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Chandigarh News : नाक से ट्यूमर हटाने से लकवे के इलाज तक... पीजीआईएमईआर ने न्यूरोसर्जरी में रचा इतिहास

02:49 PM Jan 23, 2025 IST
chandigarh news   नाक से ट्यूमर हटाने से लकवे के इलाज तक    पीजीआईएमईआर ने न्यूरोसर्जरी में रचा इतिहास
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विवेक शर्मा/चंडीगढ़, 23 जनवरी

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Chandigarh News : कल्पना कीजिए कि एक मरीज, जिसकी नाक में विशाल ट्यूमर है और उसके जीवन पर इसका भारी असर पड़ रहा है। एक 16 महीने का बच्चा, जो सिर में दर्द और ट्यूमर के कारण खतरे में है और एक व्यक्ति जिसकी रीढ़ की हड्डी टूट चुकी है और लकवे का खतरा मंडरा रहा है। इन गंभीर और असंभव लगने वाले मामलों को पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ की टीम ने हल करके चिकित्सा विज्ञान में नया इतिहास रच दिया है।

प्रोफेसर एसएस धंडापानी के नेतृत्व में, न्यूरोसर्जनों की इस टीम ने तीन विश्व-प्रथम तकनीकों को सफलतापूर्वक विकसित किया है, जो न केवल मरीजों के लिए जीवनदायिनी साबित हुईं, बल्कि चिकित्सा विज्ञान में भारत को गर्व का प्रतीक भी बना दिया है। इन तकनीकों को प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल्स में प्रकाशित किया गया है।

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नाक के रास्ते विशाल ट्यूमर हटाने का करिश्मा

पहला मामला एक एक्रोमेगली से पीड़ित मरीज का था, जिसके नाक में विशाल पिट्यूटरी ट्यूमर था, जिसे हटाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण था। प्रोफेसर धंडापानी, डॉ. सुशांत साहू और ईएनटी विशेषज्ञ प्रो. रिजुनीता की टीम ने एंडोस्कोपी और नेविगेशन तकनीक का उपयोग करते हुए मरीज की नाक में हड्डी के अंदर एक सुरंग बनाई और ट्यूमर को सफलतापूर्वक हटा दिया। यह तकनीक "जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूरोसाइंस" में प्रकाशित हुई।

16 महीने के बच्चे की जिंदगी बचाने वाला मामला

दूसरा मामला एक 16 महीने के बच्चे का था, जिसका सिर में बड़ा क्रैनियोफैरिंजिओमा ट्यूमर था। इस स्थिति में ऑपरेशन करना अत्यंत जोखिमपूर्ण था, लेकिन पीजीआईएमईआर की टीम ने माइक्रो इंस्ट्रूमेंट्स और छोटे एंडोस्कोप का इस्तेमाल करके इस असंभव कार्य को सफलता पूर्वक अंजाम दिया। इस सफलता को ऑपरेटिव न्यूरोसर्जरी जर्नल में प्रकाशित किया गया।

लकवे के खतरे को हराने वाली नई तकनीक

तीसरे मामले में एक मरीज की रीढ़ की हड्डी में गंभीर डिसलोकेशन था, जिससे लकवे का खतरा था। परंपरागत सर्जरी में बड़े चीरे और लंबी रिकवरी की आवश्यकता थी। लेकिन प्रोफेसर धंडापानी और उनकी टीम ने ओ-आर्म तकनीक और पर्कुटेनियस स्क्रू का उपयोग करके बिना बड़े चीरे के रीढ़ की हड्डी को स्थिर कर दिया। इस तकनीक को "वर्ल्ड न्यूरोसर्जरी" जर्नल में प्रकाशित किया गया।

भारत की चिकित्सा में नया अध्याय

इन तीनों मामलों ने यह साबित कर दिया कि भारतीय डॉक्टर सीमित संसाधनों में भी दुनिया को नई दिशा दे सकते हैं। प्रोफेसर धंडापानी ने कहा, "यह सफलता टीमवर्क और नवीन तकनीकों के प्रति हमारे विश्वास का नतीजा है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम मरीजों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहें।"

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