सतत निगरानी व तकनीक रोकेगी स्कूल बस हादसे बच्चों को सुरक्षित परिवहन
कहना कठिन है कि कितने लोगों को 18 नवम्बर, 1997 की वो स्याह सुबह याद है जब बच्चों को लेकर जा रही एक स्कूल बस दिल्ली में वजीराबाद पुल से यमुना नदी में गिरी थी। दर्दनाक हादसे में 28 बच्चों की मृत्यु हुई व 62 बच्चे तथा स्टाफ घायल हुए। बस में 6 से 14 वर्ष आयु के 112 बच्चे सवार थे। हृदय विदारक दुर्घटना के बाद सर्वाेच्च न्यायालय ने एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ मामले में दिसंबर, 1997 में ही स्कूल बसों के सुरक्षित संचालन और प्रबंधन हेतु विस्तृत दिशा-निर्देश दिये। जिसमें स्कूल बसों की गति सीमा निर्धारण हेतु स्पीड गवर्नर लगाने, बसों का नियमित रखरखाव-निरीक्षण, चालकों के लिए पांच वर्ष का अनुभव, नियमित प्रशिक्षण व स्वास्थ्य जांच, बसों में प्राथमिक चिकित्सा किट व बच्चों के बैठने की अधिकतम सीमा निर्धारित की गई।
कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बाद स्कूली बसों को सुरक्षित बनाने हेतु सम्भवतः पहली बार गंभीर प्रयास हुए। लेकिन इसके बावजूद स्कूल बस दुर्घटनाएं चिंताजनक रूप से अक्सर हुई। वर्ष 2015 में पंजाब के मोगा में स्कूल बस के ट्रक से टकराने से 12 बच्चों की मृत्यु हुई। वर्ष 2018 में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्कूल बस के गहरी खाई में गिरने से चालक और 2 शिक्षकों सहित 23 बच्चों की मृत्यु हो गई। वर्ष 2018 में ही उ.प्र. के एटा में स्कूल बस के ट्रक से टकराने से करीब 24 बच्चों की मृत्यु हुई। वर्ष 2019 में उ.प्र. के कुशीनगर में मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर ट्रेन से टकराने से बस में सवार 13 बच्चों की मृत्यु हुई। इसी साल 11 अप्रैल को हरियाणा के महेन्द्रगढ़ में कनीना क्षेत्र स्थित जी.एल. पब्लिक स्कूल बस चालक द्वारा तेज गति व लापरवाही से चलाने से बस पलट गई। हादसे में 6 छात्रों की मृत्यु हुई तथा 32 घायल हुए। चालक नशे में था। पहले भी इस बाबत स्कूल प्रशासन को सचेत करने पर भी अनदेखी से दुखद हादसा हो गया।
दरअसल, दुर्घटनाओं का मुख्य कारण स्कूल बसों का समुचित रखरखाव न होना, बस चालकों का लापरवाही से तेज गति व नशे में गाड़ी चलाना रहा है। हाल ही में हिसार में एक स्कूल बस ब्रेक फेल होने से दुर्घटनाग्रस्त हो गई, महेन्द्रगढ़ में एक स्कूल बस का पिछला टायर निकल गया तथा फरीदाबाद में स्कूल वैन में शार्ट सर्किट से आग लग गई। हादसे बताते हैं कि बसों के रख-रखाव को गम्भीरता से नहीं लिया जाता। बस चालकों में अनुशासन व आवश्यक प्रशिक्षण का अभाव, क्षमता से अधिक छात्रों को ले जाना, सुरक्षा मानकों की अनदेखी तथा बसों में सीट-बेल्ट न पहनना व आपातकालीन स्थिति से निपटने हेतु आवश्यक सुरक्षा साधन न होना भी दुर्घटनाओं के कारण हैं।
भारत में स्कूल बस को ट्रांसपोर्ट वाहन माना गया है। सुरक्षित संचालन हेतु प्रावधान मोटर वाहन अधिनियम, 1988 में दिये गये हैं। केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 बसों के लिए विशिष्ट सुरक्षा उपायों को अनिवार्य करते हैं। जैसे गति को 60 कि.मी. प्रति घंटा सीमित करने हेतु स्पीड गवर्नर लगाना, खिड़कियों पर लोहे की ग्रिल और आपातकालीन निकास की आवश्यकता है। राज्य सरकारों व राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा भी स्कूल परिवहन हेतु व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। इनमें बसों का नियमित फिटनेस प्रमाणन, ड्राइवरों की साख का सत्यापन व उचित प्रशिक्षण, सुरक्षा मानदंडों के अनुपालन की निगरानी हेतु स्कूलों द्वारा परिवहन समितियां बनाने व बच्चों की सहायता हेतु परिचालक का मौजूद होना शामिल है।
