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Chandigarh News : पंजाबी अपना विरसा याद रखें, इसलिए शिल्प मेले में बनाया ‘मिनी पंजाब’

07:55 AM Dec 02, 2024 IST
chandigarh news   पंजाबी अपना विरसा याद रखें  इसलिए शिल्प मेले में बनाया ‘मिनी पंजाब’
कलाग्राम स्थित शिल्प मेले में बसाया गया मिन्नी पंजाब। -हप्र
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मनीमाजरा (चंडीगढ़), 1 दिसंबर (हप्र)
पंजाबी आज विदेश का रुख कर रहे हैं। न तो घर बच पा रहा है और व ही विरासत। पंजाबी अपने विरासत को छोड़ आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन मानसा से आए तरसेम चंद इसे अभी तक संजोये हुए हैं। वे अपने सोहणे पंजाब की विरासत को 14वें राष्ट्रीय शिल्प मेले में लेकर आए हैं, ताकि सभी को असली और पुराने पंजाब से रू-ब-रू करा सकें। 67 साल के तरसेम चंद कलहेरी को लोग भोला कलहेरी के नाम से भी जानते हैं। उन्होंने कहा कि मैं मानसा से ये पंजाब का विरसा लेकर चंडीगढ़ आया हूं।
मेरा गांव इतिहास का हिस्सा रहा है और पंजाब के कई गाने कलहेरी नाम पर बने हैं। इसी वजह से मैंने वो विरसा संभाला, जिसे सभी छोडक़र आगे निकल गए। मैं अभी भी इन्हें थामे वहीं पर खड़ा हूं।
ये सब सामान ही पंजाब की विरासत है, जो हमें अपने जड़ों से जोड़ती है। अब लोग वो भूल चुके हैं। उन्होंने कहा कि पहले जरूरतों को घर पर ही पूरा किया जाता है। उदाहरण के तौर पर कपड़े दादा-दादी घर पर बनाते तो उसकी इज्जत होती थी। खेत से कपास लाने के बाद उसे बेलते, रुई निकालकर उसे पिंजाकर पूनियां बनाते, पूनी को चरखे पर चढ़ाकर अट्टियां बनतीं और फिर नड़े को दो-तीन बार चढ़ाकर कपड़े में ढाला जाता। कुर्ते, चादरे, कमीज, परने, खेसी, खेस आदि सब कुछ घर पर ही बनता था। आज किसी घर में ये नहीं होता। सब बाहर से आता है तो उसमें न तो अपनों का प्यार होता है और न ही उस कपड़े का सम्मान हो पाता है। उन्होंने कहा कि सब सामान हमारे बुजुर्गों का है। आज वजन को किलो के हिसाब से तोला जाता है, लेकिन पहले सेर से वजन किया जाता था। हमने यहां पर पंजाब के खान-पीन से लेकर रहन-सहन को दिखाने की कोशिश की है।
खेती का हर वो सामान लाए हैं जो हमारे घर के बुजुर्ग इस्तेमाल में लाते थे। इसके अलावा छज्ज, कड़ाई, बेरनी, मदानियां आदि भी यहां रखी गई हैं।
तरसेम कहते हैं कि पहले हमारे घर के सामान पर मुहावरे बनते थे, जैसे ओखली विच सिर दिता, मुड़े दा कि डर...। आज पंजाब के बच्चों को नहीं पता कि इसका अर्थ क्या है और इसके मायने क्या हैं। उन्होंने कहा कि आज हमें दो कदम भी पैदल चलना पसंद नहीं। हम कार का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन पहले मीलों का सफर भी गड्डे (बैल के पीछे लगने वाला हिस्सा) पर किया जाता था। हम जो गड्डा लाए हैं, उसे 15-20 लाख में भी तैयार नहीं किया जा सकता।

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चंडीगढ़ संगीत प्रेमियों का शहर- सुरेश वाडकर

मनीमाजरा (चंडीगढ़) (हप्र): रविवार को उमड़ी रिकार्ड तोड़ भीड़ , खिली धूप में खूब हुई खरीददारी, पूरा दिन ट्राइसिटी व आसपास के युवा, महिलाएं, बच्चे मेले का आनंद लेते हुए दिखे। कलाग्राम में चल रहे 14वें चंडीगढ़ राष्ट्रीय शिल्प मेले का विशेष आकर्षण सुरेश वाडकर, उनकी पत्नी पद्मा वाडकर और अमित कुमार सहित प्रशंसित बॉलीवुड गायकों की उपस्थिति रही। हमने सुरेश वाडकर और उनकी पत्नी पद्मा वाडकर से बात की और जाना कि चंडीगढ़ के खूबसूरत शहर में उनकी यात्रा उनके लिए क्या मायने रखती है। सुरेश वाडकर ने कहा जब मुझे शिल्प मेले में प्रस्तुति देने का निमंत्रण मिला तो मैं वास्तव में बहुत उत्साहित था। उन्होंने कहा कि यह उन्हेंे बचपन के दिनों में ले गया, जब वो टैगोर थिएटर में एक शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम में प्रस्तुति देने आये थे। तब वो 14 साल के थे। सपनों के शहर की यादें मेरे दिमाग में बसी रहीं। गायक जोड़े ने रविवार शाम को अपने सदाबहार हिट एकल और युगल गीत प्रस्तुत किए।

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