कांग्रेस ने कहा- PM सिर्फ तारीफ सुनना चाहते हैं, उन्हें US के ‘टैरिफ' की चिंता नहीं
नयी दिल्ली, 7 मार्च (भाषा)
US Tariff: कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दो अप्रैल से भारत पर जवाबी शुल्क लगाने की घोषणा को लेकर शुक्रवार को दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ अपनी तारीफ सुनना चाहते हैं और उन्हें ‘टैरिफ' (शुल्क) की कोई चिंता नहीं हैं। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा' से बातचीत में यह सवाल भी किया कि अमेरिका की ‘धमकी' पर अब प्रधानमंत्री मोदी 56 इंच का सीना क्यों नहीं दिखा रहे हैं?
रमेश का कहना था कि ट्रंप द्वारा जवाबी शुल्क लगाने की घोषणा और अमेरिका की ‘धमकी' का जवाब देने के लिए भारत को दलगत भावना से ऊपर उठकर सामूहिक संकल्प दिखाने की जरूरत है।
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर जवाब नहीं देते और जब विदेश मंत्री एस जयशंकर बोलते हैं तो अमेरिका के ‘‘प्रवक्ता और राजदूत'' की तरह बात करते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने बृहस्पतिवार को फिर दोहराया कि अमेरिकी वस्तुओं पर शुल्क लगाने वाले देशों पर जवाबी शुल्क दो अप्रैल से लागू होंगे।
ट्रंप ने कहा, ‘‘सबसे बड़ी बात दो अप्रैल को होगी जब जवाबी शुल्क लागू होंगे, फिर चाहे वह भारत हो या चीन या कोई भी देश... भारत बहुत अधिक शुल्क लगाने वाला देश है।'' ट्रंप की घोषणा के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस नेता रमेश ने दावा किया, ‘‘हमारे प्रधानमंत्री सिर्फ तारीफ सुनना चाहते हैं, टैरिफ की उनको कोई चिंता नहीं है...हमारे नागरिकों को अमेरिका से अपमाजनजनक तरीके से भेजा गया। इस पर प्रधानमंत्री बिल्कुल चुप रहे। प्रधानमंत्री सिर्फ चापलूसी कर रहे हैं। उन्हें सीधा बोलना चाहिए, छोटे छोटे देश बोल रहे हैं।''
उन्होंने कटाक्ष करते हुए सवाल किया, ‘‘ट्रंप भारत जैसे देश को धमकी दे रहे हैं, प्रधानमंत्री 56 इंच का सीना क्यों नहीं दिखा रहे हैं? रमेश ने कहा, ‘‘इंदिरा गांधी जी (पूर्व प्रधानमंत्री) ने उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को क्या कहा था? याद करिये! चार नवंबर, 1971 को जब निक्सन और हेनरी किसिंजर (निक्सन के समय अमेरिका के विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) ने भारत को बदनाम करने का प्रयास किया तो इंदिरा जी खड़ीं होकर बोलीं कि भारतीय हित में मुझे जो कुछ करना है, वो करूंगी। लेकिन आज हमारे प्रधानमंत्री तो नमस्ते ट्रंप और गले लगाने में लगे हुए हैं।''
उनके मुताबिक, अमेरिका में भारतीय नागरिकों को जिस तरह से निशाना बनाया जा रहा है, यह हमारी संप्रभुता का सवाल है। यह पूछे जाने पर कि ‘टैरिफ' के मुद्दे पर बजट सत्र के दूसरे चरण के दौरान क्या कांग्रेस प्रधानमंत्री से संसद में जवाब मांगेगी, रमेश ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री तो जवाब नहीं देते, विदेश मंत्री को भेजते हैं। विदेश मंत्री तो अमेरिका के प्रवक्ता और अमेरिका के राजदूत के रूप में बात करते हैं।''
उन्होंने कहा, ‘‘यह गंभीर मसला है। चीन के बारे में कुछ नहीं बताया कि क्या समझौता हुआ है? चीन पर लोकसभा और राज्यसभा में कोई चर्चा नहीं हुई। सिर्फ विदेश मंत्री ने एक लिखा हुआ वक्तव्य पढ़ा और चले गए।'' रमेश का कहना था कि अमेरिका का मामला संवेदनशील है और इस पर एक सामूहिक संकल्प दिखाने की जरूरत है। इस सवाल पर कि क्या विपक्ष सर्वदलीय बैठक की मांग करेगा तो कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री तो (सर्वदलीय बैठक में) आते नहीं है। विदेश मंत्री आकर प्रवचन देते हैं।''
भारत को पृथ्वी विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान की क्षमता को बढ़ाना होगा: कांग्रेस
कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (नोआ) के बजट में भारी कटौती की घोषणा की है, ऐसे में इस संस्था को लेकर खड़ी हुई अनिश्चितता को देखते हुए अब भारत को पृथ्वी विज्ञान के क्षेत्र में अपने अनुसंधान की क्षमता को बढ़ाना होगा। नोआ अमेरिका की संस्था है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स' पर पोस्ट किया, ‘‘प्रतीत होता है कि इस समय मोदी सरकार की प्राथमिकता राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ संबंधी खतरों से निपटने के लिए एक व्यापार समझौता करना है। लेकिन अन्य क्षेत्रों में भी उनके निर्णयों का भारत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
‘नोआ' मानसून को समझने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप ने इस संस्था के बजट में भारी कटौती और इसके आकार को कम करने की योजना बनाई है।'' उन्होंने कहा, ‘‘नोआ वैश्विक तापमान, लवणता और समुद्र के जल स्तर जैसे महत्वपूर्ण डेटा एकत्र करता है, जो मानसून के पैटर्न को समझने एवं सही पूर्वानुमान के लिए आवश्यक है।2009 से मानसून पूर्वानुमान में उपयोग किया जाने वाला समुद्री डेटा मुख्य रूप से नोआ से आया है।''
रमेश के मुताबिक, हिन्द महासागर में नोआ लगभग 40 प्रतिशत ‘सबसर्फेस ऑब्जर्वेशन' (पृथ्वी के अंदरूनी भाग के अवलोकन) में योगदान देता है, जबकि भारत का योगदान केवल 11 प्रतिशत है।
उन्होंने कहा, ‘‘असल में नोआ सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की निगरानी और प्रबंधन के लिए भी एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक संसाधन है। लेकिन इसका भविष्य अनिश्चित दिख रहा है।'' कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘इसका मतलब यह भी है कि भारत को पृथ्वी विज्ञान के क्षेत्र में अपने अनुसंधान की क्षमताओं को काफी हद तक बढ़ाना होगा।''