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हमारे शरीर-आत्मा में बसे हैं रंग

08:58 AM Mar 25, 2024 IST
हमारे शरीर आत्मा में बसे हैं रंग
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रेणु सैनी

‘बूंद जो बन गए मोती’ फिल्म का बड़ा ही खूबसूरत गीत हैः-
‘‘ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार है
दिशाएं देखो रंग भरी, चमक रही उमंग भरी
ये किसने फूल-फूल पे किया शृंगार है
ये कौन चित्रकार है, ये कौन चित्रकार है।’’
रंगों के बिना जीवन बेहद नीरस होता। रंगों में जीवन बसता है। कोयल की कूह-कूह, पपीहे की टेर, चिड़ियों की चीं-चीं, बंदर की खों-खों के स्वर भी रंगों को आवाज देते हैं। फागुन मास में हर ओर रंगों की छटा निखर जाती है।
प्रकृति के रंगों का मेला फागुन माह में सबसे अधिक खिल कर आता है। प्राचीनकाल से ही त्योहार प्रकृति के सुर को आवाज देते हैं। लोकपर्वों में रचे उत्सव हों या फिर राष्ट्रीय उत्सव। सभी उत्सव समय और परिस्थिति का संगीत रचते हैं। प्रकृति और ईश्वर का तालमेल इतना अनूठा है कि व्यक्ति दंग रह जाता है कि किस तरह ईश्वर ने नेत्रहीनों की आत्मा में रंग भरकर उन्हें ऐसी कूची प्रदान की है जिससे वे अपने भावों को रचते हैं।
नेत्रहीन विश्व प्रसिद्ध लेखिका हेलेन केलर का कहना था कि, ‘‘प्रकृति बेहद खूबसूरत है। जब मैं नेत्रहीन होने के बावजूद इसकी महत्ता को अनुभव कर सकती हूं तो वे लोग क्यों इसे अनुभव नहीं कर पाते जो प्रतिदिन अपनी आंखों से तरह-तरह के रंगों को देखने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।’’ हेलेन केलर मात्र जब डेढ़ साल की थी तभी वह तेज ज्वर से पीड़ित हो गईं। इस बुखार में उनके देखने, सुनने और बोलने की शक्ति चली गई। घर के सभी सदस्य नन्ही बालिका की बदकिस्मती पर आंसू बहाने लगे। जब बालिका कुछ बड़ी हुई तो हेलेन की मां ने उसे अनेक चिकित्सकों को दिखाया किंतु कहीं पर भी उनका इलाज नहीं हो पाया। तभी उन्हें एक कुशल अध्यापिका एनी सुलिवान मिली। एनी सुलिवान स्वयं कुछ सालों तक दृष्टिहीन रह चुकी थीं। डाॅ. एनेग्नास ने उनकी आंखों के नौ आॅपरेशन कर उन्हें आंखों की रोशनी प्रदान की थी। आंखों की रोशनी मिलने के बाद एनी सुलिवान नेत्रहीन बच्चों को पढ़ाने लगी थीं। एनी हेलेन को उसके माता-पिता से कुछ समय के लिए दूर ले गईं और वहां पर उन्होंने हेलेन को समझाया कि जीवन में मनुष्य जो पाना चाहता है, उसके लिए उसे सही तरीके से परिश्रम करना पड़ता है। प्रकृति खुली आंखों से जितनी खूबसूरत नज़र आती है बंद आंखों से भी वह इतनी ही खूबरसूरत लगती है, बस उसे देखने के लिए अंतर्मन के चक्षुओं को खोलना पड़ता है।’’
एनी की यह बात सुनकर हेलेन में सीखने के साथ-साथ काम करने की ललक पैदा होती गई और एनी के व स्वयं के अथक प्रयासों से वह अंग्रेजी, लेटिन, ग्रीक, फ्रेंच और जर्मन भाषाओं की जानकार बन गई। इसके बाद हेलेन में लिखने की प्रवृत्ति उत्पन्न हुई और उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं। आज उनकी विश्वप्रसिद्ध कृतियां अनेक भटके हुए लोगांे को राह दिखाती है। उन्होंने ब्रेल लिपि में अनेक ग्रंथ लिखे और विश्व प्रसिद्ध कृतियों को ब्रेल लिपि में प्रकाशित करवाया। वह पूरे विश्व के सामने एक अद्भुत व महान महिला बनकर उभरीं, जिन्होंने अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के बजाय मेहनत व लगन से अपने जीवन को संवारा। उन्होंने बंद आंखों से रंगों को महसूस कर न केवल अपनी बंद आंखों में अनेक रंग भरे अपितु कइयों के जीवन में खूबसूरत रंग भरे। हेलेन केलर का कहना था कि ‘‘ईश्वर एक दरवाजा बंद करता है तो दूसरा खोल देता है, पर हम उस बंद दरवाजे की ओर टकटकी लगाए बैठे रहते हैं। दूसरे खुले दरवाजे की ओर हमारी दृष्टि ही नहीं जाती।’’ हेलेन ने सिद्ध कर दिया था कि नेत्रहीन होने के बावजूद जीवन से रंग कम नहीं होते।
होली एक ऐसा संपूर्ण त्योहार है जिसमें रंगों के साथ-साथ खुशी, मिलन, प्रेम, मस्ती, क्षमा, हास-परिहास सभी का समावेश है। ओशो तो होली को किसी मनोवैज्ञानिक पर्व से कम नहीं मानते। वे कहते हैं कि, ‘‘ये पर्व व्यक्ति के मनोविकारों को दूर करता है।’’ रंग केवल प्रकृति निर्मित पेड़ों, पुष्पों, पशु-पक्षियों में ही नहीं बल्कि हमारी आत्मा और मन में भी हैं। जब मन खुशी से पुलकित होता है तो अपने आप ही वातावरण गुलाबी लगने लगता है। इसी तरह उदास मन की परतों पर कालिमा का गहरा आवरण चढ़ जाता है। प्रेम की कोंपलें फूटने पर लाल रंग हर जगह नज़र आता है। अगर हम गहनता से देखें तो पाएंगे कि शरीर के कण-कण में रंग हैं। अगर हम गहनता से अनुभव करें तो रंग हमारे शरीर से लेकर आत्मा तक में बसे हुए हैं।

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