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विकसित राष्ट्र बनने की राह में मौजूद चुनौतियां

06:33 AM Sep 11, 2023 IST
विकसित राष्ट्र बनने की राह में मौजूद चुनौतियां
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सुरेश सेठ

भारत के नीति-नियंताओं के अनुसार आजादी के 75वें साल के बाद अब हम एक अमृत पथ के अनुगामी हैं। जब देश अपनी आजादी का शतकीय महोत्सव मनाएगा तो यह विकासशील देश नहीं रहेगा बल्कि विकसित राष्ट्र बन जाएगा। जो अनुमान इस रास्ते पर चलते हुए हमारी उपलब्धियों के लगाए जा रहे हैं वे निश्चय ही भारत का एक उजला चेहरा प्रस्तुत करते हैं। मार्गन स्टेनली एक विश्वसनीय सर्वेक्षण आंकड़ा संस्थान है। उसने भी 2023-24 के पूरे वर्ष में भारत की विकास दर को बढ़ाकर 6.2 प्रतिशत से 6.4 प्रतिशत कर दिया है। अप्रैल-जून, 2023 में भारत की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रही। मार्गन स्टेनली 7.4 प्रतिशत का अनुमान लगा रहे थे। जब पूरी दुनिया महामंदी की शिकार हो रही है, भारत में न मांग में कमी आई है न ही घरेलू उत्पादन में। अगर विदेशी निवेश कम हुआ तो घरेलू निवेश ने जगह ले ली है। जिस स्थाई सरकार का अहसास मोदी जी ने पिछले 9 वर्ष में भारत को दिया है और अब अगले महाचुनाव के बाद भी इसी स्थायित्व के बने रहने का विश्वास दिलाते हैं, उसी से ही देश की शेयर मार्केट उत्साहित है।
यह देश की कामयाबी है कि एक दशक से भी कम समय में आर्थिक तरक्की पांच पायदान की छलांग लगाकर देश दसवीं से पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। इसका कारण था अर्थव्यवस्था, शिक्षा, वित्तीय क्षेत्र, बैंक डिजिटलीकरण और कल्याण का समावेशी और सामाजिक विकास। देश की आर्थिक विकास दर दुनिया में सबसे आगे है, इस पर कोई संदेह नहीं। देश का सकल घरेलू उत्पादन और सकल घरेलू आय निरंतर बढ़ रही है। इस समय 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार भारत 3.39 लाख करोड़ के सकल घरेलू उत्पाद के साथ ब्रिटेन को पीछे छोड़ गया। बहुत जल्दी वह जापान और जर्मनी को भी पीछे छोड़कर अमेरिका और चीन के बाद अपना स्थान ग्रहण कर लेगा। अर्नेस्ट एंड यंग कहता है कि 2028 तक भारत की जीडीपी 5 लाख करोड़ को पार कर जाएगी। जापान व जर्मनी हमसे पीछे रह जाएंगे और भारत विश्व की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में होगा। बहुत अच्छी खबरें हैं ये।
पिछले बजट में ही भारत की वित्तमंत्री ने ऐलान कर दिया था कि अब हमारा ध्यान भारत के मूलभूत आर्थिक ढांचे को बनाने की ओर है। भारत के लिए पूंजी निर्माण की ओर है। इसीलिए देश में न केवल खेती और औद्योगिक व्यवस्था का कायाकल्प होगा बल्कि देश में विनिर्माण, सेवा और पर्यटन क्षेत्र को भी नई रंगत दे दी जाएगी। लेकिन कुछ प्रश्न हैं जो अंतर्निहित संकट की ओर इशारा करते हैं।
सवाल यह कि देश में बेरोजगारी की समस्या क्यों हल नहीं हुई? महंगाई का संकट क्यों पैदा हो गया? भ्रष्टाचारियों के नये-नये कारनामे रुक क्यों नहीं रहे हैं। उधर हमारी विधानसभाओं से लेकर हमारी संसद के सत्रों में आरोपित और दागदार चेहरों की भरमार होती जा रही है। विश्व के भ्रष्टाचार सूचकांक बताते हैं कि भ्रष्टाचार उन्मूलन की घोषणाओं के बावजूद अपने देश में भ्रष्टाचार की सघनता कम नहीं हुई। देश में परिवारवाद और रियायतों की रेवड़ियां खत्म करने की बहुत-सी बातें की जाती हैं लेकिन जैसे ही चुनावों की घोषणा होती है, उम्मीदवारों में नये खून के नाम पर स्थापित राजनीतिक विभूतियों के परिवार से जुड़े हुए लोग किसी न किसी चोर दरवाजे से नजर आने लगते हैं। हर दल का एजेंडा चुनावी घोषणा पत्रों के साथ आम लोगों के लिए तर्कहीन रियायतों और अनुकम्पाओं से भरा होता है।
सवाल शिक्षा नीति को लेकर भी, कि क्या हमने नई शिक्षा नीति का आकलन किया है कि उसके द्वारा चलाए गए शिक्षा संस्थानों में पाठ्यक्रम पुस्तकें और अध्यापन बदल गया है? जो नई पीढ़ी सामने आए, वह क्या बिल्कुल नये युग और 21वीं सदी के तकाजों के अनुरूप हो। वास्तविकता यह है कि पुरानी डिग्रियां लगभग नाकारा लगती हैं और डिजिटल हो जाने या इंटरनेट की सामर्थ्य केवल एक चुने हुए वर्ग तक ही सीमित रहती नजर आती है। शहरों और कस्बों तक ही सिमटी नजर आती है। जब आयकर रिटर्न दाखिल करने का समय आता है तो इनकी संख्या 7 करोड़ से ऊपर नहीं होती। उसमें से भी आधी रिटर्न ऐसी होती हैं जिनमें कोई कर देय नहीं होता। सवाल ये भी है कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर धनराशि का आवंटन प्रतिशत कम क्यों हो रहा है। मनरेगा के लिए धनराशि का आवंटन कम क्यों कर दिया गया? मनरेगा को किसी निर्दिष्ट कार्य योजना के साथ क्यों नहीं जोड़ा गया? सहकारी आंदोलन और लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास प्राथमिकता क्यों नहीं बनती? और लघु व कुटीर उद्योगों का विकास स्टार्टअप उद्योगों में भी नजर नहीं आता। ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो देश के 21वीं सदी के शुभ आगमन के रास्ते में खड़े नजर आते हैं। इन समस्याओं के समाधान के बाद ही हम 2047 में भारत के विकसित राष्ट्र बन जाने की कल्पना को साकार करेंगे। मौजूदा चुनौतियों का गंभीरता के साथ मुकाबला करने की जरूरत है।

लेखक साहित्यकार हैं।

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