आओ चलो अब तो बागी हो जाएं
सहीराम
पार्टी का टिकट नहीं मिला, सो चलो बागी हो जाएं। पिछले पांच साल से वे इस पार्टी के वफादार थे, लेकिन वफादारी कुछ काम न आयी। इसलिए चलो अब बागी हो जाएं। जैसे जीवन और मृत्यु के बीच बस एक सांस का फर्क होता है वैसे ही वफादारी और बगावत के बीच बस एक टिकट का फर्क होता है। टिकट मिली तो वफादारी है, टिकट नहीं मिली तो बगावत है। वैसे ही जैसे पांव फिसला तो पतन है और सीढ़ी मिल गयी तो उत्थान है। वैसे ज्ञानी जन कहते हैं कि बागी हमेशा ही रहे हैं। कई बार वफादार भी बागी हुए हैं और बागियों को भी वफादार बनते देखा गया है। अगर आका का वरदहस्त मिल जाएगा तो कौन वफादार नहीं होगा।
राजशाही में तो अक्सर वफादार ही अंत में बागी मिलते थे। आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों को बागी कहा गया। ऐसा सम्मान बागियों को शायद पहली बार मिला हो। मौत के घाट तो वे राजशाही में भी उतारे जाते थे, लेकिन स्वतंत्रता संघर्ष में जिस धज से वे मकतल में गए, वो शान हमेशा सलामत रही। फिर बागी हुए चंबल क्षेत्र के। दूसरे क्षेत्रों में उन्हें डाकू कहा जाता है। एक चर्चित फिल्म का डायलॉग है कि डाकू तो जनप्रतिनिधि संस्था में भी होते हैं, चंबल में तो बागी होते हैं। यह जिगरा जेपी का ही था कि उन्होंने इन बागियों को हथियार डालने के लिए तैयार किया और बागी फिर सम्मानित नागरिक बने।
तो जी, बागी तो हमेशा ही रहे हैं। राजशाही में भी थे। अब लोकतंत्र में भी हैं। फर्क बस यही है कि राजशाही के बागी फौजें इकट्ठी करते थे, हथियार और रसद जुटाते थे और मैदान जाकर लड़ते थे, स्वतंत्रता आंदोलन के बागी हथियारों से भी लड़े और अहिंसा के रास्ते पर चलकर भी लड़े, चंबल के बागी मौत का खौफ दिखा कर लड़े और लोकतंत्र के यह बागी चुनावों के वक्त अपने अनुयायी दिखाकर, अपनी जाति दिखाकर, जनता में अपना रसूख दिखाकर लड़ते हैं। वे धमकी देते हैं। मैं अभी तक वफादार था, मुझे टिकट नहीं मिला तो मैं बागी हो जाऊंगा। मैं लड़ूंगा। हो सकता है लड़कर हार जाऊं। पर मैं लड़ूंगा। वे पार्टी कार्यालय पर अपने समर्थकों की फौज के साथ चढ़ाई कर देते हैं। नारेबाजी करते हैं। अपनी वफादारी याद कराते हैं।
वे याद दिलाते हैं कि कैसे उन्होंने पार्टी की मीटिंगें करायी थी। पोस्टर लगवाए थे। पैसे खर्च किए थे। वे पार्टी नेताओं के साथ अपनी फोटो दिखाते हैं कि कैसे हमें अपना माना जाता है। जैसे प्रेम में चोट खाया प्रेमी अपनी माशूका की बेवफाई के गीत गाया करता है, वैसे ही वे भी पार्टी की दगाबाजी के किस्से सुनाते हैं। पार्टी उन्हें मनाने की कोशिश करती है। लेकिन इन बागियों को मनाने के लिए पार्टी कोई जेपी नहीं ला पाती।