घुटती सांसें
यूं तो प्रदूषण का संकट देशव्यापी है। लेकिन जब दिल्ली दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित राजधानी है, तो स्वाभाविक है कि राष्ट्रीय राजधानी के तीन तरफ स्थित हरियाणा में उसका प्रभाव होगा ही। जिसके मूल में तंत्र की काहिली और नागरिकों की उदासीनता निहित है। बहरहाल, एक हालिया रिपोर्ट हरियाणावासियों की चिंता बढ़ाने वाली है कि देश के सौ सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 15 हरियाणा के हैं। जिसमें सबसे ज्यादा खराब स्थिति फरीदाबाद की है। इस साल की पहली छमाही में प्रदूषण के मुख्य कारक पीएम 2.5 के आधार पर हवा की गुणवत्ता का निर्धारण किया गया है। उल्लेखनीय है कि भारत के राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक के अनुसार हवा में पीएम 2.5 और पीएम 10 के वार्षिक स्तर की सुरक्षित सीमा क्रमश: चालीस माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और साठ माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होनी चाहिए। हालांकि, ये मानक विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के अनुसार निर्धारित मानकों से कहीं ज्यादा हैं। यह गंभीर स्थिति है कि फरीदाबाद में पीएम 2.5 का स्तर 103 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा है। जबकि हरियाणा के तीन शहर पलवल, अंबाला और मांडीखेड़ा राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक के अनुरूप संतोषजनक स्थिति में कहे जा सकते हैं। वहीं गुरुग्राम में पीएम 10 की सांद्रता सबसे अधिक 227 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रही, जो एक गंभीर स्थिति को दर्शाती है। विडंबना यह है कि मौजूदा समय में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम केवल फरीदाबाद में ही चलाया जा रहा है। यह हमारी जीवन शैली से उपजे प्रदूषण की देन भी है। दरअसल, हरियाणा के बड़े शहर आबादी के बोझ से त्रस्त हैं। बढ़ती आबादी के लिये रोजगार बढ़ाने व अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जो औद्योगिक इकाइयां लगायी गई, उनकी भी प्रदूषण बढ़ाने में भूमिका रही है। डीजल-पेट्रोल के निजी वाहनों को बढ़ता काफिला, निर्माण कार्यों में लापरवाही, कचरे का निस्तारण न होना और जीवाश्म ईंधन ने प्रदूषण बढ़ाया है।
दरअसल, हमारे नीति-नियंता प्रदूषण कम करने के लिये नागरिकों को जागरूक करने में भी विफल रहे हैं। हमारी सुख-सुविधा की ललक ने भी वायु प्रदूषण बढ़ाया है। अब चाहे गाहे-बगाहे होने वाली आतिशबाजी हो, प्रतिबंध के बावजूद पराली जलाना हो, या फिर सार्वजनिक परिवहन सेवा से परहेज हो, तमाम कारण प्रदूषण बढ़ाने वाले हैं। कल्पना कीजिए बच्चों और दमा,एलर्जी व अन्य सांस के रोगों से जूझने वाले लोगों पर इस प्रदूषण का कितना घातक असर होगा? यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की हालिया रिपोर्ट फिक्र बढ़ाती है जिसमें कहा गया कि वायु प्रदूषण के चलते भारत में जीवन प्रत्याशा में गिरावट आ रही है। जिसमें फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले पी.एम. 2.5 कण की बड़ी भूमिका है। रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक मानकों से कहीं अधिक प्रदूषण भारत में लोगों की औसत आयु पांच साल कम कर रहा है। बहरहाल प्रदूषण के खिलाफ योजनाबद्ध ढंग से मुहिम छेड़ने की भी जरूरत है। अध्ययन कहता है कि देश की एक अरब से अधिक आबादी ऐसी जगहों पर रहती है जहां प्रदूषण डब्ल्यूएचओ के मानकों से कहीं अधिक है। भारत के सबसे कम प्रदूषित शहर भी डब्ल्यूएचओ के निर्धारित मानकों से सात गुना अधिक प्रदूषित हैं। दीवाली के बाद जब दिल्ली गहरे प्रदूषण के आगोश में होती है तो कोर्ट से लेकर सरकार तक अति सक्रियता दर्शाते हैं। लेकिन थोड़ी स्थिति सामान्य होने पर परिणाम वही ‘ढाक के तीन पात’। कभी पेट्रोल-डीजल के नये मानक तय होते हैं तो कभी जीवाश्म ईंधन पर रोक लगती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वर्ष 2019 में प्रदूषण कम करने को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम देश के सौ से अधिक शहरों में शुरू किया था। चार साल बाद पता चला कि किसी भी शहर ने अपने लक्ष्य को पूरा नहीं किया। विकासशील देश पहले ही निर्धारित वायु गुणवत्ता के मानक पूरा नहीं कर पा रहे हैं, वहीं डब्ल्यूएचओ ने मानकों को और कठोर बना दिया है। सभी सरकारों व नागरिकों का दायित्व बनता है कि अपने-अपने स्तर पर प्रदूषण को कम करने वाली जीवन शैली अपनाएं। हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि पूरी दुनिया में सत्तर लाख मौतें हर साल प्रदूषित वायु के चलते हो रही हैं।