वर्ष 2009 में जसबीर सिंह, उपाध्यक्ष, मानव सेवा मिशन, लुधियाना ने स्कूली बसों की दुर्घटनाओं में हुई मौतों के मुद्दे को उठाया। इसका पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया तथा इसे तत्काल रिट याचिका सीडब्ल्यूपी नं. 6907/2009 के रूप में पंजीकृत किया। उच्च न्यायालय द्वारा पंजाब, हरियाणा व चंडीगढ़ को स्कूली वाहनों की सुरक्षा हेतु पॉलिसी बनाने के लिए निर्देश दिए। फलत: वर्ष 2014 में हरियाणा सरकार द्वारा ‘सुरक्षित स्कूल वाहन पॉलिसी’ बनाई गई। इसके अंतर्गत नियमों की पालना सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश, जिला व उपमण्डल स्तर पर विभिन्न विभागों के अधिकारियों की समितियां बनाने का प्रावधान किया गया। अब हरियाणा सरकार ने मौजूदा ‘सुरक्षित स्कूल वाहन पॉलिसी’ में सुधार करने के लिए कुछ संशोधन प्रस्तावित किए हैं। मसौदे के अनुसार, स्कूल प्रबंधन वर्ष में दो बार शपथ पत्र के माध्यम से ‘स्व-प्रमाणन’ प्रस्तुत करेगा। स्कूल प्रबंधन की जिम्मेदारी होगी कि वह छात्रों और छात्रों के अभिभावकों से ड्राइवर/कंडक्टर/अटेंडेंट के आचरण के बारे में समय-समय पर फीडबैक ले और उसका रिकॉर्ड बनाए।
विदेशों में स्कूल बस सुरक्षा हेतु विभिन्न रणनीतियों लागू हैं। अमेरिका स्कूल बसों हेतु विशिष्ट डिजाइन मानकों को अनिवार्य करता है। अमेरिका-आस्ट्रेलिया में स्कूल बसों में सीट बेल्ट लगाना अनिवार्य है। सुरक्षा हेतु वार्षिक जागरूकता सप्ताह, ओवरलोडिंग के लिए जीरो टॉलरेंस, यू.के. में बस ड्राइवर की निगरानी व छात्रों की सुरक्षा हेतु बसों पर सीसीटीवी कैमरे अनिवार्य हैं। चालक के लाइसेंस हेतु कड़े नियम हैं। स्कूली बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना कानूनी दायित्व और नैतिक अनिवार्यता भी है। सर्वप्रथम स्कूल प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित हो व लापरवाही पर कानूनी कार्यवाही कर भारी आर्थिक दंड भी लगाया जाये। बसों के आगे व पीछे उसकी रोड फिटनेस सर्टिफिकेट की तिथि बड़े अक्षरों में लिखी जाये। ऐसी तकनीकें अनिवार्य हों, जो चालक के शराब पीकर गाड़ी चलाने पर चेतावनी दे सकें। वर्तमान में ऐसी तकनीकें उपलब्ध हैं- जो चालक के शराब पीने का पता चलने पर वाहन को स्टार्ट होने से भी रोक सकता है। ड्राइवर के व्यवहार की निगरानी करने हेतु कैमरे, सेंसर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल होता है। इसमें अतिरिक्त जिला-उपमंडल स्तरीय रोड सेफ्टी कमेटी में स्थानीय प्रतिष्ठित लोग शामिल हों, स्कूल बसों की नियमित सुरक्षा ऑडिट की जाए। इनमें स्कूल प्रशासन, जिला शिक्षा अधिकारी, जिला परिवहन अधिकारी और छात्रों के परिजनों की भागीदारी हो।
आखिर इतने व्यापक दिशा-निर्देश देने के बावजूद स्कूली बसों के हादसे क्यों होते रहते हैं। क्या ये रेग्युलेशन व एनफोर्समेंट की कमी है। क्या ये हमारी आम उदासीनता का नतीजा है। बच्चों के सुरक्षित स्कूल परिवहन हेतु व्यवस्था को अधिक पारदर्शी व जवाबदेह बनाएं। स्कूली बस दुर्घटनाओं के प्रति जीरो टॉलरेंस होना आवश्यक है। इसमें माता-पिता ज्यादा सक्रियता निभाएं। हर स्कूल में प्रत्येक वर्ष एक दिन को सुरक्षा दिवस मनाते हुए परिवहन सुरक्षा पर चर्चा हो। इसी दिन बच्चों के परिजनों, शिक्षकों, बस चालकों-परिचालकों में बेहतर परिवहन सुरक्षा हेतु संवाद हो। आधुिनक तकनीक से दुर्घटनाओं को टाला जाए। स्कूली बच्चों को सुरिक्षत रखने के लिये सतत व्यवस्था बनाएं।
लेखक हरियाणा के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं।