पाक की अंतहीन आर्थिक मुश्किलों का सिलसिला
जी. पार्थसारथी
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के पास पाकिस्तान का मामला काफी वक्त से ‘छींके में टंगा’ हुआ है, वह पहले से विदेशी मदद और खैरात पर काफी हद तक निर्भर रहा है तिस पर कोरोना महामारी के बाद हालात और बिगड़ते गए। उसकी अर्थव्यवस्था सदा संकटग्रस्त रही है। अपने प्रधानमंत्री काल में, घमंडी और मुंहफट इमरान खान मुल्क की विदेशी और घरेलू नीतियों पर राष्ट्रीय सहमति नहीं बनवा सके। जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था रसातल की ओर लुढ़क रही थी, ऐसे वक्त पर उन्होंने अपने दोस्तों और दुश्मनों को एक समान नाराज़ कर डाला। एक पाकिस्तानी मित्र ने हाल ही में चुटकी लेते हुए कहा, ‘हमारे मुल्क को मुश्किल से निकालने को एक डॉ. मनमोहन सिंह की जरूरत है!’ अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी, कट्टर इस्लामिक विचारों की ओर झुकाव रखने वाले इमरान खान को पश्चिमी जगत पसंद नहीं करता। यहां तक कि पाकिस्तान के मित्र अरब राष्ट्रों में कुछ, विशेषकर सऊदी अरब, उनसे चिढ़ते हैं। रूस के साथ पींगें डालने के यत्नों में बहुत देर हो चुकी थी, तब तक उनका राजनीतिक आधार सिकुड़ रहा था। सबसे अहम, अमेरिका के साथ अच्छे रिश्तों को उच्चतम तरजीह देने वाले तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाज़वा के साथ इमरान खान के रिश्ते तल्ख होते गए। यह जनरल बाजवा हैं जिन्होंने बारास्ता पाकिस्तान यूक्रेन को युद्धक सामग्री पहुंचाने का इंतजाम किया। उन्होंने भारत से लगती सीमा पर चलाए जा रहे सीमापारीय आतंकवाद पर नकेल डालने के प्रयासों की अगुअाई की।
यह कोई राज नहीं कि जनरल बाज़वा को इस हकीकत का इल्म था कि लंबे खिंचे आर्थिक संकट की वजह से न तो भारत के साथ गर्मी बढ़ाने में कोई समझदारी है और न ही अफगान-तालिबान और उनके पाकिस्तानी हमबिरादरों के साथ उलझने में, जिनका व्यवहार लगातार मुश्किलें पेश कर रहा है। देश के अंदर और अफगान सीमा पर सक्रिय तालिबान तत्वों की हरकतों के साथ बरतना मुश्किल हो रहा है। मंजर यह भी था कि एक ओर अमेरिकी फौज, राजनयिक और नागरिक बेआबरू होकर अफगानिस्तान से निकल रहे थे तो दूसरी तरफ तत्कालीन आईएसआई मुखिया ले. जनरल फैज़ हमीद काबुल में विजेता का भाव लिए दाखिल हो रहे थे और उस नजारे का लुत्फ ले रहे थे, जिसको बहुत से पाकिस्तानी अमेरिकियों की बेइज्जती भरा आत्मसमर्पण मानते हैं। उसके बाद से अमेरिका ने पाकिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से सहायता पाने वाले यत्नों पर कड़ा रुख अख्तियार कर लिया। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से आर्थिक सहायता और उसकी सिफारिश से विश्व बैंक और एशिया विकास बैंक इत्यादि संस्थानों के दरवाजे खुलवाने की खातिर पाकिस्तान बुरी तरह हाथ-पांव चला रहा है।
आज पाकिस्तान के पास एक महीने के आयात करने जितनी विदेशी मुद्रा बमुश्किल बची है। यहां तक कि उसके ‘सदाबहार दोस्त’ चीन ने भी इस संदर्भ में दिखावटी मदद ही की है। चीन पाकिस्तान में चल रही अपनी तमाम परियोजनाओं में अपने बंदों की सीधी उपस्थिति और उपकरणों का नियंत्रण उनके हाथ में देने के पुराने दबाव पर कायम है। इसके अलावा पाकिस्तान को चीन से लिया ऋण बदली जा सकने वाली मुद्रा में चुकाना है। पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय सहायता तब तक उपलब्ध नहीं हो सकती जब तक कि वह अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा रखी गई कड़ी शर्तों को नहीं स्वीकारता। यहां तक उसके मित्र और तेल संपन्न मुल्क, जैसे कि सऊदी अरब और यूएई ने भी कहने भर की मदद की है। हालांकि अपनी थैली का मुंह खोलने से पहले वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की हरी झंडी का इंतजार कर रहे हैं। पाकिस्तान की किस्मत अच्छी है कि शाहबाज़ शरीफ गद्दी पर हैं जिनके परिवार के संबंध सऊदी अरब के सुल्तान के साथ लंबे वक्त से सुमधुर हैं। यदि सत्ता में इमरान खान होते तो शायद सऊदी अरब इतनी उदारता न दिखाता।
