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जनभागीदारी से ही सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण

06:37 AM Nov 09, 2024 IST
जनभागीदारी से ही सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
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प्रो. सुखदेव सिंह

भारत एक विशाल देश है, जिसकी सांस्कृतिक विरासत भी उतनी ही अद्वितीय और विशाल है। हालांकि, यह विरासत प्राचीन स्मारकों, पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 (2010 में संशोधित) के तहत कानूनन संरक्षित राष्ट्रीय और राज्य महत्व की कुछ चयनित इमारतों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें देश के प्राकृतिक संसाधन, कला, शिल्प और ज्ञान भी शामिल हैं, जो कानूनी रूप से असंरक्षित हैं। देश की प्रगति और शहरीकरण के कारण यह तेजी से नष्ट हो रही है, न कि प्राकृतिक आपदाओं या उम्र बढ़ने के कारण। इसलिए, इस सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए केवल सरकारी प्रयासों के बजाय लोगों की सक्रिय भागीदारी भी आवश्यक है।
सर्वप्रथम, ‘असुरक्षित’ सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए लोगों का सहयोग आवश्यक है क्योंकि वे ही इसके वास्तविक उत्तराधिकारी और मालिक हैं। दूसरा, लोगों की भागीदारी से सांस्कृतिक विरासत उनके जीवन से जुड़ी रहती है और इसके उपयोग तथा सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों में एकीकृत होती है। तीसरा, यह रखरखाव और संरक्षण प्रयासों को लागत प्रभावी, किफायती और टिकाऊ बनती है। चौथा, यह भौगोलिक, सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक मतभेदों को देखते हुए विभिन्न ज्ञान स्रोतों को एकीकृत कर स्थानीय और प्रामाणिक शिल्प कौशल को प्रोत्साहित करता है।
भारत की विशाल सांस्कृतिक विरासत, जो ऐतिहासिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यधिक विविध है, को केवल ए.एम.एस.आर. अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षित नहीं किया जा सकता। इस अधिनियम के तहत केवल 100 वर्ष या उससे पुरानी इमारतें और स्मारकीय स्थल संरक्षित किए जाते हैं, जिनमें से कई सरकारी स्वामित्व में हैं। हालांकि, संरक्षण की प्रक्रिया महंगी और सीमित है, और प्राकृतिक क्षय के अलावा अन्य दबावों के कारण देश की विशाल सांस्कृतिक धरोहर खतरे में है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों और स्थलों का संरक्षण करता है, जबकि राज्य पुरातत्व विभाग क्षेत्रीय महत्व के स्मारकों की देखभाल करता है। अन्य सांस्कृतिक धरोहरों को पुरावशेष और कला खजाना अधिनियम, 1972 के तहत विनियमित किया जाता है। हालांकि, इन प्रयासों का दायरा सीमित और महंगा है, इस स्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त प्रयासों की आवश्यकता है।
वर्ष 1972 के यूनेस्को विश्व धरोहर सम्मेलन के बाद, सांस्कृतिक विरासत की समझ में महत्वपूर्ण बदलाव आया। जिसमें महलों और स्मारकों के साथ-साथ आम घरों, दुकानों और दैनिक उपयोग की इमारतों को भी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा माना जाने लगा। ये संरचनाएं समुदायों की प्रचलित परंपराओं और जीवनशैली को दर्शाती हैं, और शहरी सड़कों, बाजारों तथा चौराहों के रूप में एक ‘सांस्कृतिक परिदृश्य’ भी बनाती हैं।
सांस्कृतिक विरासत, चाहे वह आलीशान स्मारकों की तरह महत्वपूर्ण हो, फिर भी ‘असुरक्षित’ है और शहरीकरण, आधुनिकीकरण तथा विकास नीतियों के दबाव में लगातार खतरे में है। इसे संरक्षित करने के लिए जागरूकता अभियान, मौजूदा नीतियों में संशोधन और स्थानीय सरकारों द्वारा ‘विरासत नियमों’ का निर्माण आवश्यक है। इसके अलावा, प्राचीन वास्तुकला या सांस्कृतिक विशेषताओं के आधार पर इमारतों और स्थलों की सूची तैयार करना और ‘विरासत यात्रा’ जैसे प्रयासों को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।
विरासती इमारतों, स्थानों और कलाकृतियों की सूची ‘असुरक्षित’ सांस्कृतिक विरासत की पहचान, संरक्षण और वकालत के लिए एक महत्वपूर्ण डेटा संग्रह हो सकती है, जो अनुसंधान और राष्ट्रीय रजिस्टर का आधार बने। इन स्थलों को महत्व के अनुसार वर्गीकृत करना, राज्य और स्थानीय सरकारों द्वारा ‘विरासत नियमों’ के निर्माण में मददगार होगा। ‘हेरिटेज वॉक’ योजना से लोग सांस्कृतिक स्थलों से जुड़ सकते हैं, और विरासत पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है। यह स्थानीय शिल्प, होटल और सेवा उद्योगों में रोजगार उत्पन्न करके स्थानीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ कर सकता है।
सांस्कृतिक विरासत की अवधारणा ‘जीवित विरासत’ पर आधारित है, जिसमें वास्तुकला, शिल्प, सामाजिक संस्कृति और प्राकृतिक पर्यावरण आपस में जुड़े होते हैं। इस दृष्टिकोण में ‘अतीत’, ‘वर्तमान’ और ‘भविष्य’ एक निरंतरता का हिस्सा हैं। सांस्कृतिक विरासत को प्रकृति से अलग करना अव्यावहारिक है, क्योंकि मानव संस्कृति प्रकृति से प्रेरित है और इसे अनुकरण करती है।
‘असुरक्षित’ सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए 27 जनवरी, 1984 में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इनटैक) एक गैर-सरकारी स्वतंत्र सदस्य-आधारित संगठन, की स्थापना की गई, जो नागरिकों को शामिल कर इमारतों की सूची बनाने, हेरिटेज वॉक आयोजित करने और विरासत नियमों की वकालत करता है। इनटैक असुरक्षित सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए ज्ञान, प्रौद्योगिकी और कौशल विकसित कर इसे एक मॉडल के रूप में जमीनी स्तर पर लागू कर रहा है। यह अन्य संगठनों और व्यक्तियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के बजाय पूरक बनने के लिए काम कर रहा है।

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