अनजानी दोस्ती में बच्चे की मस्ती
नीलम अरोड़ा
छोटे बच्चों के भी अपने काल्पनिक दोस्त होते हैं और इन दिनों तो ये अपने इन काल्पनिक दोस्तों से कुछ ज्यादा ही घुल-मिल रहे हैं। लेकिन यह महज माता-पिता के पास बच्चों को दिए जाने वाले समय की कमी का नतीजा नहीं है। हकीकत तो यह है कि हमेशा से छोटे बच्चों के अपने काल्पनिक दोस्त होते रहे हैं। लेकिन शायद अब के पहले लोग इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे, इसलिए इस संबंध में न तो आम लोगों के बीच ज्यादा चर्चा होती थी और न ही बाल विकास या बाल मनोविज्ञान पर काम करने वाले लोग ही बच्चों के इस कुदरती स्वभाव को बारीकी से परखते थे। लेकिन आज के आधुनिक माता-पिता अपने बच्चों के पल-पल के व्यवस्थित विकास पर नजर रखते हैं और चाहते हैं कि उनके बच्चों का बिल्कुल उनकी योजना के मुताबिक विकास हो। ऐसे में पैरेंट्स बच्चों के अपने इन काल्पनिक दोस्तों से बातचीत, लड़ने, झगड़ने और लंबे समय तक किये जाने वाले संवादों का नोटिस ले रहे हैं।
काल्पनिक किरदारों से बतियाना
ज्यादातर माता-पिता यह सब देखकर डर जाते हैं कि कहीं उनके बच्चों में कोई मानसिक विकार या कोई अन्य समस्या तो नहीं है? जब ऐसे अभिभावक बाल मनोविदों के पास अपने बच्चों की ये समस्याएं लेकर पहुंचते हैं, तब वे उनसे बताते हैं कि यह कोई मानसिक विकार या अन्य कोई समस्या नहीं है। दरअसल छोटे बच्चे कवियों, लेखकों और दूसरे कल्पनाशील लोगों की तरह काल्पनिक किरदारों से बातें करते हैं। ये उनके साथ हंसी-मजाक करते हैं, यहां तक कि लड़ते-झगड़ते और रूठते-मनाते भी हैं।
स्वाभाविक विकास के अनुकूल
मनोविदों ने अपनी गहन ऑब्जर्वेशन में पाया है कि यह कोई विकार या असामाजिक घटना नहीं है बल्कि स्वाभाविक है। वास्तव में बच्चों में तीव्र और बेहतर विकास के लिए उन्हें यह कुदरत से हासिल क्षमता है कि वे ऐसे काल्पनिक दोस्तों से बात करते हैं, जो उनके तमाम सवालों का जवाब भी देते हैं और आपस में खेलते-कूदते और मन मुताबिक हंसी-मजाक भी करते हैं।
कहां-कहां से आते हैं ये दोस्त पात्र
बच्चों के ये काल्पनिक दोस्त उनके इर्द-गिर्द के ऐसे किरदारों से हो सकते हैं, जिनसे वे आमने-सामने बातें करने में झिझकते हों या फिर उनसे इतनी बातें करना चाहते हों, जितनी व्यावहारिक रूप में संभव ही न हों। यही नहीं, बच्चों के इन काल्पनिक दोस्तों में उनके कार्टून सीरियलों के काल्पनिक चरित्र, पढ़ी हुई किताबों के किरदार, यहां तक कि उनका कोई पसंदीदा खिलौना या ऐसी कोई घटना भी हो सकती है, जिनसे उन्हें खूब मजा आया हो। लेकिन बच्चों के काल्पनिक दोस्तों की यह भी अधूरी सूची है, क्योंकि मनोवैज्ञानिक कहते हैं बच्चों के हवा-हवाई यानी काल्पनिक दोस्त इतने अंजान और इतने अज्ञात क्षेत्रों से हो सकते हैं कि एकबारगी उन्हें जानकर बड़े लोग भी हैरान हो जाएं। क्योंकि कल्पना के मामले में बच्चे भी कवियों से कोई कम नहीं होते।
कल्पनाओं में सीमा नहीं
