फिल्मों में भी खूब बिखरे प्रेम कथाओं के रंग
हिंदी फिल्मों में प्रेम स्थाई भाव रहा है। ब्लैक एंड व्हाइट दौर से रंगीन फिल्मों तक में जो बात हर दौर में समान रही, वो है प्रेम कहानी। चाहे एक्शन प्रधान हो, सामाजिक हो या कॉमेडी- उसमें लव स्टोरी जरूर रही। प्रेम कथा कामयाबी की गारंटी रही। हाॅलीवुड का असर कहें या कुछ ओर, अब कुछ सालों से जैसे फिल्म कहानियों में मोहब्बत हाशिये पर आ गई। ज्यादातर हिट फिल्मों के कथानक में प्रेम नदारद जैसा ही था।
हेमंत पाल
प्रेम यानी मोहब्बत कई दशकों तक फिल्मों के लिए सबसे मुफीद विषय रहा है। ये जीवन का ऐसा कोमल अहसास हैं, जिसे कहीं से भी मोड़कर उसे कथानक का रूप दिया जा सकता है। गिनती की जाए तो अभी तक जितनी भी फ़िल्में बनी, उनमें सबसे ज्यादा फिल्मों के विषय मोहब्बत के आसपास ही घूमते रहे। फिल्मों के शुरुआती समय में धार्मिक और पौराणिक कथाओं पर फ़िल्में बनी, फिर आजादी के बाद संघर्ष को विषय बनाकर कहानियां गढ़ी गई। लेकिन, उसके बाद 60 के दशक से लम्बे समय तक अधिकांश फिल्मों का कथानक मोहब्बत ही रहा। सफल-असफल प्रेम कहानियों पर खूब फ़िल्में बनी और पसंद की गई। राजा-महाराजाओं की मोहब्बत के किस्से भी दर्शकों को चाशनी चढ़ाकर परोसे गए। दरअसल, सिनेमा में मोहब्बत ऐसा जीवंत और जज्बाती विषय है, जिसकी सफलता की गारंटी ज्यादा होती है। सिनेमा का इतिहास बताता है कि परदे पर जब भी नए कलाकारों को उतारने का मौका आया, सबसे अच्छा विषय प्रेम से सराबोर कहानियों को ही समझा गया।
हर परिवेश में पनपा प्रेम
अब लगता है वो दिन ढल रहे हैं, जब फिल्म का पूरा कथानक हीरो-हीरोइन और खलनायक पर ही रच दिया जाता था। सामाजिक फ़िल्में बनाने के लिए पहचाने जाने वाले ‘राजश्री’ ने भी ग्रामीण परिवेश में कच्चे और सच्चे प्रेम को ही सबसे ज्यादा भुनाया! लेकिन, अब ज्यादातर फ़िल्में दर्शकों के बदलते नजरिये का संकेत हैं। जिस तरह हॉलीवुड में स्टोरी और कैरेक्टर को ध्यान में रखकर फ़िल्में बनती हैं, वही चलन अब हिंदी फिल्मों में भी आने लगा। क्योंकि, नई पीढ़ी के जो दर्शक हॉलीवुड की फिल्मों को पसंद करते हैं, वे हिंदी फिल्मों में भी वही देखना चाहते हैं। यही कारण है कि रोमांटिक फिल्मों के नायक रहे शाहरुख़ खान ने भी पठान, जवान और रईस जैसी फिल्मों में काम करने का साहस किया। अब आने वाली शाहरुख़ की अधिकांश फिल्मों से मोहब्बत नदारद होने लगी।
युवाओं का शगल है प्रेम कहानियां
प्रेम कहानियों वाली फिल्मों में प्रेमियों का मिलन का तरीका कई बार इतना जोरदार होता है, कि युवा दर्शक अपने प्रेम को भी उसी रूप में महसूस करके समाज और परिवार से विद्रोह तक कर देते हैं। इसके विपरीत जब मोहब्बत की दुखांत कहानियाें देवदास, एक दूजे के लिए, क़यामत से कयामत तक जैसी फ़िल्में बनती हैं, तो यही दर्शक हद से गुजर जाते हैं। वैसे तो सामान्य जिंदगी में भी प्रेम कथाओं की कमी नहीं, पर दर्शक फिल्मों के जरिये अपनी मोहब्बत के अधूरे सपनों को जीता है। मुगले आजम, देवदास, सोहनी महिवाल से लेकर ‘धड़क’ तक ने प्रेम को दर्शकों के दिलों में बसाया और जगाया। प्रेम के बिना भारतीय सिनेमा अधूरा है। इसका सबसे सशक्त उदाहरण है साहित्यकार शरद चंद्र की कालजयी रचना ‘देवदास’ जिस पर सबसे ज्यादा फ़िल्में बनीं और हमेशा ही पसंद भी की गईं।
प्रेम अब कथानकों का विषय नहीं
