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CJI बोले- न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब हमेशा सरकार के खिलाफ फैसला सुनाना नहीं

03:05 PM Nov 05, 2024 IST
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़़ की फाइल फोटो।

नयी दिल्ली, 5 नवंबर (भाषा)

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DY Chandrachud: सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब हमेशा सरकार के खिलाफ फैसले देना नहीं है। एक मीडिया समूह द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम में चंद्रचूड़ ने कहा कि कुछ दबाव समूह हैं जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का इस्तेमाल कर अदालतों पर दबाव डालकर अनुकूल फैसले लेने की कोशिश कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘परंपरागत रूप से, न्यायिक स्वतंत्रता को कार्यपालिका से स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित किया गया है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ अब भी सरकार से स्वतंत्रता है, लेकिन न्यायिक स्वतंत्रता के संदर्भ में यह एकमात्र चीज नहीं है।''

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उन्होंने कहा, ‘‘हमारा समाज बदल चुका है। विशेष रूप से सोशल मीडिया के आने के बाद, आप हित समूह, दबाव समूह और ऐसे समूहों को देखते हैं जो अनुकूल निर्णय लेने के लिए अदालतों पर दबाव बनाने के उद्देश्य से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं।''

इस महीने की 10 तारीख को प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो रहे चंद्रचूड ने कहा कि अगर न्यायाधीश उनके पक्ष में फैसला करते हैं तो ये दबाब समूह न्यायपालिका को स्वतंत्र बताते हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अगर आप मेरे पक्ष में फैसला नहीं करेंगे, तो आप स्वतंत्र नहीं हैं। इसी बात से मुझे आपत्ति है। स्वतंत्र होने के लिए, एक न्यायाधीश को यह निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए कि उनकी अंतरात्मा उन्हें क्या कहती है, निश्चित रूप से, अंतरात्मा जो कहती है वह कानून और संविधान द्वारा निर्देशित है।''

चंद्रचूड़ ने कहा कि जब उन्होंने सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया और चुनावी बांड रद्द कर दिया तो उन्हें स्वतंत्र कहा गया। उन्होंने कहा, ‘‘जब आप चुनावी बांड पर निर्णय करते हैं, तो आप बहुत स्वतंत्र होते हैं, लेकिन अगर फैसला सरकार के पक्ष में जाता है, तो आप स्वतंत्र नहीं हैं... यह मेरी स्वतंत्रता की परिभाषा नहीं है।'' उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को मामलों का फैसला करने की छूट दी जानी चाहिए।

गणपति पूजा पर पीएम का मेरे आवास पर आने में कुछ भी गलत नहीं था

सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़़ ने गणपति पूजा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उनके आधिकारिक आवास पर आने में “कुछ भी गलत नहीं” था और ऐसे मुद्दों पर “राजनीतिक हल्कों में परिपक्वता की भावना” की जरूरत है। प्रधानमंत्री के सीजेआई के घर जाने के औचित्य और न्यायपालिका व कार्यपालिका की सीमाओं पर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों और वकीलों के एक वर्ग ने सवाल उठाए थे। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए कहा था कि ‘‘यह देश की संस्कृति का हिस्सा है।''

सीजेआई चंद्रचूड़ कहा कि इस बात का सम्मान किया जाना चाहिए कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संवाद मजबूत अंतर-संस्थागत तंत्र के तहत होता है और दोनों की शक्तियों के पृथक्करण का मतलब यह नहीं है कि वे एक-दूसरे से मिलेंगे नहीं। उन्होंने कहा, "शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा का यह अर्थ नहीं है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका इस भावना में एक-दूसरे से अलग हैं कि वे मिलेंगे नहीं या तर्कसंगत संवाद नहीं करेंगे। राज्यों में, मुख्य न्यायाधीश और हाई कोर्ट की प्रशासनिक समिति का मुख्यमंत्री से मिलने और मुख्यमंत्री के मुख्य न्यायाधीश से उनके आवास पर मिलने का एक प्रोटोकॉल है। इनमें से अधिकांश बैठकों में बजट, बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी आदि जैसे बुनियादी मुद्दों पर चर्चा की जाती है।”

