सकें। निस्संदेह, इससे मतदाताओं को चुनाव के दौरान मौजूद विकल्प चुनने में सहायता मिल सकती है। एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि ऐसे मामलों के लिये स्थापित विशेष अदालतों को संबंधित उच्च न्यायालयों को लंबित मामलों और निपटान की मासिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये निर्देशित किया जाये। साथ ही लंबे समय से लंबित मामलों में देरी के कारण को भी निर्दिष्ट किया जाना चाहिए। निस्संदेह, यदि इन सभी उपायों का गंभीरता से क्रियान्वयन किया जाये तो देश की राजनीति को साफ-सुथरा बनाने में महत्वपूर्ण मदद मिल सकती है। जो कि स्वस्थ लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त भी है।

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