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चप्पा- चप्पा खूबसूरती  समेटे है चम्बा

07:32 AM Jun 07, 2024 IST
चप्पा  चप्पा खूबसूरती  समेटे है चम्बा
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अमिताभ स.
हालांकि युवा चम्बा को सुस्त हिल स्टेशन मानते हैं, लेकिन सुकून ढूंढ़ते बुजुर्ग चम्बा को आरामदायक करार देते हैं। एक महीना चम्बा में रहने के बाद बीमार तन-मन भी भला-चंगा और जवान होकर उभर आता है। डेढ़-मेढ़े पहाड़ी रास्तों से गुज़र कर ऐसे जादुई चम्बा में पहुंचते हैं। ऊंचे-लंबे फर और देवदार के पेड़ों से भारी-सजी वादियां कुदरत प्रेमियों के लिए वाकई सौगात हैं। इसीलिए कहने वालों ने चम्बा को यूं ही ‘अचम्भा’ नहीं कहा।
हिमाचल प्रदेश की गोद में बसा चम्बा कुदरती खूबसूरती का धनी है। चारों ओर से ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरा है और बीचोंबीच विशाल मैदान है। मैदान को कहते हैं चौगान और इसे चम्बा का दिल ही समझिए। शुरुआती दौर में, यह खासा बड़ा मैदान था, लेकिन बाद के सालों में यह छोटे-छोटे 4 मैदानों में तब्दील हो गया। हर साल जुलाई में, यहीं जाने-माने मिंजर मेले का भव्य आयोजन किया जाता है। मैदान में खेल-कूद के टूर्नामेंट भी होते रहते हैं।

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चौगान मैदान और मन्दिर

चौगान मैदान के सामने ही लक्ष्मी नारायण मन्दिर समूह के दर्शन होते हैं। मन्दिर परिसर में 6 मन्दिर हैं और हर मन्दिर चट्टानी पत्थरों से बना है। तीन मन्दिर भगवान शिव को समर्पित हैं, तो तीन भगवान विष्णु को। कुछेक तो 10वीं सदी के निर्मित हैं। श्री लक्ष्मी दामोदर मन्दिर, महामृत्युंजय मन्दिर, श्रीदुर्गा मन्दिर, गौरी शंकर महादेव मन्दिर, श्रीचन्द्रगुप्त महादेव मन्दिर और राधा कृष्ण मन्दिर हरदम भक्तों से भरे रहते हैं।
इनके समेत समूचे चम्बा में कुल 75 प्राचीन मन्दिर हैं। करीब एक किलोमीटर परे मां चामुण्डा देवी मन्दिर के दर्शन होते हैं। यहीं रावी नदी का दिलकश नज़ारा भी मंत्रमुग्ध करता है। रावी नदी पंजाब को सींचती 5 नदियों में से एक है। इसका स्रोत बड़ा बंगल पर्वत पर है। वहां से चम्बा को निहारना अनुभव है। मदमस्त बहती रावी नदी चम्बा की खूबसूरती में रंग भर देती है।

म्यूजियम है खास

चम्बा के अतीत और इतिहास की झलक पाने के लिए भूरी सिंह म्यूजियम की सैर सैलानियों को लुभाती है। चौगान से पैदल दूरी पर है और गुलेर शैली की तमाम पेंटिंग्स से सजा है। और हां, यहां चम्बा शहर की कई हेरिटेज और दुर्लभ तस्वीरें देखने का निराला मौका मिलता है। यहां कागड़ा के राजा संसार चंद कटोच और चम्बा के राजा राज सिंह के बीच समझौते का ताम्बे पर बना सन्धि पत्र भी संगृहीत है। रंग महल पैलेस की कई प्रतिमाओं और अन्य दुर्लभ वस्तुओं को यहां देखा जा सकता है।
इसमें टहलते-टहलते हम हिमाचल के आर्ट, क्राफ्ट और कल्चर की रंगारंग दुनिया के तमाम रंगों से रूबरू होते हैं। एक और म्यूजियम है लक्ष्मी नारायण मन्दिर के परिसर में। बेशक छोटा है, लेकिन कई दिलचस्प जानकारियां समेटे है। म्यूजियम की दीवारों पर उल्लेख है कि कोलकाता के बाद चम्बा बिजली से जगमगाने वाला हिन्दुस्तान का दूसरा शहर है। इसे मुमकिन करने में राजा भूरी सिंह का बड़ा योगदान रहा। वैसे, भूरी सिंह संग्रहालय की स्थापना 1908 में राजा भूरी सिंह के हाथों हुई थी।

