बेरोजगारी की चुनौती
तेरह मई के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित आलोक यात्री का ‘ग्रामीण भारत में भी गहराया रोजगार संकट’ लेख गंभीर विषय पर केंद्रित था। कोरोना वायरस की महामारी के कारण और कोरोना की दूसरी लहर के कारण बेरोजगारी दर में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। रिपोर्ट के मुताबिक रोजगार गंवाने वालों में 60 फीसदी लोग ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े हैं। भारतीय कामगारों की काम करने की अधिकतम अवधि 7 से 8 घंटे की होती है लेकिन घर से काम करने को अवधि की कोई तय सीमा सुनिश्चित नहीं है। इससे मानसिक तनाव में बढ़ोतरी और बीमारियों के शिकार होने का खतरा बने रहने का डर है।
संदीप कुमार वत्स, चंडीगढ़
कालाबाजारियों को सज़ा
देश खतरनाक कोरोना वायरस महामारी के दूसरे दौर से गुजर रहा है, जिससे भारी संख्या में लोग संक्रमित होकर बेमौत मारे जा रहे हैं। स्थिति बहुत गंभीर है। कुछ समाज के गिद्ध, जिनमें इनसानियत तथा संवेदनशीलता नहीं है, वे लाशों के कफन उतार कर दोबारा बेच रहे हैं, दवाइयों, ऑक्सीजन सिलेंडर तथा एंबुलेंस के मनमाने रेट मजबूर लोगों से वसूल रहे हैं। मानवीय मूल्यों के पतन को रोकने के लिए ऐसे कालाबाजारियों को फांसी मिलनी चाहिए, उनकी संपत्ति जब्त कर लेनी चाहिए। साथ ही इनका साथ देने वाले अधिकारियों को भी नौकरी से हटा कर सज़ा मिलनी चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
संवेदनशील पहल
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन बच्चों को पांच हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन देने की घोषणा की है जो महामारी के दाैरान अपने माता-पिता या अभिभावकों को खो चुके हैं। इसके साथ ही बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा और परिवारों के लिए मुफ्त राशन की व्यवस्था भी होगी। राज्य सरकार की यह पहल सराहनीय है। देश के अन्य राज्यों को भी ऐसी ही योजनाओं को अमल में लाना चाहिए। ऐसे मामलों में राज्य सरकारों को स्वयंसेवी संस्थाओं का भी सहयोग लेना चाहिए।
सुभाष बुड़ावनवाला, म.प्र.