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चुनौतीपूर्ण वैश्विक परिदृश्य में महंगाई की फिक्र

06:57 AM Oct 21, 2023 IST
चुनौतीपूर्ण वैश्विक परिदृश्य में महंगाई की फिक्र
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जयंतीलाल भंडारी

केंद्र सरकार ने कहा कि इस समय त्योहारी मौसम के दौरान आवश्यक खाद्य वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहने की उम्मीद है। सरकार ने हाल ही में मूल्य स्थिर रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। इसके तहत सरकार ने अपने नियंत्रण वाले सभी उपायों का उपयोग किया है चाहे वह व्यापारिक नीति हो या स्टॉक सीमा मापदंड तय करने का पैमाना हो। सरकार का यह वक्तव्य ऐसे समय में आया जब इन दिनों हमास-इस्राइल युद्ध, कच्चे तेल उत्पादक देशों द्वारा तेल उत्पादन में कटौती, कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ते हुए ऊंचे स्तर पर पहुंचने तथा वैश्विक खाद्यान्न संकट से दुनियाभर में महंगाई बढ़ने का परिदृश्य दिखाई दे रहा है। यद्यपि इसी माह अक्तूबर, 2023 में प्रकाशित केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक थोक एवं खुदरा महंगाई के सूचकांक महंगाई में कमी का संकेत दे रहे हैं, लेकिन चुनौतीपूर्ण वैश्विक भूराजनीतिक व आर्थिक चुनौतियों के दौर में तेज महंगाई बढ़ने की आशंका बनी हुई है।
चूंकि महंगाई शहरी मध्यम वर्ग को अधिक प्रभावित करती है, अतएव आगामी चुनावों में महंगाई के मुद्दे के मद्देनजर सरकार द्वारा महंगाई नियंत्रण सरकार की बड़ी चिंता बन गई है। यह चिंता इसलिए भी दिखाई दे रही है क्योंकि पिछले दिनों विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के साथ-साथ भारत में भी महंगाई बढ़ने की चुनौती पैदा हुई है। रिपोर्ट में वर्ष 2023-24 में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति 5.9 फीसदी रहने का अनुमान प्रस्तुत किया गया है, पूर्व में प्रस्तुत महंगाई के अनुमान से नया अनुमान अधिक बताया गया है।
हाल ही में 16 अक्तूबर को प्रकाशित थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आंकड़ों के अनुसार सितंबर, 2023 में थोक मुद्रास्फीति दर लगातार छठे महीने शून्य से नीचे घटकर सितंबर में -0.26 प्रतिशत दर्ज की गई। अगस्त महीने में थोक महंगाई दर पांच महीने के उच्च स्तर -0.52 फीसदी पर पहुंच गई थी। पिछले माह सितंबर में रासायनिक उत्पादों, खनिज तेल, कपड़ा, बुनियादी धातुओं और खाद्य उत्पादों की कीमतों में गिरावट थोक महंगाई के कम होना प्रमुख कारण है। ज्ञातव्य है कि थोक मूल्य सूचकांक थोक में बेचे और कारोबार किए गए सामानों की कीमतों में बदलाव का मूल्यांकन करता है। इसी तरह देश में खुदरा महंगाई में भी कमी आई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के अनुसार जुलाई, 2023 में जो खुदरा महंगाई दर 15 महीने के उच्चतम स्तर 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, वह अगस्त, 2023 में घटकर 6.8 फीसदी और सितंबर में 5.02 फीसदी के स्तर पर आ गई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में यह कमी इस बार सूचकांक से तय होने वाली इस दर में अनाज, सब्जी, परिधान, फुटवियर, आवास एवं सेवाओं की कीमतों में आई गिरावट की वजह से हुई है।
गौरतलब है कि 6 अक्तूबर को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लगातार चौथी बार नीतिगत ब्याज दर रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखने का निर्णय लिया है। खुदरा महंगाई के तय दायरे से अधिक होने के कारण रिजर्व बैंक ने यह फैसला लिया है। दरअसल, जब महंगाई ज्यादा होती है तो आरबीआई रेपो रेट बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रवाह को कम करने की रणनीति अपनाता है।
