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मजबूत लोकतंत्र में मजबूरियों के गठबंधन

07:16 AM Nov 05, 2024 IST

आलोक पुराणिक

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यूएस बिजनेस एंड पॉलिटिकल यूनिवर्सिटी का एक प्रोफेसर आया था महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव समझने के लिए। मैंने कोशिश की, उसे समझाने की।
अमेरिकन प्रोफेसर उर्फ अप्रो-जी महाराष्ट्र चुनाव में कौन-सी पार्टी किस पार्टी के खिलाफ लड़ रही है, यह साफ कीजिये।
‘बंधुवर, महाराष्ट्र में कोई एक पार्टी किसी दूसरी पार्टी के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ रही है, बल्कि हर पार्टी बाकी हर पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ रही है। महाराष्ट्र में यूं गठबंधन चलता हुआ दिखाई देता है, पर सच में सिर्फ लट्ठ चल रहे हैं।’
‘पर चुनाव चल रहे हैं या लट्ठ चल रहे हैं।’
‘दोनों एक ही टाइप की बातें हैं। समझिये शरद पवार अपने भतीजे अजित पवार से लड़ रहे हैं, अजित पवार शरद पवार से लड़ रहे हैं। अजित अपने ही गठबंधन की पार्टनर पार्टी भाजपा से भी लड़ रहे हैं। भाजपा अजित पवार के उम्मीदवार के खिलाफ लड़ रही है। भाजपा अपने ही गठबंधन के पार्टनर शिंदे के खिलाफ भी लड़ रही है।’
‘अजित पवार किसकी तरफ हैं।’
‘अजित पवार किसी की तरफ नहीं हैं, वह सिर्फ अपनी तरफ हैं। एक वक्त वह शरद पवार के साथ थे, कुछ घंटों के लिए वह देवेंद्र फडणवीस के साथ आकर भाजपा के साथ सरकार बना गये, फिर वह वापस शरद पवार के पास चले गये, फिर वह वापस देवेंद्र फडणवीस के साथ आकर उपमुख्यमंत्री बन गये। अभी वह भाजपा के साथ हैं, पर वह भाजपा के साथ पक्के तौर पर नई है।’
‘पूरा समझ नहीं आ रहा है।’
‘देखिये पूरी बात तो वह भी समझ नहीं पा रहे हैं, जो खुद को घणा समझदार माने बैठे हैं। उद्धव ठाकरे बहुत समझदार मानते हैं खुद को, मुख्यमंत्री बनने के चक्कर में कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिये, अब कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर पेश करने से इनकार कर दिया। यहां सब सिर्फ अपने साथ हैं।’
‘तो कोई किसी के साथ नहीं है, तो गठबंधन किस बात का है।’
‘गठबंधन इस बात का है कि हमें सीएम बनना है, बाकी सब बातें फर्जी हैं।’
‘पर कोई किसी को सीएम बनाने पर राजी नहीं है, तो कोई सीएम बन कैसे सकता है।’
‘सीएम कोई भी अपने बूते बनता है, सीएम कोई अपनी मजबूती से नहीं, बाकियों की मजबूरी से बनता है। उद्धव ठाकरे इतने मजबूत ना थे कि अपने बूते सीएम बन जाते, तो उन्होंने कांग्रेस और शरद पवार से हाथ मिला लिया। शरद पवार और कांग्रेस की मजबूरी यह थी कि अगर उद्धव ठाकरे को सीएम न बनाते, तो वह साथ आने को तैयार न थे। एक बार भाजपा से अलग कर दिया उद्धव ठाकरे को, तो फिर उद्धव ठाकरे मजबूर हो गये कि जो बात शरद पवार कहें, उसे मानें।’
‘आप समझ गये बात को भारत का लोकतंत्र बहुत मजबूत लोकतंत्र है।’
‘लेकिन लोकतंत्र बहुत ही मजबूर लोकतंत्र है।’

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