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कोट का सीजन और ज़िंदगी की खीझ

07:57 AM Mar 06, 2024 IST

प्रदीप औदिच्य

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वह अलमारी के एक कोने में टंगे-टंगे सालभर झांकता रहता है। सर्दियां आते ही वह थोड़ा-सा कसमसाता है जैसे पिंजरे में बन्द पंछी बाहर निकलने को तड़फड़ाता है। मध्यवर्गीय परिवारों के कोट की यही हालत होती है।
पूरी जिंदगी में सिर्फ दो बार कोट बनता है। एक जब खुद की शादी हो और दूसरी बार जब खुद के बेटे की शादी हो। पहले वाला कोट बनने से दूसरे कोट बनने के बीच इतनी दूरी होती है कि बच्चे जन्म लेकर मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वा लेते हैं। पहले वाला कोट कई दोस्तों और रिश्तेदारों की शादियां निपटा लेता है।
अलमारी में टंगे हुए कोट को कभी इतराने का मौका ही नहीं मिलता। मध्यवर्गीय परिवार में सूट की कौन-सी डिज़ाइन चल रही है, चेक या प्लेन इससे उन्हें कोई मतलब नहीं। टीवी पर दिखाए जाने वाले सूट के कपड़े के इश्तिहार में आम आदमी सिर्फ अमिताभ बच्चन को देखता है, वह सूट की डिजाइन देखता ही नहीं। सर्दियों में शादी का सीजन शुरू होते ही कोट को लगने लगता है कि चलो इस अलमारी में से बाहर झांकने का मौका मिलेगा। अपने बस इन्हीं दिनों के इंतजार में रहता है।
आम आदमी की ज़िदगी में शादी के अलावा ऐसा कोई और अवसर नहीं आता जब कोट पहनने को मिले। खुद की शादी में बना कोट कई साल तक पेट बाहर निकलने के कारण फिट नहीं आता। क्योंकि उस समय जब कोट की सिलाई हुई थी, तब कोट का नाप पेट के हिसाब से था। अब पेट खुद ही मकान के छज्जे जैसा बाहर निकला है, उस पर बेहद मुश्किल से खींच कर लगाए बटन से कोट शरीर पर कसा हुआ है। वह बिना किसी हिचक के कोई भी बता सकता है कोट की कोई मर्जी नहीं थी।
हर साल सर्दियां आते ही कोट की पूछ परख बढ़ने लगती है। कई बार आदमी के मन में आता है कि इस बार एक कोट नया लिया जाए, फिर पेंट की जेब और बच्चों की स्कूल फीस पर निगाह जाते ही अपनी नजर अलमारी में टंगे कोट की तरफ बढ़ा देता है।
शादी के सीजन के अलावा एक-आध बार बच्चों के स्कूल के सालाना कार्यक्रम में बच्चों की जिद पर पहन कर जाने का अवसर भी मिलता और ऑफिस की किसी की विदाई पार्टी पर भी। लेकिन कोट की ये ड्यूटी सिर्फ बड़े साहब के अतिरिक्त चार्ज जैसी होती है, मूल पद स्थापना पर उसका काम तो शादी के कार्यक्रम निपटाने का ही है।
कुछ आदमी अपने कोट को अतिरिक्त सजाने के लिए गले में टाई भी लटका लेते हैं। टाई की गांठ अपनी रजत जयंती मना चुकी होती है। वह टाई भी उसी समय घर में अाई थी जब ये कोट आया था। दोनों का जन्मदिन एक ही दिन आता है। कभी-कभी आदमी को शादी का एकमेव कोट पसन्द ही नहीं आता, पर चूंकि वह ससुराल में मिला होता है इसलिए पत्नी की तीखी नजरों का भी सम्मान रखना पड़ता है।

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