नि:संदेह इस समय देश में महंगाई को लेकर चुनौतियां मुंह बाएं खड़ी हैं। पिछले माह सितंबर के दौरान ज्यादातर समय कच्चे तेल का दाम 90 डॉलर प्रति बैरल से अधिक रहा है। अब ये और बढ़ कर 94 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर है। चूंकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरत का करीब 80 फीसदी आयात करता है, अतएव वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के तेजी से बढ़ते हुए मूल्यों के कारण महंगाई बढ़ने की आशंका है। जहां दुनिया के बाजारों में गेहूं, दाल और चावल की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं, वहीं चीनी की कीमतें तो 12 साल की रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं। इसी माह अक्तूबर, 2023 में त्योहारी मांग बढ़ने से गेहूं, अरहर की दालों व अन्य खाद्यान्नों के दाम बढ़ने लगे है। यह भी उल्लेखनीय है कि 18 अक्तूबर को सरकार द्वारा प्रकाशित खाद्यान्न उत्पादन आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022-23 में गेहूं का उत्पादन अनुमानित लक्ष्य से 20 लाख टन घटकर 11.05 करोड़ टन रहेगा, दालों का उत्पादन पिछले वर्ष 2.7 करोड़ टन से घटकर 2.6 करोड़ टन और चावल का उत्पादन भी घटकर 13.57 करोड़ टन होने का अनुमान है। ऐसे में गेहूं और दालों की कीमतें बढ़ने की आशंकाएं सामने हैं।
नि:संदेह, देश में बढ़ती कीमतों के कारण बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार और आरबीआई कई प्रयासों के साथ आगे बढ़े हैं। केंद्र सरकार ने विगत 29 अगस्त को घरेलू रसोई गैस सिलेंडर के दाम 200 रुपये घटाकर बड़ी राहत दी है। आरबीआई ने महंगाई के कारण ब्याज दर को न बदलते हुए पूर्ववत‍् रखने का महत्वपूर्ण फैसला किया है। केंद्र सरकार के द्वारा खाद्य पदार्थों के निर्यात पर लगातार सख्ती बरती जा रही है। पिछले साल 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद कम उत्पादन के कारण गेहूं के निर्यात पर जो पाबंदी लगाई गयी थी, वह अब तक जारी है। सरकार ने बासमती चावल के निर्यात के लिए 1200 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम मूल्य तय किया है। प्याज पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क लगाया है। सरकार ने 25 अगस्त से उबले चावल के निर्यात पर भी 20 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है।
दरअसल, गेहूं और चावल की बढ़ती कीमतों को काबू करने की कोशिश में सरकार जुटी हुई है। इसलिए सरकार ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) के जरिये रियायती दर पर गेहूं और चावल दोनों बेच रही है। इसी तरह सब्जियों, दालों और तिलहन के दाम काबू में रखने के लिए भी उपाय किए गए हैं। 25 सितंबर को निर्धारित हुआ है कि दाल के थोक व्यापारी या बड़ी रिटेल चेन अधिकतम 50 टन तुअर और 50 टन उड़द स्टॉक में रख सकेंगी। वहीं सभी खुदरा व्यापारियों के लिए यह सीमा पांच-पांच टन की होगी। दाल आयातक पोर्ट से दाल मिलने के बाद अधिकतम 30 दिनों तक ही दाल को अपने पास रख सकेंगे। आगामी 31 दिसंबर तक दाल के स्टॉक नियम का पालन करना होगा।
यद्यपि महंगाई के नए आंकड़ों से महंगाई नियंत्रित दिखाई दे रही है। लेकिन दुनिया के चुनौतीपूर्ण भूराजनीतिक और युद्धपूर्ण परिदृश्य के मद्देनजर महंगाई बढ़ने की आशंका बनी हुई है। खासतौर से गेहूं के दाम नियंत्रण के लिए खुले बाजार में मांग की पूर्ति के अनुरूप इसकी अधिक बिक्री जरूरी है। आटा मिलों को अधिक मात्रा में गेहूं देना होगा। साथ ही गेहूं के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दिए जाने की जरूरत है। यह भी ध्यान में रखा जाना होगा कि इस वर्ष सरकार 341 लाख टन के मुकाबले किसानों से 262 लाख टन गेहूं ही खरीद पाई है। यह भी ध्यान रख जाना होगा कि एक अक्तूबर तक सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक करीब 240 लाख टन था जो पिछले 5 साल के औसत करीब 376 लाख टन से की कम है।
देश में जमाखोरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई तेज की जानी होगी। अतिरिक्त नकदी की निकासी पर रिजर्व बैंक को ध्यान देना होगा। आवश्यक खाद्य पदार्थों के उपयुक्त रूप से आयात की रणनीति से मजबूत आपूर्ति से खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी को नियंत्रित किया जाना होगा। सरकार द्वारा खुदरा महंगाई नियंत्रण के लिए रणनीतिक रूप से एक ऐसी मूल्य नियंत्रण समिति का गठन करना होगा, जो बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव को देखते हुए कीमतों के अनियंत्रित होने से पूर्व ही मूल्य नियंत्रण के कारगर कदम उठाने के लिए तत्पर रहे।

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लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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