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वक्त के साथ परेड का बदलता परिदृश्य

06:03 AM Jan 26, 2024 IST

विवेक शुक्ला

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गणतंत्र दिवस परेड को आज करोड़ों लोग अपने घरों में टीवी पर देख रहे होंगे। इसी तरह से लाखों लोग परेड को उन मार्गों पर बैठकर या फिर किसी घर या बिल्डिंग की छत से देखेंगे जिधर से यह गुजरेगी। आप कह सकते हैं कि पंजाब में आतंकवाद के दौर से पहले राजपथ (अब कर्तव्यपथ) पर आम इंसान भी मजे में पहुंच जाता था। पुलिस की सांकेतिक उपस्थिति रहती थी। उधर खोमचे वाले भी दिखाई देते थे और लोग खाने-पीने की चीजें लेकर पहुंचते थे। लेकिन आतंकवाद के पनपने के बाद सब कुछ बदल गया। फिर सुरक्षा व्यवस्था इतनी सख्त हो गई कि आम जन राजपथ जाने से ही बचने लगा।
मशहूर कमेंटेटर जसदेव सिंह ने साल 1963 से लेकर 2013 तक लगातार गणतंत्र दिवस परेड का देश-दुनिया को आंखों-देखा हाल आकाशवाणी और दूरदर्शन से सुनाया था। यानी वे आधी सदी तक 26 जनवरी पर परेड की कमेंट्री करते रहे। उन्होंने इस दौरान परेड के विस्तार और बदलते चेहरे को देखा। वे बताते थे कि चीन से 1962 में हुए युद्ध में उन्नीस रहने के कारण देश उदास था। उसकी अभिव्यक्ति 1963 की गणतंत्र दिवस परेड के फीकेपन में भी कहीं न कहीं नजर आ रही थी। राजपथ से लेकर परेड के शेष हिस्सों जैसे कस्तूरबा गांधी मार्ग, कनॉट प्लेस, मिन्टो रोड, थामसन रोड वगैरह में जनता की भागीदारी कम रही थी। उस साल बाल वीर पुरस्कार भी नहीं दिए गए थे। ये 1959 में दिए जाने शुरू हुए थे ।
यूं तो गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा से लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जैसी हस्तियां मुख्य अतिथि रहे हैं, लेकिन दक्षिण अफ्रीका के मुक्ति योद्धा नेल्सन मंडेला और मुक्केबाज मोहम्मद अली का राजपथ पर सबसे गर्मजोशी से उपस्थित अपार जनसमूह ने स्वागत किया। मंडेला साल 1995 में गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि थे। मंडेला जब तक परेड का आनंद ले रहे थे, तब वहां मौजूद दर्शक मंडेला के नारे लगा रहे थे। गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष का मंडेला से अधिक उत्साह से स्वागत नहीं हुआ है। जसदेव सिंह बताते थे कि मंडेला की तरह राजपथ पर उपस्थित अपार जनसमूह ने मुक्केबाज मोहम्मद अली का भी करतल ध्वनि से अभिनंदन किया था। वे 1978 के गणतंत्र दिवस समारोह में खास अतिथि थे। उस गणतंत्र दिवस समारोह में कहने को मुख्य अतिथि आयरलैंड के राष्ट्रपति प्रेट्रिक हिलेरी थे, पर राजपथ पर सबकी निगाहें मोहम्मद अली को तलाश कर रही थीं। वे तब अपने कैरियर के चरम पर थे। एक तरह से विश्व नायक थे। मोहम्मद अली परेड के शुरू होने से चंदेक मिनट पहले ही अपने स्थान पर विराजमान हो गए थे। उनके राजपथ पर आने की सूचना लाउड स्पीकर से होते ही वहां पर मौजूद हजारों लोगों ने हर्षध्वनि से उनका अभिनंदन किया। वे अपने चाहने वालों के अभिवादन का उत्तर अपने मुक्के को हवा में घुमाते हुए दे रहे थे। उनके इस तरह के करतब देख दर्शक झूमने लगते थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी मोहम्मद अली को देख-देखकर मुस्करा रही थीं।
जसदेव सिंह को इस बात का अफसोस भी था कि किस तरह गणतंत्र दिवस परेड आम आदमी से दूर होती चली गई। उसके वहां तक पहुंचने में अवरोध खड़े किए जाते रहे। गणतंत्र दिवस पर सुनाई जाने वाली जसदेव सिंह की कमेंट्री को सुन-सुनकर कई पीढ़ियां बड़ी हुईं। उन्होंने कुछ साल निजी खबरिया चैनलों पर भी परेड का आंखों-देखा हाल सुनाया। जसदेव सिंह ने बाल वीर पुरस्कार विजेता बच्चों को पहले हाथी पर परेड में गुजरता हुए देखा था। ये सिलसिला 2010 में खत्म हो गया था। फिर बच्चों को जीप में बैठा कर परेड में लेकर जाया जाने लगा। उन्हें ये बदलाव समझ नहीं आता था। उन्होंने परेड की समाप्ति पर पंडित जवाहर लाल नेहरू को लोगों से घुलते-मिलते देखा था। जसदेव सिंह 26 जनवरी को सुबह करीब चार बजे राजपथ पहुंच जाते थे। वहीं परेड के रूट पर लोग अलसुबह बैठ जाते थे। इनमें दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के गांवों के लोग भी होते थे। ये सब खुद को परेड से जोड़ते थे। तब गणतंत्र दिवस की परेड को देखना मानो किसी पर्व पर व्रत रखने के समान ही होता था। दिल्ली वालों में गजब का जोश रहता था। कड़ाके की सर्दी के बावजूद वे अपने सुबह की परेड के रूट पर आग जलाकर बैठ जाते थे। तेरह दिसंबर, 2001 को संसद पर हुए हमले के बाद साल 2002 की गणतंत्र दिवस परेड के रूट को सरकार ने बदल दिया था। इस तरह से पहली बार परेड का रूट बदला गया था। परेड के रूट को छोटा कर दिया। तब से परेड इंडिया गेट से आईटीओ, दरियागंज होते हुए लाल किले पर समाप्त होने लगी। इस तरह परेड ने कनॉट प्लेस में आना बंद कर दिया। इस कारण देश की राजधानी के दिल कनॉट प्लेस से गणतंत्र दिवस परेड को देखने से लोग वंचित हो गए।

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