प्रतिभा का पारखी
यूनान के एक नगर में एक गरीब बालक लकड़ी का गट्ठा लेकर बाजार में बेचने गया। एक भले व्यक्ति ने गट्ठर को कलात्मक ढंग से बंधे देखा तो उसने बच्चे से पूछा, ‘यह गट्ठर किसने बांधा?’ बालक बोला, ‘मेरे पिता लकड़ी काटते हैं और मैं उन्हें बांधकर लाता हूं।’ उस आदमी ने कहा, ‘इसे खोलकर दोबारा इसी तरह बांध सकते हो?’ बालक ने गट्ठर खोलकर पुनः बांध दिया। वह आदमी बालक के श्रम से खुश होकर बोला, ‘बेटे! मुझे गट्ठर नहीं खरीदना, मैं तुम्हें पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाना चाहता हूं। क्या तुम मेरे साथ रह सकते हो?’ बच्चे ने जवाब दिया, ‘मैं चलने को राजी हूं। आप कहें तो घर से पिता की आज्ञा ले आऊं।’ पिता ने बालक को खुशी-खुशी भेज दिया। बालक कुशाग्र बुद्धि का निकला। गणित में गहरी रुचि के कारण आगे चलकर वही बालक यूनान के महान गणितज्ञ एवं दार्शनिक पाइथागोरस के नाम से विश्वविख्यात हुआ। उन्होंने रेखागणित में पाइथागोरस प्रमेय लिखकर त्रिकोणमिति सरीखी एक नई शाखा को जन्म दिया। जिस व्यक्ति ने बच्चे के बुद्धि-चातुर्य को परखा था, वे यूनान के महानतम तत्वज्ञानी संत डेमोक्रीट्स थे। प्रस्तुति : राजकिशन नैन