ब्रह्मचर्य और धर्म
महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस का जन्म 550 वर्ष ईसा पूर्व चीन के एक प्रान्त में हुआ। कन्फ्यूशियस की तमाम शिक्षाएं, गुत्थियों एवं जटिलताओं से कहीं दूर हैं। वे सभी को नैतिक आचरण की प्रेरणा देते थे। एक बार कन्फ्यूशियस के अनुयायी ने धर्म प्रचारक बनने के लिए आवश्यक अर्हता ‘ब्रह्मचर्य’ का व्रत लेने की इच्छा व्यक्त की। कन्फ्यूशियस ने अपने शिष्य से कहा, ‘वत्स, मैंने ऐसे बहुत से साधु-संत देखे हैं, जिन्होंने अति उत्साह में साहस का परिचय देते हुए ब्रह्मचर्य के व्रत का संकल्प तो ले लिया, परंतु बाद में उसका पालन नहीं किया और कामुक वृत्ति के चलते व्रतभंग के दोषी हो गए। कामुक वृत्ति के साथ ब्रह्मचर्य धर्म की आड़ में व्यभिचार ही है। ब्रह्मचर्य का व्रत लेकर तोड़ने की अपेक्षा अच्छा यह है कि विवाहित जीवन स्वीकार किया जाये और पवित्रतापूर्वक ही धर्म कार्य किया जाये। विवाह संस्था में रहते हुए धर्म का पालना करना अधिक श्रेष्ठ और धर्म-सम्मत है।
प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा