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छत्तीसगढ़ में एकता के लिए कांग्रेस का नया दांव

06:52 AM Jul 01, 2023 IST
छत्तीसगढ़ में एकता के लिए कांग्रेस का नया दांव
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वेद विलास उनियाल

छत्तीसगढ़ में टीएस सिंह देव को राज्य का उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। यह देश का 11वां राज्य है जहां डिप्टी सीएम बना है। राज्यों में नेतृत्व के लिए खींचतान, वर्चस्व की लड़ाई को दूर करने या फिर जातीय क्षेत्रीय सियासी संतुलन को साधने के लिए डिप्टी सीएम बनाने की रिवायत देखी गई है। कई राज्यों में दो-दो डिप्टी सीएम भी बने हैं। छतीसगढ़ में चुनाव से लगभग पांच महीने पहले टीएस सिंह देव को डिप्टी सीएम बनाने की रणनीति में क्षेत्रीय जातीय संतुलन को साधने से ज्यादा नेताओं में आपसी खींचतान को दूर करने का उपक्रम देखा गया है। कहीं न कहीं कांग्रेस आलाकमान को यह लगा है कि चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में कांग्रेस में खुशनुमा माहौल बनाया जाए। इसके लिए टीएस सिंह देव यानी टीएस बाबा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। हालांकि, अब इस दौर में उपमुख्यमंत्री के तौर पर टीएस सिंह देव के पास कुछ अलग करने के लिए समय नहीं है। वैसे भी उपमुख्यमंत्री के रहते राज्यों में बड़े अधिकार मुख्यमंत्री अपने ही पास रखते हैं। इस मायने में महाराष्ट्र या कर्नाटक की स्थिति कुछ अलग कही जा सकती है।
वर्ष 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद अगर विधायकों के समर्थन के आधार पर नेतृत्व दिए जाने की बात होती तो टीएस सिंह के हाथ में ही नेतृत्व सौंपा जाता। कांग्रेस के दो-तिहाई विधायकों का उनके प्रति झुकाव था। बेशक चुनाव में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव ने अपने-अपने स्तर पर पार्टी को कामयाब बनाने के लिए प्रयास किये थे। लेकिन माना गया था कि संगठन प्रबंधन में टीएस सिंह देव की भूमिका शानदार थी। पार्टी संगठन पर भी उनका प्रभाव था। हालांकि, पार्टी के लिए प्रचार करना डोर टू डोर कैंपेन करने में बघेल ने अपना कौशल दिखायाथा। उस समय विधायकों का मिजाज भांपने पार्टी के आज के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ही पर्यवेक्षक बनकर छत्तीसगढ़ गए थे। लेकिन उस समय की सियासी परिस्थितियों को देखते हुए कांग्रेस हाईकमान ने ढाई-ढाई साल सत्ता का फार्मूला निकाल कर बघेल के हाथ में सत्ता सौंपी। कांग्रेस आला कमान ने अपना मन भूपेश बघेल के पक्ष में बनाया।
रणनीतिक तौर पर बारी-बारी से ढाई-ढाई साल सत्ता में आने का एक अलिखित समझौता हुआ था। इस तरह का फार्मूला यूपी में भी अपनाने की कोशिश हुई थी। वह सफल नहीं रहा। छत्तीसगढ़ में भी सत्ता में आने के बाद सीएम बघेल ने ऐसी स्थितियां नहीं बनने दीं कि सत्ता का हस्तांतरण हो सके। उस समय यह फैसला हुआ था कि भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव ढाई-ढाई साल तक सीएम बनेंगे। हालांकि ऐसा हुआ नहीं।
टीएस सिंह देव ने कभी मुखर होकर कभी सांकेतिक तो कभी मंत्रिमंडल में विभाग को छोड़कर अपना असंतोष दिखाया। इससे टीएस सिंह देव ने 16 अगस्त, 2022 को ग्रामीण पंचायत मंत्रालय से इस्तीफा दिया था। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग का कार्यभार देखते हुए वह मंत्रिमंडल में बने रहे। लेकिन रह-रहकर छत्तीसगढ़ में बघेल और टीएस बाबा के धड़ों में मतभेद की खबरें बाहर आती रहीं।
लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने भी यथास्थिति बने रहने दी। अब ऐसे समय में जब कांग्रेस को चुनावी मैदान में उतरना है और छत्तीसगढ़ उन राज्यों में है जहां कांग्रेस अपने लिए संभावना देख रही है। ऐसे में कांग्रेस ने इस राज्य में भी उन उलझनों को दूर करने की कोशिश की है जो चुनाव में दिक्कत पैदा कर सकती थी। पहली कोशिश यही है कि पार्टी में नेताओं के आंतरिक मतभेदों को दूर किया जाए। माना जाना चाहिए कि कर्नाटक में जिस तरह से गुटबाजी से बाहर निकल कर कांग्रेस ने जनता को आपसी एकजुटता का संदेश दिया उसका पार्टी को फायदा मिला। चुनाव से पहले कांग्रेस के सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार जैसे दिग्गज नेता अलग-अलग राह चलते दिखते थे। लेकिन कांग्रेस ने समय रहते दोनों के विवादों को दूर कर इस तरह का माहौल बनाया कि वे मंचों पर हाथ लहराते नजर आए। पद यात्रा में साथ-साथ चले। इसके विपरीत बीजेपी अपने अंदरूनी विवादों से बाहर नहीं निकल पाई। निश्चित यहीं से कांग्रेस के मन में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के आंतरिक विवाद को दूर करने की कोशिश हुई है।
