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रंग-रंग उत्सव हुआ

06:46 AM Mar 24, 2024 IST
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अशोक अंजुम

रंग-रंग उत्सव हुआ,
खिल-खिल उठा गुलाल
कर कमलों में फंस गए,
जब गोरी के गाल।
जब उतरेगी भांग ये,
तब टूटेगा मौन
घर से निकला कौन था,
घर को लौटा कौन।
हांफ रही हैं मस्तियां,
थकी-थकी मनुहार
महंगाई के बोझ से,
दबे हुए त्योहार।
घुला रसायन रंग में,
चेहरा दिया बिगाड़
पहली-सी रंगत बने,
कुछ तो कहो जुगाड़।

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दिन-दिन फीके हो रहे,
रंग पर्व के रंग
रिश्तों में कड़वाहटें,
भटके हुए प्रसंग।
देख प्रेम के रंग को,
सारी दुनिया दंग
राधा पर चढ़ता नहीं,
अन्य दूसरा रंग।
खुशी हुई बदरंग सब,
भड़क उठा कुल गांव
इस टोले में क्यों पड़े,
उस टोले के पांव।
गुजरेगा इस साल भी,
बिना रंग का फाग
सूनी पड़ी मुंडेर पर,
बोल न बोले काग।

फूले फले पलाश को,
लगा टेरने फाग
खूब प्रतीक्षा की चलो,
मिलकर छेड़ें राग।
इसने-उसने रंग दिया,
जिसका तनिक न मोल
कब आएगा रंग ले,
मेरे प्रियतम बोल।

कुल कॉलोनी ताक में,
कब तक रखूं संभाल
अब तो आ जा सांवरे,
लेकर रंग-गुलाल।
भाभी नभ में उड़ रहीं,
पीकर थोड़ी भांग
हंसना रोना नाचना,
तरह-तरह के स्वांग।

मात्र औपचारिक रहे,
अब होली के रंग
अब न झूमती टोलियां,
बजते नहीं मृदंग।

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