संविधान प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द को चुनौती, याचिका खारिज
नयी दिल्ली, 25 नवंबर (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ जैसे शब्द जोड़ने वाले 1976 के संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाएं सोमवार को खारिज कर दीं। इन शब्दों को 1976 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया था।
भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने पूर्व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिकाओं पर 22 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘रिट याचिकाओं पर आगे विचार-विमर्श करने और निर्णय सुनाने की आवश्यकता नहीं है। संविधान में संशोधन की संसद की शक्ति प्रस्तावना पर भी लागू होती है।’ पीठ ने कहा कि संविधान को अपनाने की तिथि अनुच्छेद 368 के तहत सरकार की शक्ति को कम नहीं करेगी और इसके अलावा इसे चुनौती भी नहीं दी जा रही है। उसने कहा कि संसद की संशोधन करने की शक्ति प्रस्तावना पर भी लागू होती है। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘इतने साल हो गए हैं, अब इस मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है?’