Civil Defense Mock Drill : सायरन की आवाज और ब्लैकआउट, युद्ध का ऐलान; 1971 युद्ध से पहले की मॉक ड्रिल्स की दास्तान
चंडीगढ़, 7 मई (ट्रिन्यू)
Civil Defense Mock Drill : आज सुबह पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर में आतंकवादी ढांचे को निशाना बनाते हुए ‘आपरेशन सिंदूर' चलाया। भारतीय सेना ने उन आतंकी ढांचों को निशाना बनाया जहां से भारत के खिलाफ आतंकवादी हमलों की योजना बनाई गई और उन्हें अंजाम दिया गया। भारत द्वारा की गई एयरस्ट्राइक के बाद तनाव ओर बढ़ गया है लेकिन भारत हर तरह की स्थिति के लिए पहले से ही तैयार है। आम जनता को भी ब्लैकआउट व सिविल डिफेंस मॉक ड्रिक के जरिए युद्ध जैसी स्थिति के लिए तैयार किया जा रहा है।
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब भारत में ब्लैकआउट व मॉक ड्रिल किया जा रहा हो। 1971 की भारत-पाकिस्तान युद्ध, जो कि बांग्लादेश की स्वतंत्रता के संघर्ष का एक अहम पड़ाव था, उससे पहले भारत ने सैन्य दृष्टिकोण से कई स्तरों पर तैयारियां की थीं। इन तैयारियों में मॉक ड्रिल यानी नकली युद्ध अभ्यासों की भूमिका बेहद अहम रही। ये मॉक ड्रिल्स वास्तविक युद्ध की स्थिति में सेना की प्रतिक्रियाशीलता, तालमेल और रणनीतिक क्षमता को परखने के लिए आयोजित की जाती हैं।
मॉक ड्रिल्स का उद्देश्य
मॉक ड्रिल का मुख्य उद्देश्य सैनिकों को युद्ध जैसे हालात में प्रशिक्षित करना होता है, ताकि वे अचानक आने वाले खतरों और चुनौतियों का सामना कर सकें। 1971 के युद्ध से पहले, भारत को यह भलीभांति अंदाजा था कि पाकिस्तान के साथ संघर्ष की संभावना प्रबल होती जा रही है। ऐसे में सेना की तैयारियों को परखने और सुदृढ़ करने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर मॉक ड्रिल्स आयोजित की गईं।
पूर्वी और पश्चिमी मोर्चों पर अभ्यास
भारत ने खासकर पश्चिमी मोर्चे (राजस्थान और पंजाब की सीमाओं) और पूर्वी मोर्चे (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान, अब बांग्लादेश की सीमा) पर इन अभ्यासों को अंजाम दिया। इन अभ्यासों में टैंक मूवमेंट, एयरफोर्स की प्रतिक्रिया, इंफैंट्री की रणनीति और लॉजिस्टिक सपोर्ट को परखा गया। भारतीय सेना ने इन मॉक ड्रिल्स के जरिए यह सुनिश्चित किया कि अगर युद्ध होता है तो सैनिक एकजुट होकर जल्दी और प्रभावी प्रतिक्रिया दे सकें।
सायरन की आवाज: युद्ध की आहट
1971 के युद्ध के दौरान सायरन धीरे-धीरे बजना शुरू होता था, जिससे लोगों को तैयारी का समय मिल जाता है। लोगों को रेडियो के जरिए भी युद्ध के लिए संकेत दिया जाता है। युद्ध के दौरान ब्लैकआउट रहता था। सायरन रात में भी बजता था, जिससे नागरिक सतर्क हो जाते थे। इस दौरान लोगों को चूल्हा जलाने की भी मनाही होती थी। कई लोग चूल्हा जलाने के लिए खिड़कियों पर कागज या पर्दे लगा दिए जाते थे , ताकि रोशनी बाहर ना जा सके। बहुत से लोग तो अपने घरों के आसपास खाइयां या बंकर बनाकर उसमें छिप जाते थे, जोकि हवाई हमलों से बचने का सबसे सुरक्षित तरीका था। उस दौर में लोगों को रेडियो के जरिए युद्ध का सारी सूचना दी जाती थी, ताकि नागरिक सतर्क रहें।
आज की मॉक ड्रिल: अतीत से सबक
7 मई 2025 को होने वाली मॉक ड्रिल 1965 और 1971 के युद्धों से प्रेरित है। उस समय सायरन, ब्लैकआउट और खाइयों ने लोगों की जान बचाई थी। वहीं, अब भी नागरिकों को उसी तरह आपातकाल स्थिति के लिए तैयार किया जा रहा है।