कवियों की कल्पनाओं में तो फिर भी एक सीमा हो सकती है, लेकिन बच्चों की कल्पनाओं में कोई सीमा नहीं होती। यहां तक कि वे किसी पेड़, फल, जानवर, कीड़े मकोड़े, फूल, पेड़ की गिरी हुई पत्तियों, चिड़ियों और चिड़ियों के बच्चों को भी कल्पना में दोस्त मानकर उनसे खूब गप्पे हांक सकते हैं। मनोविदों के मुताबिक यह सब कुछ स्वाभाविक है। बच्चों की ऐसी गतिविधियां दर्शाती हैं कि उनका तेजी से मानसिक विकास हो रहा है। इसलिए बच्चों के ऐसे हवा-हवाई दोस्तों से माता-पिता को परेशान नहीं होना चाहिए।
एक काल्पनिक नोक-झोंक
अब पांच साल के अभिनव को ही लें, उसकी मम्मी ने जब पहली बार उसे अपने किसी इमेजिनरी फ्रेंड के साथ खूब गपशप करते हुए, बीच-बीच में लड़ने -झगड़ने की अदा देखी तो वह तो हैरान रह गई। क्योंकि अभिनव अपने काल्पनिक दोस्त से हंस-हंसकर बातें तो करता ही था, पर कभी-कभी वह उसे गुस्से में धुन भी देता था और एक दिन तो अभिनव की मम्मी उसकी यह बात सुनकर परेशान ही हो गई, जब उसने कहा कि देखो मम्मी इस रोहित के बच्चे ने मुझे कसकर पकड़ लिया है और कहता है तुझे काट लूंगा अगर चॉकलेट नहीं देगा। मैं अपनी चॉकलेट इसे नहीं दूंगा। जब मम्मी ने कहा कि उससे कहो कि वह तुझे छोड़ दे नहीं तो मेरी मम्मी तेरी पिटाई करेगी। इस पर अभिनव ने कहा, मम्मी देखो रोहित कह रहा है कि मैं उसका कुछ नहीं कर पाऊंगा। यह लड़का कह रहा है तू बॉडी बिल्डर नहीं है, इसलिए तू कुछ कर नहीं पायेगा। इस पर हंसी को दबाते हुए मम्मी ने कहा, अरे तू इसके दो-चार मुक्के जमा। इस पर अभिनव जोश में आ गया और हवा में लात-घूंसे बरसाने लगा।
पर्सनैलिटी डेवलपमेंट का जरिया
पांच साल के अभिनव की यह कहानी सुनकर अगर ज्यादातर मां-बाप परेशान नहीं होंगे तो भी हैरान तो रह ही जाएंगे। उन्हें लगेगा कि आखिर बच्चा हवा-हवा में किसी से बातचीत कैसे कर रहा है और यह भी लोग सोचेंगे कि इसकी मम्मी को देखो कि सब कुछ जानते-बूझते हुए भी कि बच्चा कल्पना में बातें कर रहा है, वह उसका साथ दे रही है। निश्चित रूप से यह पूरी हरकत किसी मानसिक विकार से कम नहीं लगेगी। लेकिन सच्चाई यही है कि ऐसा बहुत से बच्चे करते हैं और यह उनके मानसिक विकास और पर्सनैलिटी डेवपलमेंट का जरिया होता है।
अकेलेपन से निजात
असल में जिन बच्चों में इस तरह की कल्पनाशीलता होती है उनका मानसिक विकास तो होता ही है, वे दूसरे बच्चों के मुकाबले कहीं ज्यादा सोशलाइज भी होते हैं। क्योंकि ऐसे बच्चे कभी अकेलापन महसूस नहीं करते। क्योंकि ऐसे बच्चे निपट अकेले होने पर भी अपने काल्पनिक दोस्तों के साथ होते हैं। उनसे ढेरों बातें करते हैं। उनके साथ-जो कुछ होता है, अच्छा या बुरा, उस सबको ये एक-एक कर अपने इन काल्पनिक दोस्तों से शेयर करते हैं। इस तरह शेयर करने की वजह से ये बच्चे खुद को अच्छी तरह से एक्सप्रेस करना सीख जाते हैं। इतना ही नहीं इनके इन इमेजिनरी दोस्तों के होने की वजह से ये कभी किसी भी तरह की निगेटिविटी से नहीं घिरते। ऐसे बच्चे ज्यादा कल्पनाशील होते हैं।
सबसे बड़ी बात ये है कि ऐसे बच्चे अपने इन काल्पनिक दोस्तों के साथ जो कहानियां गढ़ना सीख जाते हैं, वे कहानियां इनकी जिंदगी में बहुत काम आती हैं। इसलिए मम्मी-पापा को अपने बच्चों की काल्पनिक दोस्ती पर न तो चिंतित होना चाहिए और न ही किसी तरह का कोई वहम पालना चाहिए।
-इ.रि.सें.