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चिल्लर पार्टी से बाजार की रौनक

07:36 AM Aug 02, 2023 IST
चिल्लर पार्टी से बाजार की रौनक
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हेमंत कुमार पारीक

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शादी के लिफाफे का दूल्हा और दुल्हन को उतना चाव नहीं होता जितना कि गिफ्ट पैक का। क्या निकलेगा वाली जिज्ञासा बनी रहती है। इसलिए कि बंद पैकेट में पता नहीं चलता कि अंदर क्या है? ऊपर तो हरेक पैक में लेवल रहता है बेस्ट विसेज! हरी-नीली, लाल-पीली चमकदार पन्नी होती है ऊपर और फीते से कसा रहता है पैक। मगर एक बात तो है कि हाथ में आते ही अंदर क्या है पता चल ही जाता है। फिर भी उम्मीद बंधी रहती है। शादी के कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद ही हकीकत जाहिर होती है। कभी-कभी तो पता ही नहीं चलता कि उनके अपनों ने क्या दिया। एक शादी में दूल्हे को एक मिसाल की गिफ्ट मिली। जिज्ञासावश दूल्हा-दुल्हन ने अपने सगे-संबंधियों के सामने पैकेट खोला तो सब सन्न रह गए। एक-दूसरे का मुंह ताकते रहे। दरअसल आइटम परिवार नियोजन का था। सिर मुंडाते ओले पड़े वाली बात हुई। मदर-फादर दूल्हे के चेहरे को घूरते रहे। शायद मूक भाषा में पूछ रहे थे कि कितने बदतमीज हैं तेरे यार-दोस्त!
बात तो लेवल और माल की है। सही कही। अक्सर लोग लेवल देखकर धोखा खा जाते हैं। और सालोसाल उस वाकये को याद रखते हैं फिर भी धोखा खाते रहते हैं। हमारे बाप-दादों ने तो बैलजोड़ी देखी थी। अब ट्रेक्टर देख रहे हैं। बैल पता नहीं कहां खो गए? भाईजान तो आजकल धान बोने, गन्ना उगाने और मैकेनिक की वर्कशॉप में कार्बुरेटर साफ करने में लगे हैं। ग्राउंड जीरो पर दिख रहे हैं। अदद एक कुर्सी के लिए कैसे-कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं, समझ आ रहा है। कभी ट्रक में सवार हुए तो कभी किसी ढाबे में तंदूरी रोटी और चिकन टिक्के का मजा लूटते हैं।
खैर, माल की बात चल रही है अभी तो। पैकेट पर लेवल तो क्रीम पाउडर का लगा है। अंदर का पता नहीं। छब्बे जी चौबे जी होकर बाहर आएं। पता नहीं दुबे कितने और तिवारी कितने। चिल्लर पार्टी है। अड़तीस वाला मसला भी कुछ ऐसा ही है। मिक्स वेज जैसा। बिना चिल्लर मार्केटिंग नहीं होती। पीछे-पीछे चिल्लाने वालों की तो जरूरत पड़ती है। हालांकि, चिल्लर में दम नहीं होता मगर गुल्लक में जाए तो आवाज तो करती है वरना खाली डिब्बा! खाली बोतल! हजार-पांच सौ के कागजी नोट आवाज नहीं करते। इसलिए बिना चिल्लर के बाजार बाजार नहीं लगते। होली या कोई सार्वजनिक उत्सव का मौका चच्चाजान चंदा उगाही के लिए चिल्लर पार्टी को आगे रखकर चलते हैं।

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