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फिल्मों पर विवाद पैसों की बरसात

01:36 PM Jun 24, 2023 IST
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हेमंत पाल

इसे आश्चर्यजनक घटना ही माना जाना चाहिए कि किसी फिल्म के विवाद ने राजनीति जैसे सदाबहार गरमागरम मुद्दे को भी पीछे छोड़ दिया। अभी देशभर में कोई भी राजनीति से जुड़े किसी मुद्दे पर बात नहीं कर रहा। हर तरफ सिर्फ एक फिल्म की ही चर्चा है। उसके डायलॉग, कहानी के प्रस्तुतिकरण और यहां तक कि चरित्रों की वेशभूषा पर भी बहस चल पड़ी। यह फिल्म है ‘आदिपुरुष’ जो अपनी रिलीज के पहले शो से ही विवादों में आ गई। फिर भी फिल्म के प्रति दर्शकों का आकर्षण उमड़ रहा है और विवाद भी आसमान छू रहा है। फिल्म ने कमाई के मामले में भी सबको पीछे छोड़ दिया। जबकि, देखा गया है कि फिल्मों के विवाद उसे दर्शकों से महरूम कर देते हैं, पर ‘आदिपुरुष’ के साथ ऐसा नहीं हुआ। फिल्मों को लेकर विवाद होना नई बात नहीं है। कई ऐसी फिल्में आई, जिनका विवादों से नाता रहा। एक जमाना था, जब फिल्मों को निगेटिव पब्लिसिटी से दूर रखने की कोशिश की जाती थी। पर, अब हर फिल्म मेकर चाहता है कि उसकी फिल्म रिलीज से पहले चर्चा में आए।

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संवादों और दृश्यों को लकर नापसंदगी

पहला शो देखकर थिएटर से बाहर आए दर्शकों ने ‘आदिपुरुष’ के प्रति नाराजगी व्यक्त करना शुरू कर दिया था। शुरुआती मसला फिल्म के कुछ संवादों को लेकर उठा। खासकर हनुमान जी के रावण को लेकर बोले गए संवादों को दर्शकों ने रामायण की मर्यादा के अनुरूप नहीं पाया। इसके लिए फिल्म के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर को निशाने पर लिया गया। बाद में दर्शकों और समीक्षकों की नजर फिल्म के खराब निर्देशन और एक्शन दृश्य दिखाने के लिए उपयोग किए गए चमत्कारिक दृश्यों पर गई, तो निर्देशक ओम राउत को ट्रोल किया जाने लगा। समीक्षकों का कहना है कि जब भी जनभावनाओं से जुड़ी कोई फिल्म बनाई जाए, तो उसके साथ ज्यादा आजादी लेना ठीक नहीं है। क्योंकि, लोग रामायण से जुड़ी हर बात जानते हैं, इसलिए वे कोई खिलवाड़ पसंद नहीं करेंगे। इसके अलावा राम के प्रति धारणा आदर्श पुरुष की बनी हुई है।

नेपाल में भी बवाल

संभवतः ‘आदिपुरुष’ पहली ऐसी फिल्म है जिसके संवादों ने देश के बाहर भी विरोध को बढ़ा दिया। सीता के चित्रण को लेकर काठमांडू और पोखरा में सभी हिंदी फिल्मों के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया। फिल्म में एक संवाद है ‘सीता माता भारत की बेटी है।’ इसे लेकर काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह ने काठमांडू महानगरीय क्षेत्र में हिंदी फिल्मों पर प्रतिबंध लगाया है। इसके बाद नेपाल सेंसर बोर्ड ने संवाद से ‘भारत’ शब्द को म्यूट करके चलाने की अनुमति दी। इसके बावजूद काठमांडू के मेयर ने ‘आदिपुरुष’ के मेकर्स से फिल्म से उस संवाद को हटाए जाने की मांग की। मेयर बालेंद्र शाह ने मेकर्स को तीन दिन में ओरिजनल फिल्म से संवाद नहीं हटाए जाने पर काठमांडू में किसी भी हिंदी फिल्म को नहीं चलने देने का अल्टीमेटम भी दिया था। जबकि, पौराणिक कथाओं के अनुसार सीता जनकपुर के मिथिला (नेपाल) में जन्मी थीं। वे मिथिला के नरेश राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं।

जितनी सफाई दी, उतने विवाद बढ़े

‘आदिपुरुष’ के ज्यादा विवादास्पद होने की बड़ी वजह संवाद लेखक मनोज मुंतशिर की सफाई को भी माना गया। उन्होंने खेद जताने के बजाय यह कहा कि फिल्म रामायण नहीं, बल्कि उससे प्रेरित है। ‘आदिपुरुष’ रामायण महाकाव्य नहीं है और न इसका रूपांतरण है। बल्कि, रामायण में हुए युद्ध का एक छोटा सा हिस्सा बनाया गया है। फिल्म के निर्देशक ओम राउत ने भी इस पूरे विवाद पर सफाई दी कि रामायण का दायरा इतना बड़ा है कि इसे किसी के लिए भी समझना आसान नहीं है। जो रामायण सीरियल हमने टीवी पर देखा है, यह ऐसा नहीं है। हम इसे रामायण पर आधारित फिल्म नहीं कह सकते। इसलिए इसे ‘आदिपुरुष’ कहा गया। फिल्म के संवाद व निर्देशन के अलावा किरदारों के लुक को लेकर भी विरोध हुआ। भगवान राम की मूंछ भी दर्शकों को पसंद नहीं आई। रावण की भूमिका निभाने वाले सैफ अली के लुक को अलाउद्दीन खिलजी से मिलता-जुलता बताया गया।