सीजेआई ने प्रधानमंत्री के उनके आवास पर आने के बारे में कहा, “प्रधानमंत्री गणपति पूजा के लिए मेरे घर आए। इसमें कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि सामाजिक स्तर पर न्यायपालिका और कार्यपालिका से जुड़े व्यक्तियों के बीच निरंतर बैठकें होती हैं। हम राष्ट्रपति भवन में, गणतंत्र दिवस आदि पर मिलते हैं। हम प्रधानमंत्री और मंत्रियों से बात करते हैं। इस दौरान उन मामलों पर बात नहीं होती, जिनपर हमें फैसला लेना होता है, बल्कि सामान्य रूप से जीवन और समाज से जुड़े मामलों पर बात होती है।”

किसी मामले का गुण-दोष मीडिया में किए गए चित्रण से काफी अलग हो सकता है

दिल्ली दंगों के मामले में जेल में बंद जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई में हो रही देरी के बारे में पूछे जाने पर प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी मामले का गुण-दोष उससे काफी अलग हो सकता है जैसा वह मीडिया में दिखाया जाता है।

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि एक न्यायाधीश किसी मामले की सुनवाई करते समय अपने दिमाग का पूरा इस्तेमाल करता है और बिना किसी पक्षपात के, उसके गुण-दोष के आधार पर फैसला करता है। उन्होंने कहा कि मीडिया में एक विशेष मामला महत्वपूर्ण हो जाता है और फिर उस विशेष मामले पर अदालत की आलोचना की जाती है।

उन्होंने कहा, ‘‘प्रधान न्यायाधीश का पद संभालने के बाद मैंने जमानत के मामलों को प्राथमिकता देने का फैसला किया, क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा होता है। यह तय किया गया कि शीर्ष अदालत की कम से कम हर पीठ को जमानत के 10 मामलों की सुनवाई करनी चाहिए। नौ नवंबर 2022 से एक नवंबर 2024 के बीच सुप्रीम कोर्ट न्यायालय में जमानत के 21,000 मामले दायर किए गए। इस अवधि के दौरान जमानत के 21,358 मामलों का निपटारा किया गया।''

उन्होंने कहा कि इसी अवधि के दौरान मनी लांड्रिंग निवारण अधिनियम के तहत दायर 967 मामलों में से 901 का निपटारा किया गया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हाल के महीनों में दर्जनों राजनीतिक मामले ऐसे हैं जिनमें जमानत दी गयी है। इन मामलों में प्रमुख राजनीतिक लोग शामिल हैं। अक्सर मीडिया में किसी मामले के एक खास पहलू को पेश किया जाता है।''

उन्होंने कहा, ‘‘जब कोई न्यायाधीश किसी मामले के रिकॉर्ड पर ध्यान देता है, तो जो सामने आता है, वह उस विशेष मामले के गुण-दोष के बारे में मीडिया में दिखाए गए चित्रण से बहुत अलग हो सकता है। न्यायाधीश संबंधित मामलों पर अपना ध्यान केंद्रित करता है और फिर मामले पर फैसला करता है।''

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘अपनी बात करूं तो मैंने ए से लेकर जेड (अर्नब गोस्वामी से लेकर जुबैर) तक जमानत दी है।'' उन्होंने कहा कि ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है' के सिद्धांत का मुख्य रूप से पालन किया जाना चाहिए। देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि कुछ दबाव समूह हैं जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से अदालत पर दबाव डालकर अनुकूल फैसला हासिल करने की कोशिश करते हैं।

उन्होंने कहा कि इस समूह के बहुत से लोग कहते हैं कि अगर आप मेरे पक्ष में मामले का फैसला करते हैं तो आप स्वतंत्र हैं, अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप स्वतंत्र नहीं हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता का मतलब है कि एक न्यायाधीश को अपने विवेक के अनुसार मामले का फैसला करने में सक्षम होना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़़ ने कहा, ‘‘जब आप चुनावी बॉन्ड पर फैसला करते हैं, तो आप बहुत स्वतंत्र होते हैं, लेकिन अगर फैसला सरकार के पक्ष में जाता है, तो आप स्वतंत्र नहीं हैं। यह स्वतंत्रता की मेरी परिभाषा नहीं है ।''

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