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बदलते वक्त के साथ समीकरणों में बदलाव

06:37 AM Oct 24, 2024 IST
बदलते वक्त के साथ समीकरणों में बदलाव
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हरीश मलिक

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के बाद अब महाराष्ट्र और झारखंड के लिए भी चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। महाराष्ट्र में 20 नवंबर को मतदान और 23 नवंबर को नतीजे आएंगे। महाराष्ट्र विधानसभा के लिए पहली बार छह असरदार राजनीतिक दल एक तरह से बराबरी के साथ चुनावी समर में उतरेंगे। इसलिए, यहां पर राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है महाराष्ट्र में महामुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है। समंदर की लहरें जिस तेजी से बदलती हैं, पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से देश की आर्थिक राजधानी में राजनीति की लहरें उससे ज्यादा तेजी से बदली हैं। किसे पता था कि 2019 में भाजपा-शिवसेना गठबंधन में चुनाव लड़ने और बहुमत से 16 सीटें ज्यादा हासिल करने के बावजूद मिलकर सरकार नहीं बना पाएंगे। राजनीति के ‘सत्ता-सुख’ के सिंहासन पर कोई और ही आरूढ़ हो जाएगा।
महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना और एनसीपी एक अलग ताकत थी। तब जनता ने शिवसेना को 56 और एनसीपी को 54 सीटें दी थीं। भाजपा 105 सीटें लेकर सबसे बड़ा दल बनकर उभरी थी, लेकिन सरकार बनने से पहले ही उद्धव ठाकरे ने अप्रत्याशित रूप से पाला बदल लिया। उद्धव ने विपरीत विचारधारा वाली कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई और खुद सीएम बने। इतने दशकों की राजनीति के बाद पहली बार ठाकरे परिवार से कोई सीएम की कुर्सी तक पहुंचा था। लेकिन राजनीति में पासे हमेशा अपने पक्ष में नहीं पड़ते। सत्ता संभालने के बाद इतनी उठापटक मची कि उद्धव और शरद पवार दोनों के ही सारे समीकरण बदल गए।
महाराष्ट्र की सत्ता उद्धव ठाकरे के हाथ में आने के बाद उन्हें भाजपा से बड़ी चुनौती अपनी ही पार्टी शिवसेना से मिली। वर्ष 2022 में शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे ने खुलेआम बगावत कर दी। दरअसल, एकनाथ शिंदे पार्टी के उन नेताओं में शामिल रहे, जो 2019 में ही कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने के खिलाफ थे। तभी से वे बड़े राजनीतिक मौके की फिराक में थे। मई, 2022 में ऐसा अवसर उनके हाथ में आया। गुवाहाटी फाइव स्टार होटल में शिंदे ने 42 शिवसेना और 7 निर्दलीय विधायकों के साथ फोटो जारी कर शक्ति-प्रदर्शन किया। इसी बीच राज्यपाल ने उद्धव को बहुमत सिद्ध करने के लिए कह दिया।
उधर शिंदे को बागी खेमे ने शिव सेना विधायक दल का नेता घोषित किया। 29 जून, 2022 को उद्धव ठाकरे के सीएम पद से इस्तीफा देने के 24 घंटे के अंदर शिंदे ने सीएम और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ले ली।
महाराष्ट्र की पिक्चर अभी भी बाकी थी। अब बारी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में बगावत और टूट की थी। 10 जून, 2023 को एनसीपी के 25वें स्थापना दिवस पर शरद पवार ने पार्टी के दो कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और सुप्रिया सुले के नामों की घोषणा की। अजित पवार को लेकर शरद से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वो नेता विपक्ष का पद संभाल रहे हैं। अजित को लगा कि चाचा शरद पवार ने उन्हें साइड लाइन कर दिया है। इसके बाद 2 जुलाई, 2023 को अजित ने 41 विधायकों के साथ महायुति से नाता जोड़ा और शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम बन गए।
वर्ष 2019 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो महाराष्ट्र में मुख्य रूप से 4 पार्टियां बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना मैदान में थीं। पिछले 5 साल में एनसीपी और शिवसेना के दो-दो धड़े बन चुके हैं। यानी 2024 चुनाव में 6 बड़ी पार्टियों और दो अलायंस के बीच महामुकाबला होगा- बीजेपी, शिवसेना (शिंदे), एनसीपी (अजित), कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव), एनसीपी (शरद)। पार्टियों के समीकरणों के साथ राज्य में वोटर्स के आंकड़े भी बदले हैं। महाराष्ट्र में मतदाताओं की संख्या 9.53 करोड़ पर पहुंची है।
हालांकि, इस बार के लोकसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर हुआ और बीजेपी को करारा झटका लगा। राज्य की 48 सीटों में से एनडीए 17 सीटों पर सिमट गई, इसमें बीजेपी के खाते में मात्र 9 सीटें आईं। वहीं कांग्रेस ने 13, शिवसेना (उद्धव) ने 9 और एनसीपी (शरद) ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की। सबसे खस्ता हालत अजित पवार की हुई, जिनकी पार्टी को सिर्फ एक सीट से संतोष करना पड़ा।
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के रिजल्ट को 288 विधानसभा सीटों के आधार पर देखें तो आंकड़े और दिलचस्प नजर आएंगे। ये बताते हैं कि अजित पवार की एनसीपी केवल 6 विधानसभा सीटों पर जीती। भाजपा को 23 सीटों का नुकसान हुआ और महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 63 सीटें जीती। नतीजे ये संकेत देते हैं कि त्रिशंकु या गठबंधन सरकार फिर महाराष्ट्र की मजबूरी बनने वाली है। हालांकि, हरियाणा का हाल देखकर कांग्रेस अब फूंक-फूंककर कदम रखेगी। पर महाविकास अघाड़ी गठबंधन में सबसे ज्यादा 63 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस आगे थी। यानी लोकसभा चुनाव तक मोमेंटम कांग्रेस के पास था। अब पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती विधानसभा चुनाव में इस मोमेंटम को बरकरार रखना है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि विधानसभा चुनाव में कुछ तो बदलाव होंगे। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लोकल और रीजनल मुद्दों पर हो रहा है। लोकसभा चुनाव में दोनों अलायंस का वोट शेयर लगभग बराबर था। जो मोमेंटम महाविकास अघाड़ी ने आम चुनाव के दौरान हासिल किया था, वो अब पहले जैसा एग्रेसिव नहीं है। वहीं महायुति की सरकार ने लाडली बहन योजना शुरू की। सरकारी कर्मचारियों को बोनस व एससी कमीशन को संवैधानिक दर्जा दे दिया। क्रीमी लेयर का दायरा बढ़ाया। राजनीति की हवा का रुख कब क्या हो जाए, ये हाल ही में हुए हरियाणा के विधानसभा चुनाव परिणाम में परिलक्षित होता है।

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लेखक वरिष्ठ संपादक हैं।

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