पाकिस्तान में अक्तूबर माह में आम चुनाव होने हैं। लेकिन इसी बीच, इमरान खान से खुन्नस रखने वाले सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर के नेतृत्व वाली सेना पूर्व प्रधानमंत्री और उनके वफादारों को जेल भेजने की तैयारी में जुटी है। सेना ने इमरान समर्थक लोगों को नाथने के लिए विशेष शक्ति भी हासिल कर ली है। खुद इमरान खान भ्रष्टाचार के एक मामले में जमानत पर बाहर हैं। पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश, जो राष्ट्रपति बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं, उन चंद लोगों में हैं जो इमरान खान को जेल से बचाने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के जिन सदस्यों पर आपराधिक मामले चले, उनको जमानत पर रिहा करने वाले फैसले मुख्य न्यायाधीश लगातार देते जा रहे हैं। लेकिन जनरल मुनीर भी इमरान खान को सजा दिलवाकर राजनीति से बेदखल करवाने और उनकी पार्टी के बड़े नेताओं पर पाला बदलने का दबाव बनाने को दृढ़संकल्प हैं।
पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के सख्त रुख ने अन्य संभावित सहायताकर्ताओं से मिलने वाली वित्तीय सहायता रोक रखी है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के एक वरिष्ठ अधिकारी ने हाल ही में कहा कि राहत पैकेज पाने से पहले पाकिस्तान, कुछ तकलीफदेह सही, लेकिन आर्थिक सुधार कर दिखाए। वर्ष 2022-23 में पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि दर लगभग 0.3 फीसदी रहने का अनुमान है और पिछले साल प्रति व्यक्ति आय गिरी। स्पष्ट है, इन स्थितियों में, पाकिस्तान भारत में सीमापारीय आतंकी गतिविधियां प्रायोजित करने में सावधानी बरतने को बाध्य होगा। जनरल बाजवा ने भांप लिया था कि इस किस्म के आतंकवाद को बढ़ावा देने का परिणाम है खुद पाकिस्तान के लिए और ज्यादा मुश्किलें खड़ी करना और अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से रिश्ते बिगाड़ना। उन्हें इल्म था कि पाकिस्तान पहले से तहरीक-ए-तालिबान ऑफ पाकिस्तान और बलूच पृथकतावादियों से दरपेश गंभीर समस्याओं से ग्रस्त है। पाकिस्तान ने यह गौर भी किया कि अफगान जनता, और यहां तक कि तालिबान नेतृत्व ने भी, ईरान के चाबहार बंदरगाह के रास्ते पहंुचने वाली भारतीय सहायता सामग्री की प्रशंसा की है।
पाकिस्तान से बरतने में, हम चीन से लगती अपनी सीमा पर बनी समस्याओं को अलग नहीं रख सकते। साफ दिखाई दे रहा है कि चीन पाकिस्तान की नौसैन्य और वायुसैन्य शक्ति को सुदृढ़ करने के लिए निश्चयी है। लेकिन दिवालिया होने की कगार पर खड़े पाकिस्तान की हालत से भारत को चीन के साथ वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखा पर अतिरिक्त सामरिक लाभ मिल रहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दोटूक कहा है कि चीन के साथ रिश्ते तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक वह लद्दाख में घुसपैठ कर कब्जाए क्षेत्र को खाली न कर दे।
इस साल के आखिर में नई दिल्ली में होने जा रहे आगामी जी-20 शिखर सम्मेलन में शी जिनपिंग का रुख देखना रोचक होगा। उनके राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान भारत के साथ सीमा तनाव निरंतर बने हुए हैं। हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति से निपटने के लिए भारत और अमेरिका के बीच सहयोग बढ़ाने की जरूरत बनी है। इसका सबूत प्रधानमंत्री मोदी की आगामी अमेरिका यात्रा से पहले अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड की भारत यात्रा है।
लेखक केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू के कुलपति और पाकिस्तान में उच्चायुक्त रहे हैं।