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चम्बा रुमाल

चम्बा की शालें और जूतियां खास हैं ही, लेकिन उनसे बढ़ कर चम्बा रुमाल का तो दुनिया में नाम है। कहते बेशक रुमाल हैं, लेकिन जेब में रखने वाला रुमाल नहीं है, बल्कि दीवार पर सजाने वाली पेंटिंग्स हैं। शानदार कढ़ाई का उत्कृष्ट नमूना कह सकते हैं। एक-एक रुमाल बनाने में 2-2 महीने तक लगते हैं। कुछेक रुमालों पर श्रीकृष्ण की रासलीला समेत विभिन्न धर्मग्रंथों के प्रसंगों का बखूब चित्रण है।
इस रुमाल का सबसे पुराना रूप 16वीं सदी में गुरु नानक देव जी की बहन बेबे नानकी जी के हाथों बनाया गया था। बेबे नानकी जी के हाथों से बना ऐतिहासिक रुमाल आजकल होशियारपुर के गुरुद्वारे में संग्रहित है। लंदन स्थित विक्टोरिया अल्बर्ट म्यूज़ियम में भी चंबा रुमाल है, जो 1883 में राजा गोपाल सिंह द्वारा अंग्रेजों को तोहफ़े के तौर पर दिया गया था। इसके ऊपर महाकाव्य महाभारत के कुरुक्षेत्र युद्ध की कढ़ाइदार छवि अंकित है। चम्बा रुमालों के बनने- बनाने के सिलसिले का श्रीगणेश 1965 में जानी- मानी कलाकार माहेश्वरी देवी के हाथों हुआ बताया जाता है।

इतिहास

चम्बा 996 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। आबादी करीब 50 हजार है। इसका इतिहास 1000 साल से ज्यादा पुराना है। साल 500 के आसपास मारू वंश का शासन था। तब राजधानी भरमौर थी, जो चम्बा से करीब 75 किलोमीटर दूर है। फिर साल 920 में राजा साहिल वर्मन ने अपनी प्यारी बेटी चंपावती की फरमाइश पर राजधानी चम्बा शिफ्ट कर ली। वर्ष 1846 आते- आते चम्बा रियासत पर अंग्रेजी हुकूमत ने कब्जा जमा लिया। अप्रैल, 1948 में यह आजाद भारत में सम्मलित हो गया।
चम्बा का नामकरण राजकुमारी चंपावती के नाम पर हुआ बताते हैं। राजकुमारी चंपावती रोज ध्यान के लिए एक साधु के आश्रम में जाने लगी। संदेह के चलते एक रोज़ राजा उसके पीछे-पीछे आश्रम जा धमका। वहां कोई नहीं मिला और संदेह की वजह से उसकी बेटी छीनी गई। फिर दैवीय आकाशवाणी ने राजा को राजकुमारी की याद में मन्दिर बनाने का आदेश दिया। देव आज्ञा का पालन करते हुए राजा ने चौगान मैदान के नजदीक चंपावती मन्दिर का निर्माण करवाया। मन्दिर में शक्ति की देवी महिषासुर की दिव्य प्रतिमा है। एक दूसरे धारणा के अनुसार राजा साहिल वर्मन ने शहर का नाम राजकुमारी चंपावती के नाम पर चंपा रख दिया। समय के साथ नाम बदलते-बदलाते चम्बा हो गया।

नज़दीक डलहौज़ी और...

चम्बा से ज़रा परे छोटे से कस्बाई शहर सरोल की पिकनिक भी क्या लुभाती है। सरोल में मधुमक्खी पालन सेंटर हैं, जहां से सौगात के तौर पर ताज़ा शहद खरीद- खरीद कर सैलानी घर ले जाते हैं।
जाना-माना हिल स्टेशन डलहौजी बेशक चम्बा घाटी में है, लेकिन चम्बा शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर है। डलहौजी के पहाड़ों की ऊंचाई करीब 5000 फुट से 7800 फुट तक जाती है। शहर की ज्यादातर इमारतों पर ब्रिटिश आर्किटेक झलकता है। छोटे-से शहर में 4 चर्चे हैं- सेंट एंड्रीयू, सेंट पेट्रिक्स, सेंट फ्रांसिस और सेंट जोंस। शहर गोलाई में बसा है, पैदल सैर करने वालों के लिए स्वर्ग जैसा है। ठंडी सड़क और गर्म सड़क डलहौजी के पहाड़ के इर्द-गिर्द घूमती है। एक छोर पर गांधी चौक है, तो दूसरे पर सुभाष चौक। पूरा गोल चक्कर पैदल सैर करने में करीब एक घंटा लगता है। नजदीक ही खज्जियार बड़ा टूरिस्ट्स अट्रेक्शन है।

कितनी दूर, कब जाएं

= दिल्ली से चम्बा करीब 620 किलोमीटर दूर है। सड़क मार्ग से पहुंचने में करीब 13 घंटे लगते हैं। नजदीकी एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन पठानकोट हैं। पठानकोट से चम्बा तक की सड़क दूरी करीब 120 किलोमीटर है। पठानकोट टु चम्बा बस और टैक्सी के जरिए आ-जा सकते हैं।
= चम्बा की वादियों की सर्दियां बेहद सर्द हैं, बर्फ भी पड़ती है। बारिशों में तो मूसलाधार बरसता है। इसलिए मौसम के लिहाज़ से सैर-सपाटे के लिए मार्च से जून और फिर सितम्बर से नवम्बर बेस्ट महीने हैं।

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