जीवन की बहारों के रंग
रश्मि खरबंदा
काव्य पुस्तक ‘बहारों के संग’ की लेखिका रश्मि विद्यार्थी की पारिवारिक पृष्ठभूमि शिक्षा से जुड़ी रही है। परिवार में साहित्यिक वातावरण इनको सदैव साहित्य की ओर आकर्षित करता रहा है। प्रस्तुत पुस्तक इसका एक सरल उदाहरण है।
इस पुस्तक में उन्होंने कई गीतों व कविताओं को शृंखलाबद्ध किया है। उनकी रचनाओं के व्यापक विषयों में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। कोविड-काल में अध्यापकों-विद्यार्थियों ने जो समस्याएं झेली उसका कई कविताओं में विवरण दिया है। साथ ही कोरोना को पराजित करने की प्रेरणा भी दी है। शिक्षा के संस्कारों का गुणगान कई कविताओं में मिलता है। उनके विद्यार्थियों व बच्चों के प्रति उनका लगाव ज़ाहिर है। कविताएं ‘बच्चों को न भुलाना’ और ‘बलिदानी कहानी’ भावुक कर देने वाली हैं। बालवीरों के बलिदान पर लेखिका ने प्रकाश डाला है और उनको श्रद्धांजलि दी है। जहां कवयित्री ने बच्चों के निरालेपन को व्यक्त किया है, वहीं दूसरी ओर कविता ‘बुढ़ापे की बहार’ में बढ़ती उम्र के उत्साह को भी उजागर किया है।
कवयित्री का रुझान त्योहारों के जश्न और उल्लास की तरफ भी है। उदाहरणार्थ कविता ‘होली की रंगोली’ में वे लिखती हैं :-
‘बीत गई सो दीवाली है आने वाली अब होली है
सुख-दुख की भूल भुलैया में सुख मीठी गोली है।’
कवयित्री की रचनाओं में बच्चों व बड़ों के लिए कई स्पष्ट पाठ हैं, जिनमें प्रमुख रूप से हिंदुत्व, वैदिक ज्ञान, और धर्मपथ पर चलने की सीख है। कविताएं देश प्रेम से भरपूर हैं। निम्न पंक्ति इन विषय-वस्तुओं को बखूबी सारांशित करती है :-
‘देश धर्म के लिए मरना भी जीने से कुछ कम नहीं।’
वीरता, धर्मनिष्ठता, बचपन, बुढ़ापा, याराना, कोरोना, रिश्ते व ऐसी कई ज़िंदगी की ‘बहारों के संग’ चलने का सफल उदाहरण है यह किताब।
पुस्तक : बहारों के संग लेखिका : रश्मि विद्यार्थी प्रकाशक : एविंसपब प्रकाशन, छत्तीसगढ़ पृष्ठ : 96 मूल्य : रु. 200.