शतरंज का बादशाह
भारत के 18 वर्षीय ग्रैंडमास्टर गुकेश डी का वर्ल्ड चैंपियन बनना हर भारतीय को उल्लास से भर गया। वजह है कि वह दुनिया में सबसे कम उम्र के वर्ल्ड चैंपियन बने हैं। जो बताता है कि भारत अब शतरंज के ग्रैंड मास्टरों की खान बनता जा रहा है। वीरवार को उसने सिंगापुर में खेली गई विश्व चैंपियनशिप की 14वीं अंतिम बाजी में चीन के ग्रैंडमास्टर डिंग लिझेन को हराया। बचपन में किसी पत्रकार ने उनसे पूछा था कि उनका सपना क्या है तो बालक गुकेश ने दो टूक शब्दों में कहा था कि मैं विश्व चैंपियन बनना चाहता हूं। यह तो तय था कि वे विश्व चैंपियन बनेंगे, लेकिन इतनी जल्दी बनेंगे यह उम्मीद उनके अलावा किसी को नहीं थी। विश्वनाथन भी विश्व चैंपियन बने मगर वे 31 साल की उम्र में यह करिश्मा दिखा पाए। यही वजह है कि 14वीं व अंतिम बाजी जीतने के बाद वे भाव-विभोर होकर अपनी अप्रत्याशित जीत के बाद खुशी से सार्वजनिक रूप से रो पड़े। बेहद सहज व सरल स्वभाव के गुकेश का बड़प्पन देखिए कि इस बड़ी जीत के बावजूद उन्होंने कहा कि हारने वाले डिंग दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक हैं। बहरहाल, आज गुकेश निर्विवाद रूप से शतरंज के बादशाह हैं। उनकी साधना ने सफलता की नई इबारत लिखी है। उनकी सफलता के पीछे उनके परिवार का भरपूर संबल रहा। यहां तक कि बेटे की सुनहरी कामयाबी के लिये पिता ने अपना कैरियर तक दांव पर लगा दिया। वैसे सिंगापुर में तेरह दिसंबर तक चलने वाली चेस चैंपियनशिप का एक सुखद पहलू यह भी है कि शतरंज में एशिया का वर्चस्व नजर आया। यह इस विश्वस्पर्धा के 138 साल के इतिहास में पहली बार हुआ कि दो एशियाई शतरंज के माहिर खिताबी जीत के लिये मुकाबला कर रहे थे। वहीं मुकाबला इतना कड़ा था कि गुकेश डी और पूर्व चैंपियन डिंग के बीच तेरह मुकाबलों तक बाजी बराबरी पर छूटी। जिससे शतरंज प्रेमियों में खेल का रोमांच बराबर बना रहा।
बहरहाल, इस कड़े मुकाबले का निष्कर्ष यह है कि इस मुकाबले के बाद गुकेश शतरंज की दुनिया के बेताज बादशाह बन गए हैं। उन अंतर्राष्ट्रीय माहिरों को मुंह की खानी पड़ी जो कुछ राउंड के बाद गुकेश को कमतर आंक रहे थे। वैसे पूर्व विश्व चैंपियन आनंद ने इस मुकाबले को जटिल व कठिन बताया था। बहरहाल, चेन्नई के गुकेश डी की इस कामयाबी ने एक संकेत यह दिया कि चेन्नई देश को लगातार विश्वस्तरीय ग्रैंडमास्टर दे रहा है। यहां तक कि कई चैंपियन देने वाले चेन्नई को भारत की शतरंज की राजधानी तक कहा जाने लगा है। इस बात की पुष्टि इससे भी होती है कि गुकेश के परिवार में कभी किसी ने शतरंज नहीं खेला। उनके खेल के प्रति जुनून ने ही उन्हें विश्व चैंपियन बनाया है। यहां तक कि स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने ग्रैंड मास्टर का खिताब हासिल कर लिया था। वे 2019 में भारत के सबसे कम उम्र में ग्रैंडमास्टर बनने वाले मोहरों के माहिर थे। कालांतर उनकी प्रतिभा निखारने के लिये पिता ने उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण दिलाया। उनके प्रशिक्षकों ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए उन पर विशेष ध्यान दिया। परिवार व स्कूल के संबल से प्रतिभा निखरी। वर्ष 2015 में राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतने से कामयाबी का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज विश्व चैंपियनशिप जीतने के मुकाम तक जा पहुंचा है। वैसे वे इससे पहले कॉमनवेल्थ चेस चैंपियनशिप में गोल्ड, स्पेन में संपन्न अंडर-12 चैंपियनशिप, यूरोपियन चेस क्लब कप के अलावा कई ओपन टाइटल समेत कई खिताब भी जीत चुके हैं। निस्संदेह, इस शिखर की कामयाबी में जहां गुकेश की कड़ी मेहनत, एकाग्रता व जुनून शामिल है, वहीं सर्जन पिता डॉ.रजनीकांत के त्याग का भी बड़ा योगदान है, जिन्होंने अपना कैरियर ही बेटे के भविष्य के लिये छोड़ दिया था। वहीं गुकेश के कैरियर को बुलंदियों तक पहुंचाने में योग का भी योगदान है, जिसने उन्हें गहरी एकाग्रता दी है। एक अंतर्राष्ट्रीय चैनल से भेटवार्ता में उन्होंने स्वीकार किया था कि योगाभ्यास ने उनकी एकाग्रता को संबल देकर मानसिक रूप से मजबूत बनाया है। जिससे किसी भी असफलता से वे जल्दी ही उबर जाते हैं। बहरहाल, देश को उनसे और बड़ी कामयाबी की उम्मीदे हैं।