हाल के सालों में आने वाली फिल्मों के कथानकों का तो कलेवर ही बदल गया। कुछ साल पहले कि बात की जाए तो बजरंगी भाईजान, सुल्तान, दंगल, रुस्तम, नीरजा, पिंक, कहानी-2, एयरलिफ्ट, नील बटे सन्नाटा, उड़ता पंजाब, एमएस धोनी से लेकर ‘काबिल’ और ‘जॉली एलएलबी-2’ तक में हीरोइन की उपयोगिता नाम मात्र की रही। करण जौहर की फ़िल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में तो ब्रेकअप को सेलिब्रेट किया गया। आलिया भट्ट ने भी ‘डियर ज़िंदगी’ में ब्रेकअप के बाद जिंदगी को कहा जस्ट गो टू हेल! सलमान खान की ‘बजरंगी भाईजान’ और ‘सुल्तान’ दोनों ही फिल्मों में हीरोइन कहीं भी कहानी पर बोझ नहीं लगती। अक्षय कुमार की ‘रुस्तम’ वास्तव में एक प्रेम कहानी है, लेकिन उसकी कहानी का आधार कोर्ट केस ही रहता है। सोनम कपूर की फिल्म ‘नीरजा’ तो पूरी तरह एक एयर होस्टेस के कर्तव्य कहानी है। प्रेम कहानी को हाशिये पर रखने का यह ट्रेंड धीरे-धीरे आया और सफल भी हुआ। अब हीरो, हीरोइन फिल्म में होंगे तो, पर रोमांस करें ये जरूरी नहीं।
डेब्यू के लिए सबसे सफल फार्मूला
पहली बार परदे पर उतरने वाले कलाकारों के लिए भी प्रेम कथाएं सबसे ज्यादा बार सफलता का आधार बनी। जब भी किसी सितारे के बेटे या बेटी को दर्शकों के सामने उतारा गया, ऐसी पटकथा रची गई, जिसका मूल विषय प्रेम रहा। आमिर खान (कयामत से कयामत तक), सलमान खान-भाग्यश्री (मैंने प्यार किया), अजय देवगन (फूल और कांटे), ऋतिक रोशन-अमीषा पटेल (कहो ना प्यार है), संजय दत्त (रॉकी), सनी देओल-अमृता सिंह (बेताब), कमल हासन-रति अग्निहोत्री (एक दूजे के लिए), ऋषि कपूर-डिंपल (बॉबी), ट्विंकल खन्ना-बॉबी देओल (बरसात), दीपिका पादुकोण (ओम शांति ओम), रणवीर सिंह (बैंड बाजा बारात), रणबीर कपूर-सोनम कपूर (सांवरिया), आयुष्मान खुराना (विकी डोनर), आलिया भट्ट-सिद्धार्थ-वरुण (स्टूडेंट ऑफ द ईयर) आदि। बाद में इन्होंने रास्ते भी बदले, पर कैरियर के शुरुआती दौर में रिस्क लेने की हिम्मत नहीं की।
अंतहीन अमर प्रेम कथाएं
हिंदी सिनेमा में अमर प्रेम कथाओं की फेहरिस्त अंतहीन है। मुगले आजम, आवारा, कागज के फूल, साहिब बीवी और गुलाम, पाकीजा, आराधना, बॉबी, सिलसिला, देवदास, मैंने प्यार किया, कयामत से कयामत तक, उमराव जान, 1942 ए लव स्टोरी, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कुछ कुछ होता है, कल हो न हो और जब वी मेट के बाद बॉलीवुड में नई पीढ़ी के प्रेम को दर्शाने के लिए भी कई प्रेम कहानियां रची गई। जिसमें रहना है तेरे दिल में, बचना ए हसीनों, सलाम नमस्ते, वेकअप सिड, अजब प्रेम की गजब कहानी, रॉक स्टार, बर्फी, टू स्टेट्स, तनु वेड्स मनु, मसान जैसी अनेक फिल्में रही। आशय यह कि परदे पर मोहब्बत का ये सिलसिला न कभी रुका है न रुकेगा।
फिल्मों का कथानक कितना भी नयापन लिए हो, उसका मोहब्बत से दूर-दूर तक वास्ता न हो, फिर भी उसमें एक प्रेम कहानी जरूर पनपती है। क्योंकि, प्रेम जीवन की वो शाश्वत सच्चाई है, जिसे नकारा नहीं जा सकता! भारतीय दर्शक के जीवन में मोहब्बत के अलग ही मायने हैं और इन्हीं भावनाओं को वह हर पल जीता है। उसे ‘मुगले आजम’ की सलीम और अनारकली का इश्क कामयाब न होना उतना ही सालता है जितना ‘सदमा’ में श्रीदेवी और कमल हासन का बिछुड़ना। फिल्म बनाने वालों ने भी दर्शकों की इस कमजोरी को अच्छी तरह समझ लिया। फिल्मों के हर कथानक में एक लव स्टोरी इसलिए होती है, कि ये सबसे बिकाऊ तड़का जो होता है। लेकिन, अब धीरे-धीरे ये फार्मूला भी दरकने लगा। क्योंकि, नई पीढ़ी को ऐसी प्रेम कथाएं रास नहीं आती।