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सफाई ही दवा बनेगी बरसाती त्वचा रोगों में

08:40 AM Jul 19, 2023 IST
सफाई ही दवा बनेगी बरसाती त्वचा रोगों में
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रजनी अरोड़ा

मानसून का मौसम ठंडी फुहारों के साथ जहां उमंगें लेकर आता है वहीं इस दौरान उमस से परेशानी भी खूब होती है। यह कई बार हमारी सेहत खासकर त्वचा के लिए कष्टकारक हो जाता है। पसीने व चिपचिपाहट के चलते बीमारियां फैलाने वाले बैक्टीरिया, वायरस, फंगस सक्रिय हो जाते हैं जिनसे फंगल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन होते हैं। वातावरण की नमी त्वचा के पोर बंद कर देती है जिससे अंदरूनी त्वचा सांस नहीं ले पाती। समुचित मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाने की वजह से त्वचा रोग होने की आशंका रहती है। ध्यान न रखने पर किसी भी उम्र के व्यक्ति खासकर महिलाओं को यह परेशानी ज्यादा होती है।
स्किन फंगल इन्फेक्शन
उमस के कारण बहुत ज्यादा पसीना आता है जिससे स्किन में ड्राईनेस आ जाती है। ऑयली स्किन वाली महिलाओं के शरीर में पसीने की वजह से स्किन में ज्यादा मॉयश्चर रहने या गीले कपड़े पहनने से कीटाणु (माइक्रोब्स) पनपने लगते हैं। इनसे घमौरियां, लाल रंग के छोटे-बड़े रैशेज़ और रिंगवॉर्म यानी दाद-खाज, एक्ज़ीमा जैसे फंगल इन्फेक्शन हो सकते हैं। ये ज्यादातर उन जगह पर होते हैं जहां स्किन फोल्ड होती है जैसे-गर्दन, जांघ, बगल, पेट, कमर और ब्रेस्ट के निचले हिस्से में। रिंगवॉर्म लाल रैशेज की तरह होते हैं जो अंदर से साफ होते हैं और बाहर की तरफ फैलते जाते है। ये एक व्यक्ति से दूसरे में फैल सकते हैं। इनमें काफी खुजली और जलन रहती है। इसके अलावा चेहरे पर मुंहासे उभर आते हैं। महिलाओं में वजाइनल फंगल इन्फेक्शन भी बरसात के मौसम में ज्यादा होता है।
बालों में फंगल इन्फेक्शन
वातावरण में नमी का असर बालों पर भी पड़ता है। बारिश में भीगने, गीले होने, पसीने से तर-ब-तर होने या मॉयश्चर अधिक होने के कारण इस मौसम में बाल भी बच नहीं पाते। नियमित सफाई के अभाव में चिपचिपे, बेजान और फंगल इन्फेक्शन के शिकार हो जाते हैं। स्कैल्प पर डेंड्रफ, दाने हो जाते हैं जिससे जड़ें कमजोर पड़ जाती हैं और बाल झड़ने लगते हैं।
एथलीट फुट
बंद जूते या बैली पहनने वालों के पैरों में यह इन्फेक्शन होता है। अक्सर जूतों में पानी चला जाता है। ज्यादा देर तक गीले जूते पहने रहने से पैरों में खुजली, सूजन और फंगल इन्फेक्शन हो सकता है। पैरों की उंगलियों के बीच स्किन सफेद पड़ जाती है और नाखून खराब हो सकते हैं।
डायबिटीज फुट
डायबिटीज पीड़ित महिलाओं को तो अपने पैरों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। बारिश में बैक्टीरिया युक्त जल-भराव से पैर अक्सर गीले रह जाते हैं जिससे फंगल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन होने का खतरा रहता है। ध्यान न देने पर इन्फेक्शन बढ़ भी सकता है जो धीरे-धीरे पैर के टिशूज डैमेज करने लगता है। पैरों में दुर्गंध, एडिमा या सूजन, अल्सर जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
कैसे करें बचाव

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पर्सनल हाइजीन
एंटीबैक्टीरियल या ग्लिसरीन युक्त साबुन से दिन में दो बार स्नान करें और अंडर गार्मेंट जरूर बदलें। बाल एक दिन छोड़ कर जरूर धोएं। जहां तक हो सके बालों में तेल न लगाएं, या फिर नहाने से एक घंटा पहले गुनगुने तेल में नींबू मिलाकर लगाएं। माइल्ड एंटी डेंड्रफ शैंपू इस्तेमाल करें। मॉयश्चर कम रखने के लिए बाल धोने के बाद पानी में नींबू रस मिलाकर रिन्स करें। स्किन इन्फेक्शन से बचने के लिए यथासंभव प्रभावित क्षेत्र को सूखा रखें। एंटी-बैक्टीरियल पाउडर लगाएं। रोजाना एकाध बार बर्फ से सिंकाई करें। खुजली ज्यादा होने पर मेडिकेटिड क्रीम या कैलेमाइन लोशन लगाएं।
कपड़े सूती और हल्के पहनें
सिंथेटिक,मोटे और टाइट फिटिंग के कपड़ों के बजाय ढीले, हल्के रंग के, पतले और सूती वस्त्र पहनें। एम्ब्रॉयडरी किए हुए और डिजाइनर कपड़े पहनने से बचें। सूती कपड़ों में हवा पास होने से पसीने से बचाव होता है।
आसपास का वातावरण
घर में नमी कम करने के लिए कूलर की बजाय एसी और ह्यूमिडीफायर इस्तेमाल करें। ये अंदर की हवा और नमी को बाहर निकाल देता है। घर के अंदर कपड़े न सुखाएं।
पैरों का ध्यान
बारिश में पैरों को नमी से जरूर बचाएं। तैलीय ग्रंथियां कम होने की वजह से पैर ड्राई होकर उनमें क्रैक्स पड़ सकते हैं। इन्फेक्शन होने का खतरा रहता है। ऐसे में पैर रोज स्क्रबर से साफ करें। तौलिये से सुखाकर मॉश्चराइजिंग क्रीम लगाएं। नाखूनों में अवांछित गंदगी से बचने के लिए समय-समय पर ट्रिम करते रहें। बारिश में भीगे पैरों को साफ पानी में कुछ बूंदें डिटोल डाल अच्छी तरह धोएं। पैरों की उंगलियों के बीच एंटीबैक्टीरियल पाउडर लगाएं। बंद जूतों के बजाय क्रोक्स, फ्लोटर्स, फ्लिप फ्लॉप, सैंडलनुमा वॉटरप्रूफ या रबड़ के जूते पहनें। आगे से चौड़े जूते पहनें। रोजाना अंदर-बाहर से सफाई करें ताकि जूतों में नमी या मिट्टी न रह जाए। इससे उनमें बैक्टीरिया पनपने और फंगल इन्फेक्शन का खतरा नहीं रहता है।
-नयी दिल्ली बेस्ड त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. सीरिशा सिंह से बातचीत पर आधारित

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