कांग्रेस को यह भी लगता रहा है कि किसी भी क्षण टीएस सिंह देव हाथों में कमल थाम सकते हैं। छत्तीसगढ़ के सियासी हलकों में इस बात की भी खबरें रह-रह कर उड़ती रहीं। कांग्रेस ने इस बात को समझ लिया था कि अगर समय रहते टीएस सिंह देव को मनाया नहीं गया तो खींचतान और बढ़ सकती है। टीएस बाबा विरोध का स्वर भी उठा सकते हैं। बेशक भूपेश बघेल ने सत्ता पर अपनी पकड़ बनाई हो लेकिन टीएस सिंह देव की प्रबंधन और संगठन पर जो पकड़ रही है, उसकी अहमियत पार्टी समझती है। इतना निश्चित है कि केवल डिप्टी सीएम के पद पर लाने भर से टीएस सिंह देव को खुश नहीं किया जा सकता। पार्टी ने उन्हें आगे के लिए कुछ और आश्वासन जरूर दिए होंगे। टिकटों के वितरण और संगठन को लेकर उनसे जरूर विस्तार से चर्चा हुई होगी।
भूपेश बघेल राजनीति के दावों को जानते हैं। इस समय उन्होंने अपने प्रभाव और नेतृत्व क्षमता से राज्य में कांग्रेस की स्थिति को काफी मजबूत बनाया है। भूपेश बघेल भी समझते हैं कि आपसी गुटबाजी और खींचतान से अलग कांग्रेस चुनावी मैदान में अपने बड़े संदेश के साथ जा सकती है। छत्तीसगढ़ में बघेल और बाबा के जो मुस्कराते और हाथ मिलाते चित्र नजर आए हैं वह जितनी सफलता टीएस सिंह देव की है उससे कहीं ज्यादा उसका महत्व सीएम भूपेश बघेल के लिए है। इसलिए इसे सीएम भूपेश बघेल का एक सफल दांव माना जा रहा है। भूपेश बघेल सियासत के कुशल खिलाड़ी हैं। कांग्रेस छत्तीसगढ़ में भी उम्मीद कर रही है कि दोनों नेताओं के मतभेद दूर होने के बाद पार्टी एकजुट होकर चुनाव मैदान में जाएगी।
टीएस बाबा छत्तीसगढ़ की सियासत में धुरंधर खिलाड़ी माने गए हैं। यूपी के प्रयागराज में जन्मे टीएस बाबा के पिता आईएएस अधिकारी रहे हैं। इनकी मां देवेंद्र कुमारी मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री रही हैं। अंबिकापुर नगर परिषद का चुनाव जीतकर वो छत्तीसगढ़ में डिप्टी सीएम के पद तक पहुंचे हैं। 2008 में सरगुजा से पहली बार विधायक बने। इसके बाद 2013 और 2018 में भी उन्होंने चुनाव में सफलता हासिल की। 2013 में विधायक दल के नेता बने। 2018 में बघेल ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया। टीएस बाबा का सरगुजा संभाग में खास प्रभाव माना जाता है। छह जिलों को मिलकर बना सरगुजा संभाग की विधानसभा सीटों को छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी कहा जाता है।
सरगुजा संभाग का राजनीतिक महत्व तो रहा है पर नेतृत्व का मौका यहां के नेताओं को नहीं मिला। यह आदिवासी बहुल इलाका है। यहां घने जंगल हैं। आदिवासी परंपरा और संस्कृति वाले इस संभाग से नंद कुमार राय, दिलीप सिंह जुदेव लरंग साय जैसे कई नेता दिए। इन क्षेत्रों से कई-कई बार विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व करने वाले नेता सामने आए।
लेकिन राजनीति के केंद्र में अक्सर बस्तर ही रहा। 2018 में जब कांग्रेस ने शानदार सफलता हासिल की थी। तब एक बार लग रहा था कि सरगुजा का नेता छत्तीसगढ़ की कमान संभालेगा। लेकिन टीएस बाबा सीएम बनते-बनते रह गए।
बेशक छत्तीसगढ़ के इस घटनाक्रम को कांग्रेस अपनी उपलब्धि के बतौर दिखाने की कोशिश करेगी। वहीं बीजेपी नेता पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का बयान भी नई बहस को जन्म देता है कि कैप्टन ने सियासी तूफान को देखते हुए नाव की पतवार टीएस सिंह देव के हाथ में पकड़ा दी है।

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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