विवादित फिल्मों की चर्चा ज्यादा

देखा गया है कि जब भी कोई फिल्म विवादों में आती है, उसकी चर्चा ज्यादा होती है। ऐसे में फिल्म को लेकर लोगों की उत्सुकता भी बढ़ जाती है कि आखिर फिल्म में ऐसा क्या है। कहा जा सकता है कि फिल्मों से जुड़े विवाद उसके प्रमोशन का भी काम करते हैं। जिज्ञासावश दर्शकों की संख्या बढ़ जाती है और मेकर्स को इसका फ़ायदा मिलता है। ऐसे भी उदाहरण हैं जब मेकर्स ने ही विवाद खड़े किए, ताकि फिल्म रिलीज होने तक चर्चा में रहे। जब भी किसी फिल्म को लेकर विवाद हुआ, देखा गया है कि मुद्दा सिर्फ दर्शकों और फिल्म बनाने वाले तक सीमित नहीं रहा। कई सामाजिक और राजनीतिक संगठन भी झंडे, बैनर लेकर विवाद को बढ़ाने का काम करने लगते हैं, ताकि इस बहाने उनकी भी मार्केटिंग हो। ‘आदिपुरुष’ के साथ भी यही हुआ। पर, सबसे अलग बात ये हुई कि फिल्म की कमाई पर विवाद का कोई असर नहीं पड़ा।

कई तरह से विवादों में आई फ़िल्में

विवादों से घिरी ऐसी कुछ फिल्मों पर नजर दौड़ाई जाए तो संजय लीला भंसाली की 2017 की फिल्म ‘पद्मावत’ की रिलीज से पहले भारी विवाद हुआ था। निर्देशक पर इतिहास से छेड़छाड़ के आरोप भी लगे। भंसाली की ही फिल्म ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला’ भी विवादित रही। पहले इसके नाम के साथ ‘रामलीला’ शब्द जुड़ा होने से हिंदू भावना आहत होने का विवाद हुआ। प्रकाश झा की ‘लिपस्टिक अंडर माई बुरखा’ को लेकर भी विवाद उठा था। गाली-गलौज के साथ ही इसमें एक खास समुदाय की भावनाओं को आहत करने की भी कोशिश हुई। शाहरुख खान की फिल्म ‘रईस’ को लेकर भी आपत्ति उठी थी। साल 1973 में आई फिल्म ‘गरम हवा’ भारत-पाक के विभाजन पर बनी थी। इस फिल्म को भी विरोध का सामना करना पड़ा था।

‘जूली’ पर भी उठे थे सवाल

1975 में आई ‘जूली’ अपने अलग-से कथानक को लेकर विवादों में फंसी थी। इसी साल आई ‘आंधी’ को इंदिरा गांधी और उनके निजी रिश्तों पर आधारित बताकर काफी विवाद उठा था। जबकि, 1994 में आई डाकुओं पर बनी ‘बैंडिट क्वीन’ को लेकर एक समाज ने आपत्ति उठाई थी। समलैंगिक रिश्तों पर 1996 में बनी दीपा मेहता की फिल्म ‘फायर’ का तो विषय ही विवाद का हिस्सा बना था। इसी साल बनी मीरा नायर की ‘कामसूत्र: अ टेल ऑफ लव’ का तो देश में प्रदर्शन ही बैन कर दिया गया था। अनुराग कश्यप की 2003 की फिल्म ‘पांच’ अपने ड्रग और सेक्सुअल कंटेंट को लेकर इतनी विवादों में आ गई थी कि रिलीज ही नहीं हो सकी। ‘हवा आने दे’ (2004) फिल्म का विषय भारत और पाकिस्तान युद्ध पर आधारित था। लेकिन, सेंसर बोर्ड ने इसमें इतने कट लगा दिए कि भारत में तो यह फिल्म रिलीज ही नहीं हुई।

पाक कलाकारों पर बैन भी मुद्दा बना

2005 में आई दीपा मेहता की ‘वाटर’ बनारस के आश्रम में रहने वाली विधवा की जिंदगी पर बनी। इस फिल्म को लेकर भी काफी हंगामा हुआ। अनुराग कश्यप की ‘ब्लैक फ्राईडे’ (2007) मुंबई बम ब्लास्ट पर बनाई गई थी। इसे लेकर इतना विवाद हुआ कि रिलीज से पहले मेकर्स को कोर्ट में इसके लिए लड़ना पड़ा था। उरी हमले के बाद पाकिस्तानी फिल्म कलाकारों को इंडस्ट्री में बैन कर दिया था। करण जौहर की 2016 की फिल्म ‘ए दिल है मुश्किल’ में फवाद खान अहम भूमिका में थे। मामला उलझने के बाद फवाद के कई सीन काटने पड़े। साल 2022 में रिलीज हुई ‘सम्राट पृथ्वीराज’ चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म थी। आरोप लगा था कि सम्राट पृथ्वीराज और इतिहास को गलत ढंग से पेश किया गया। इस वजह से अक्षय कुमार की यह फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो गई थी। ‘आदिपुरुष’ और उससे पहले की फिल्मों को लेकर जो भी आपत्तियां उठी, उन्हें देखकर लगता है कि अब फिल्म बनाना आसान नहीं रह गया। ज्यादा क्रिएटिविटी और प्रयोग फिल्मकारों के गले पड़ सकते हैं।

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