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स्वच्छता अभियान हो पहली प्राथमिकता

06:50 AM Feb 23, 2024 IST

ज्ञानेन्द्र रावत

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दिल्ली में जल्द ही यमुना घाट पर हरिद्वार और बनारस की तरह भव्य आरती का नजारा दिखेगा। कुटिया घाट के नाम से मशहूर रिंग रोड के किनारे स्थित वासुदेव घाट को आरती के लिए तैयार किया जा रहा है। हालांकि, इसकी तैयारी जी-20 सम्मेलन से पहले शुरू कर दी गयी थी। लेकिन यमुना में आयी बाढ़ ने इस काम को प्रभावित किया। पता चला है कि अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला के प्राण-प्रतिष्ठापन समारोह के दिन भी यहां आरती का आयोजन किया गया था। आजकल इन घाटों का सौंदर्यीकरण तेजी से किया जा रहा है। ट्यूलिप के पौधे लगाये जा रहे हैं, घाटों पर सीढ़ियां बनायी जा रही हैं और छोटी-छोटी हट भी बनाई जा रही हैं।
देखा जाये तो दिल्ली में दर्शनीय स्थलों की वैसे ही भरमार है, उनमें एक नाम और जुड़ जायेगा। हां, दिल्लीवासियों के लिए यह जगह कहें या घाट, एक नयी सैरगाह जरूर हो जायेगी। इस प्रयास को सराहा ही जाना चाहिए। भले दिल्ली की जीवनदायिनी यमुना ज़हरीली हो गयी हो। उसमें लैड, काॅपर, जिंक, निकेल, कैडमियम और क्रोमियम जैसे सेहत के लिए हानिकारक तत्व मौजूद हों। भले ही यमुना रसायन के चलते बजबजाते झाग को रोकने के लिए समूचे सीवेज के ट्रीटमेंट की जरूरत के अलावा अपने उद्धार के लिए तरस रही हो।
बीते दशकों का इतिहास इसका गवाह है कि यमुना साल-दर-साल कितनी प्रदूषित हुई है। उसके जल आचमन की बात तो दीगर है, वह जानलेवा बीमारियों का सबब बन गया है। पहले यमुना में जल प्रवाह को ही लें, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के अनुसार यमुना नदी के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पड़ने वाले हिस्से में जल प्रवाह 23 घन मीटर प्रति सेकेंड क्यूसेक कम है।
पिछले पखवाड़े जल संसाधन सम्बंधी एक संसदीय स्थायी समिति ने अपनी सिफारिश में दिल्ली में यमुना के 22 किलोमीटर लम्बे हिस्से में 23 घन मीटर प्रति सैकेंड क्यूसेक ई-फ्लो रखे जाने की बात कही थी। डीपीसीसी की मानें तो 23 क्यूसेक का ई-फ्लो जैविक आक्सीजन मांग यानी बीओडी का स्तर घटाकर 12 मिलीग्राम प्रति लीटर कर देगा। गौरतलब है कि बीओडी किसी नदी या जलाशय में मौजूद कार्बनिक पदार्थों को विघटित करने के लिए सूक्ष्मजीवों के लिये जरूरी आक्सीजन की मात्रा है।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि दिल्ली में पड़ने वाला नदी का हिस्सा इसके तकरीबन 80 फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। ई-फ्लो जलप्रवाह की न्यूनतम मात्रा है जो किसी भी नदी या जलाशय को अपनी पारिस्थितिकी बरकरार रखने के लिए जरूरी है। मौजूदा दौर में हरियाणा के यमुनानगर स्थित हथिनी कुंड बैराज से मात्र 10 क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है। जबकि 23 क्यूसेक पानी यानी 43.7 करोड़ गैलन रोजाना अक्तूबर से जून के महीने के दौरान नदी में छोड़ा जाना चाहिए।
लोकसभा की स्थायी समिति द्वारा यमुना पर तैयार रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि यमुना के जल में भारी धातु के प्रदूषक तत्वों की भरमार है जो जानलेवा बीमारियों के कारण हैं। समिति ने माना है कि लैड से वयस्कों में रीढ़ की हड्डियों से जुड़ी नसों से सम्बंधित पैरीफेरल न्यूरोपैथी और खासकर बच्चों में काग्निटिव इंपेयरमेंट, कापर से सिर दर्द, किडनी संबंधी बीमारी, उल्टियां और दस्त के साथ नौसिया, जिंक से लिवर व किडनी से जुड़ी बीमारियां, निकेल से न्यूरोटाक्सिक, जेनेटाक्सिक और कार्सीनोजेनिक, कैडमियम से किडनी और लिवर से जुड़ी बीमारी के साथ आंत्रशोथ और क्रोमियम से न्यूरोनल डैमेज, हेपेटिक व गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल आदि जानलेवा बीमारियां जन्म लेती हैं।
समिति ने यमुना में झाग बनने से रोकने हेतु दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से प्रवाहित होने वाले समूचे सीवेज का ट्रीटमेंट किये जाने की जरूरत बताई है। इस झाग का बड़ा कारण बिना ट्रीटमेंट वाले सीवेज में फास्फेट आदि की मौजूदगी है। इस झाग से त्वचा रोग और संक्रमण का खतरा बना रहता है। जरूरी है कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों यानी एसटीपी की तकनीक को उन्नत बनाया जाये। उनकी क्षमता में बढ़ोतरी की जाये और सभी उद्योगों को साझा अपशिष्ट उपचार संयंत्रों से जोड़ा जाये।
इसके साथ ही समिति ने ऐसे नियम, दिशा-निर्देश तैयार करने को कहा है कि जिसमें यमुना सहित देश की सभी नदियों में अपशिष्ट प्रवाहित किये जाने के खिलाफ दंडात्मक प्रावधान हो। समिति ने जल संसाधन विभाग को यह भी सुझाव दिया है कि वह यमुना नदी के लिए भी स्वच्छ गंगा मिशन की तर्ज पर एक कोष की स्थापना करे ताकि नदी की सफाई से जुड़े कामों में पैसे की कमी आड़े न आये।
वैसे यमुना की सफाई पर अभी तक करोड़ों रुपये स्वाह हो चुके हैं। हकीकत यह कि यमुना में बीओडी का स्तर लगातार बढ़ रहा है। यह पहले से 20 गुणा ज्यादा मैली जरूर हो गयी है। यमुना आज भी बदहाली में जीने को विवश है। इसका अहम कारण यमुना का वोट बैंक न होना है। यदि ऐसा होता तो यमुना कब की शुद्ध, निर्मल, अविरल बन चुकी होती।
अच्छा तो यह होता कि यमुना की भव्य आरती का आयोजन तब होता जब यमुना मैला ढोने वाली गाड़ी के अभिशाप से मुक्त हो जाती। उसी स्थिति में यमुना स्वयं को सम्मानित भी अनुभव करती और उसका गौरव भी बना रहता। अन्यथा ऐसे आयोजनों से यमुना का भला होगा, इसमें संदेह है।

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