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पुरानी फिल्मों से गुलजार होंगे सिनेमाघर

10:28 AM Mar 30, 2024 IST
पुरानी फिल्मों से गुलजार होंगे सिनेमाघर
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असीम चक्रवर्ती
लॉकडाउन की बात जाने दें,तो अब यह बात एकदम साफ हो चुकी है कि बड़े सितारों की बड़ी-बड़ी फिल्में मल्टीप्लेक्स थियेटर को प्राणवायु देने में विफल रही हैं। ऐसे में मल्टीप्लेक्स वाले अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए कुछ नए-नए उपाय ढूंढ रहे हैं। उसी कड़ी में अब उन्हें शिद्दत से पुरानी फिल्मों की याद आई है। हाल फिलहाल मल्टीप्लेक्स के एक बड़े चैनल पीवीआर थियेटर ग्रुप ने इस मामले में बड़ी पहल की है।
बिग बी ने रास्ता दिखाया
अमिताभ की दीवार,त्रिशूल,डॉन,कभी-कभी जैसी कई बड़ी हिट फिल्मों ने मल्टीप्लेक्स वालों को हमेशा चौंकाया है। पिछले साल अमिताभ के जन्मदिन पर जब उनकी फिल्म ‘डॉन’ मुंबई के जुहू स्थित चंदन थियेटर में रिलीज हुई,तो इसके सारे शो के कलेक्शन से पीवीआर का मैनेजमेंट भौंचक रह गया था।
लेकिन बात नहीं बनी
सच तो यह है कि पिछले एक-दो साल से कई बड़ी फिल्में सूयवंशी,’83, सर्कस,चेहरे,बेलबॉटम,राधे आदि ने थियेटर मालिकों को हताश ही किया है। इसके बाद शाहरुख, सलमान, शाहिद, रितिक आदि की ‘पठान’, ‘जवान’, ‘टाइगर-3’, ‘फाइटर,’ ‘तेरी बातों में ऐसा उलझा दिया’ जैसी ढेरों बड़ी फिल्मों की महा विफलता ने मल्टीप्लेक्स मालिकों को हैरान कर दिया। जबकि उन्हें उम्मीद थी कि ये फिल्में नया उत्साह भरेंगी।
शाहिद को झटका
शाहिद के स्टारडम को एक बड़ा झटका लगा है। हाल ही में उनकी फिल्म ‘तेरी बातों मे ऐसा उलझा दिया’ को पहले शो में फ्लाप का तमगा मिल गया। असल में तीन-साढ़े तीन सौ का टिकट खरीद कर ऐसी फिल्में देखने को दर्शकों के पास न समय है,न पैसा। दिलचस्प बात यह कि पीवीआर ने इसके साथ ही शाहिद की एक पुरानी सुपर हिट फिल्म ‘जब वी मेट’ को भी दिन में तीन-चार शो में रिलीज किया। और यही सारा कमाल हुआ। 80 रुपये के टिकट की इस फिल्म को आसानी से 80 से 90 प्रतिशत दर्शक मिल गए,लेकिन शाहिद की नई फिल्म इसके सामने सिर्फ माथा पीटती रह गई।
अब सबक मिला
गाहे-बगाहे रिलीज होनेवाली ओल्ड क्लासिक फिल्मों की सफलता ने थियेटर मालिकों को इन्हें नियमित स्पेस देने के लिए बाध्य कर दिया। यही वजह है कि ऐसी फिल्मों का टिकट रेट काफी कम कर दिया गया। यानी 70 से 100 रुपये के बीच इनका टिकट रखा गया है। इस समय कम से कम सौ से ज्यादा ऐसी फिल्में हैं,जिन्हें मल्टीप्लेक्स की स्किन के अनुकूल बनाया जा रहा है। इनके अलावा दिल तेरा दीवाना,चोरी-चोरी,हकीकत जैसी कई ब्लैक एंड वाइट क्लासिक फिल्में रंगीन होकर थियेटर रिलीज की प्रतीक्षा कर रही हैं। इन फिल्मों पर भी मल्टीप्लेक्स थियेटर मालिकों की नजर है।
मुनाफे का गणित
अब सवाल उठता है मुनाफे का। पहले मुनाफे में फिल्म निर्माता पचास-पचास का हिस्सा लेते थे। तब यूएफओ का पैसा भी निर्माता ही देता था। पर अब ओल्ड क्लासिक फिल्मों के निर्माता और थियेटर मालिक नए अनुबंध के साथ ऐसी फिल्मों को ला रहे हैं। कुछ निर्माताओं ने भी थियेटर वालों की जरूरतों को समझते हुए कुछ पेंच लगा दिया। इस पर बात चल रही है।
दर्शकों का साथ
आलोचकों की बात पर यकीन करें तो 90 के दशक की कुछ अच्छी फिल्मों की डिमांड आज भी है। इस दशक और इससे पहले के दशक की ओल्ड क्लासिक फिल्मों पर 40 से 45 से ऊपर के दर्शकों का एक खास क्रेज देखने को मिलता है। कुल मिलाकर पुराने दर्शक शाहरुख की ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ से लेकर ‘मदर इंडिया’, ‘मुगल-ए-आजम’, ‘बैजू बावरा’ जैसी फिल्मों को आधुनिक साज-सज्जा से युक्त मल्टीप्लेक्स में देखना चाहते हैं। भले ही यह एक या दो शो में लगे। थियेटर मालिक अब इसी मौके का पूरा फायदा उठाते हुए,पुरानी फिल्मों के लिए टाइम स्लॉट निकाल रहे हैं।
सिंगल थियेटर बंद न हों
बड़े महानगरों की बात जाने दें,तो छोटे शहरों-कस्बों के सिंगल थियेटर बंद होने से दर्शक काफी क्षुब्ध हैं। जबकि कुछ गिने-चुने चालू सिंगल थियेटर पुरानी फिल्में दिखा रहे हैं। पर इन फिल्मों के प्रिंट और रेंज दोनों में ही बहुत गड़बड़ी है। और इसका दायरा भी बहुत छोटा है। सिंगल थियेटर को भी अब नए सिरे से इस बारे में सोचना चाहिए।
मल्टीप्लेक्स का आतंक
दूसरी ओर मल्टीप्लेक्स थियेटर के महंगे टिकट और खानपान को लेकर आम आदमी की परेशानी अब जगजाहिर है। इसलिए अब मल्टीप्लेक्स के मालिक काफी सजग हुए हैं। वह भी अब अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए पुरानी फिल्मों की रिलीज को लेकर नई-नई प्लानिंग बना रहे हैं।

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