अंतरिक्ष के सफर की चुनौतियां
अंतरिक्ष में चहलकदमी का सिलसिला तब शुरू होता है, जब हम उसके आंगन में कदम रखते हैं यानी पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर निकलकर अनंत ब्रह्मांड की यात्रा पर बढ़ते हैं। यह करिश्मा यानी अंतरिक्ष में इंसान को भेजना- अभी तक अमेरिका, रूस और चीन कर चुके हैं। पर भारत भी अब इस राह पर है। इस योजना के तहत इसरो पहले तो अपना गगनयान मिशन स्पेस में भेजगा और फिर वर्ष 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाकर तैयार करेगा। तीसरा पड़ाव चंद्रमा होगा, जहां भारतीय शख्स चांद पर पांव रखेगा। निश्चय ही इन योजनाओं पर काम चल रहा है, पर इनसे जुड़ी चुनौतियां आसान नहीं हैं। इसके बाद मंगल या फिर उसके पार जाकर सौरमंडल के विभिन्न हिस्सों की टोह लेना तो और भी कठिन है। वजह यह है कि अभी न तो मौजूदा अंतरिक्षयानों के लिए यह मुमकिन है कि वे अपने साथ इंसान को चंद्रमा से पार ले जाकर वापस पृथ्वी पर सही-सलामत ला सकें और न ही अंतरिक्ष इतनी सुविधापूर्ण जगह है कि वहां जाकर इंसान लंबे समय तक स्वस्थ और जीवित रह सके। यहां तक कि भविष्य में जब कभी मंगल ग्रह की यात्रा का कोई सिलसिला यदि बन पाया, तो यह तय माना जा रहा है कि उस यात्रा में मंगल से पृथ्वी तक वापसी में इंसान का जिंदा रहना शायद ही संभव हो। मंगल तो फिर भी दूर की कौड़ी है, हकीकत ये है कि चंद्रमा तक भी किसी मिशन को सही-सलामत पहुंचाना ही बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। यही वजह है कि 1969 के अपोलो-11 मिशन के पचास साल बाद अभी तक कोई दूसरा देश इंसान को चंद्रमा पर नहीं भेज सका है। इसलिए ज्यादा कोशिश यही है कि इंसानों को स्पेस कहलाने वाली पृथ्वी की निचली कक्षा (सबऑर्बिट) तक ले जाया जाए और यदि अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन यानी आईएसएस पर मौजूद रहने वाले वैज्ञानिकों-यात्रियों की अदला-बदली संभव हो, तो थोड़े अंतराल पर नए यात्री वहां भेजकर कुछ महीने वहां बिता चुके यात्रियों को वापस लाया जाए। अभी तक यह सारा काम सरकारी स्पेस एजेंसियों के बल पर हुआ है। लेकिन अंतरिक्ष यात्राओं और अनुसंधान पर बढ़ रहे खर्च के कारण सरकारी एजेंसियां इस काम से हाथ खींचने लगी हैं। अंतरिक्षीय पिंडों से खनिजों और बहुमूल्य धातुओं के खनन का काम भी इतना खर्चीला और झंझट भरा है कि कोई भी सरकारी अंतरिक्ष एजेंसी इसमें हाथ डालने से कतराती है। वैसे तो अंतरिक्ष पर्यटन में कमाई की भरपूर संभावनाएं हैं, लेकिन इसमें निहित खतरों को देखते हुए अत्यधिक जोखिम वाले ऐसे कार्यों में सरकारी एजेंसियां अपने वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की सेवाएं प्राइवेट एजेंसियों को दे रही हैं। यहां एक बड़ा सवाल है कि ऐसी अंतरिक्ष यात्राओं का उद्देश्य क्या है। क्या इनका मकसद सिर्फ अमीरों को स्पेस की सैर पर ले जाकर कमाई करना है। बेशक, दुनिया में ऐसे दिलेरों (और अमीरों) की कमी नहीं है जो अंतरिक्ष की सैर के ख्वाब को हर हाल में पूरा करना चाहते हैं। लेकिन स्पेस की सैर के उद्देश्य इससे भी ज्यादा हैं। असल में इनसे लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के रास्ते खुलते हैं और भारी आर्थिक बोझ से जूझ रही सरकारी स्पेस एजेंसियों को अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए संसाधन जुटाने में इनसे मदद मिलती है। यानी इनके जरिये इंसान अंतरिक्ष को छूकर एक तसल्ली भर नहीं पाना चाहता है। बल्कि उस अंतरिक्ष को और करीब से जानना चाहता है जिसका विस्तार अरबों-खरबों किलोमीटर है, लेकिन अब तक की यात्राओं में इंसान ने उसके नगण्य हिस्से को ही जाना है।
-सं.व.