संस्कारों की बाल-कहानियां
घमंडीलाल अग्रवाल
विभिन्न विधाओं की 36 कृतियों की रचयिता प्रतिष्ठित रचनाकार करुणा श्री की नवीनतम कृति है ‘संस्कारित बाल कहानियां’। इस कृति में विविध विषयक 29 बाल कहानियां रखी गयी हैं जो मनोरंजक, ज्ञानवर्धक एवं बच्चों को संस्कार देने वाली हैं।
कृति की प्रथम बाल कहानी शीर्षक है ‘जीवों को कभी नहीं सताओ’ जो जीवों के साथ प्रेम और सहयोग-भावना दर्शाने पर बल देती है। ‘सबसे बड़ा मंदिर’ कहानी बताती है कि ईश्वर सभी के हृदय और मस्तिष्क में रहते हैं। ‘आत्मदान का उपहार’ नामक कहानी इंसान को ईश्वर प्रदत्त किसी भी उपहार मजाक न उड़ाने की ओर संकेत करती है। वहीं ‘आस्था की अस्थियां’ आस्था के दर्शन करवाती है। ‘इंसान की सबसे बड़ी दौलत-परिश्रम’ कहानी में श्रम की दौलत का महत्व दिखाया गया है। ‘उस पार’ में इंसानियत के धर्म को रेखांकित किया गया है।
‘सर्वोत्तम उपहार’ के अनुसार उपहारों का मूल्य भावना की होती है, कीमत नहीं। ‘कर्म चमक बढ़ाता है’ में कर्म का गुणगान हुआ तो ‘गोविन्द की ईमानदारी’ में ईमानदारी मुखरित होती है। ‘सदैव ईश्वर को याद रखो’ कहानी में ईश्वर को हर घड़ी याद रखने पर बल है। ‘जमीन का एक टुकड़ा’ रिश्तों की अहमियत बताती है। ‘बचपन में ही होता है आदतों में सुधार’ में बचपन संस्कारों की आधारशिला कहा गया है। ‘साहसी मृगया’ में साहस की गाथा और ‘सच्चा ज्ञान’ में क्षमा, सच्चे मित्र तथा वर्तमान के विषय में ध्यान देने की बात छिपी है।
कहानियों की भाषा सरल, सरस व मनोहारी है। बाल-मनोविज्ञान की कसौटी पर खरी उतरने वाली ये बाल कहानियां बच्चों को लुभाएंगी, साथ ही गुदगुदाएंगी भी। हर कहानी कोई न कोई संदेश देती है।
पुस्तक : संस्कारित बाल कहानियां लेखिका : करुणा श्री प्रकाशक : साहित्यागार, चौड़ा रास्ता, जयपुर पृष्ठ : 144 मूल्य : रु. 250.