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तन-मन के रंग

08:55 AM Mar 25, 2024 IST
तन मन के रंग
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धुनिकता के दौर में शहरीकरण ने हमारे जीवन-व्यवहार को गहरे तक प्रभावित किया है। एक तो हम जीवन की भागम-भागम में लगातार मशीनी हो रहे हैं, वहीं सामान्य सामाजिक व्यवहार से दूर होते जा रहे हैं। लोगों में आम धारणा बलवती हुई है कि अगर पैसा है तो सब कुछ संभव है। दरअसल, हमारे सहज-सरल व्यवहार का सीधा रिश्ता हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा है। यदि हमारी सोच सकारात्मक है तो हम स्वस्थ रहते हैं। चिकित्सक भी मानते हैं कि सकारात्मकता से हमारे जीवन में स्वास्थ्यवर्धक हार्मोन्स निकलते हैं। होली एक ऐसा ही त्योहार है जो समाज के लिये एक सेफ्टीवॉल का काम करता है। मशीनी जिंदगी की एकरसता को तोड़ने का काम करता है यह पर्व। हम अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच और अधिकारी व कर्मचारी का भेद मिटाकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं। हिंदू-मुस्लिम की पहचान भूलकर गले मिल लेते हैं। रंगों का असर हमें व्यक्तिगत पहचान से मुक्त करता है। यह सारा वातावरण हमें सहजता व सरलता का बोध कराता है। दरअसल, आधुनिक जीवन शैली और शहरीकरण ने हमारे तीज-त्योहारों पर गहरा असर डाला है। त्योहार हमारी संस्कृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम करते हैं। वह बात अलग है कि त्योहार भी बाजार के हस्तक्षेप से मूल रूप जैसे नहीं रहे। लेकिन यह बात तय है कि देश के विभिन्न राज्यों में सांस्कृतिक विविधता और भौगोलिकता की छाप इस पर्व पर रहती है और जनमानस ने स्थानीय सांस्कृतिक विश्वासों से इसमें नये रंग भरे हैं।
हम होली के दिन पूरे वातावरण में फागुन की महक महसूस करते हैं। प्रकृति भी अपने उभार पर होती है। चारों तरफ फूलों से लदे पौधे व वृक्ष पर्व की सार्थकता को कई गुना बढ़ाकर हमारे मन को सुकून देते हैं। उस पर होली के रंगों का असर तन-मन को आल्हादित कर देता है। हर व्यक्ति में नई ताजगी व ऊर्जा का संचार होता है। शीत ऋतु की विदाई और ग्रीष्म ऋतु की दस्तक हमारे जीवन में नई उमंग भर जाती है। ये वातावरण हमारे जीवन की एकरसता को तोड़ता है। होली के उल्लास का अतिरेक हमें हल्का बना देता है। हम अपने गढ़े कृत्रिम दायरे से बाहर निकल पाते हैं। दरअसल, निजी जीवन में हमने इतनी कृत्रिमताएं ओढ़ ली हैं कि हम सहज व्यवहार नहीं कर पाते। होली हमें कुछ समय के लिये इस बनावटी व्यवहार से मुक्त होकर सहज होने का अवसर देती है। हमें मनुष्य और मनुष्यता का बोध कराती है। हम एक व्यक्ति के रूप में खुद को महसूस कर सकते हैं। लेकिन शहरी जीवन की भागमभाग हमें यह अवसर नहीं देती। निस्संदेह, संपत्ति, पद व रसूख जैसे दंभ हमें व्यक्ति रूप में सरल-सहज नहीं होने देते। यह त्योहार हमें अपने रंग भूलकर सतरंगी होने का अवसर देता है। तमाम चिकित्सीय अनुसंधानों से यह निष्कर्ष सामने आया है कि मन का गुबार निकलने से मनुष्य का रक्तचाप सामान्य होता है और व्यक्ति खुशी महसूस करता है। यह मौसम हमें व्यक्ति व प्रकृति से संवाद का अवसर देकर मनोकायिक रोगों से मुक्त भी करता है।

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