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COLONEL SOFIA QURESHI: सोफिया कुरैशी की सरकारी स्कूल में हुई थी पढ़ाई, यहां से है खास नाता

01:41 PM May 10, 2025 IST
कर्नल सोफिया कुरैशी। वीडियो ग्रैब

छतरपुर (मध्यप्रदेश), 10 मई (एजेंसी)

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COLONEL SOFIA QURESHI: छतरपुर की मिट्टी से निकलकर भारतीय सेना में शौर्य की मिसाल बनीं कर्नल सोफिया कुरैशी न सिर्फ़ देश की बेटियों के लिए प्रेरणा हैं, बल्कि यह दिखाने वाली जीवंत उदाहरण हैं कि सीमित संसाधनों में भी बड़े सपने देखे और पूरे किए जा सकते हैं।

कर्नल सोफिया कुरैशी का जन्म महाराष्ट्र के पुणे में हुआ, लेकिन उनका बचपन मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के नौगांव कस्बे में बीता। वर्ष 1981 में उन्होंने नौगांव के एक सरकारी स्कूल में पहली कक्षा में दाखिला लिया और तीसरी कक्षा तक यहीं पढ़ाई की। रिश्ते में उनके भाई आबिद कुरैशी बताते हैं कि सोफिया बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रही हैं। उनकी गंभीरता, अनुशासन और नेतृत्व क्षमता कम उम्र में ही झलकने लगी थी।

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सोफिया का सैन्य जीवन में प्रवेश कोई संयोग नहीं था, बल्कि यह उनके परिवार की परंपरा का विस्तार था। उनके पिता ताज मोहम्मद कुरैशी सेना में सूबेदार मेजर रहे और 1971 के युद्ध में हिस्सा लिया था। उनके दादा मोहम्मद हुसैन कुरैशी भी सेना में थे। इस वीरता और सेवा की विरासत को सोफिया ने गर्व से आगे बढ़ाया।

जब नौगांव स्थित मिलिट्री कॉलेज को पुणे स्थानांतरित किया गया, तो उनका परिवार भी वहीं चला गया। यहीं से उनकी सैन्य पृष्ठभूमि और मजबूत हुई। बाद में उनके पिता का स्थानांतरण रांची और फिर वडोदरा हुआ, जहां वे सेवानिवृत्त हुए।

ऑपरेशन सिंदूर: नारी नेतृत्व का प्रतीक

8 मई 2024 को जब भारतीय सशस्त्र बलों के “ऑपरेशन सिंदूर” की जानकारी देने के लिए मीडिया ब्रीफिंग हुई, तो इतिहास में पहली बार दो महिला सैन्य अधिकारियों कर्नल सोफिया कुरैशी और वायु सेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने इसका नेतृत्व किया। यह निर्णय सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं था, बल्कि इसने भारतीय सेना में महिला अधिकारियों की भूमिका की गंभीरता को दर्शाया।

सोफिया की हिंदी में आत्मविश्वास से भरी ब्रीफिंग ने न सिर्फ़ उनके नेतृत्व कौशल को उजागर किया, बल्कि इस बात को भी साबित किया कि सेना में महिलाएं केवल सहयोगी भूमिका में नहीं, बल्कि निर्णायक नेतृत्व में भी बराबरी से खड़ी हैं।

नौगांव से अब भी जुड़ा है दिल

हालांकि सोफिया अब देश के विभिन्न हिस्सों में तैनात रहती हैं, लेकिन उनका दिल अब भी नौगांव में ही धड़कता है। उनके रिश्तेदार बताते हैं कि वे अक्सर नौगांव आती रही हैं, विशेषकर जब झांसी के पास बबीना में उनकी पोस्टिंग थी। हर साल 11 जनवरी को नौगांव के स्थापना दिवस पर वे विशेष रूप से शुभकामनाएं भेजती हैं।

उनके परिवार की जड़ें अब भी खजुराहो के पास हकीमपुरा और चित्राई गांवों में फैली हैं, जहां उनकी कृषि भूमि है। उनके पिता द्वारा अपनी बहन को दिया गया रंगरेज इलाके का घर आज भी कुरैशी परिवार के रिश्तों का प्रतीक है।

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