मां गंगा के पुनर्जन्म का उत्सव
चेतनादित्य आलोक
हिन्दू पंचांग के अनुसार बैसाख महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ‘गंगा सप्तमी’ का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व मंगलवार 14 मई को मनाया जाएगा। मां गंगा के जन्मोत्सव का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण एवं स्कंद पुराण में व्यापक रूप से किया गया है। वहीं, धर्मग्रंथों में मां गंगा के अनेकानेक नामों का उल्लेख मिलता है। इनमें जह्नु पुत्री, जाह्नवी, विष्णुपदी, जटा शंकरी, नीलवर्णा, महेश्वरी, शुभ्रा, गंगे, भागीरथी आदि कुछ प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। पहली बार मां गंगा परमपिता ब्रह्मा के कमंडल से गंगा दशहरा के दिन अवतरित हुई थीं, लेकिन कपिल मुनि के शाप से भस्मीकृत राजा सगर के 60,000 पुत्रों का उद्धार करने के लिए सगर के वंशज ऋषि भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर स्वर्ग से धरती पर आने के कारण मां गंगा को भागीरथी कहा गया।
हालांकि, गंगा जी के अत्यंत वेगवती होने के कारण उनके आगमन को लेकर समूची पृथ्वी का संतुलन बिगड़ने की आशंका से पृथ्वी माता भयभीत हो उठीं, जिसके बाद ऋषि भगीरथ के निवेदन पर देवाधिदेव महादेव भगवान भोलेनाथ शिवशंकर ने गंगा जी को अपनी जटाओं में धारण किया। इस प्रकार मां गंगा जटा शंकरी कहलाईं। अंततः भगवान शिव ने गंगा जी के वेग को कम करके पृथ्वी गमन हेतु छोड़ा, ताकि धरती माता और उनकी व्यवस्था को कोई क्षति न पहुंचे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के पैर के पसीने की बूंदों से जन्म लेने के कारण ये विष्णुपदी कहलाईं। इनके अतिरिक्त महर्षि जह्नु के दाएं कान से मुक्ति पाकर मां गंगा जह्नु पुत्री अथवा जाह्नवी कहलाईं। वहीं, पृथ्वी पर दोबारा प्रकट होने के कारण गंगा सप्तमी को मां गंगा के पुनर्जन्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार गंगा सप्तमी के दिन अमृततुल्य मां गंगा के जल का पान, जीवनदायिनी गंगा जी में स्नान, पुण्यसलिला माता नर्मदा के दर्शन और मोक्षदायिनी मां शिप्रा के स्मरण मात्र से ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
पद्म पुराण में वर्णन
पद्म पुराण के अनुसार इस दिन गंगा स्नान और पूजन करने से रिद्धि-सिद्धि, यश और सम्मान मिलता है तथा भक्त के समस्त पापों का क्षय होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यदि नदी में स्नान करना संभव न हो तो घर में ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए।
श्रीमद्भागवत में उल्लेख
श्रीमद्भागवत महापुराण मे गंगा जी की महिमा बताते हुए शुकदेव जी राजा परीक्षित से कहते हैं कि गंगा जल की महज कुछ बूंदें पान करने अथवा उसमें स्नान करने पर मनुष्य को अकल्पनीय पुण्य की प्राप्ति होती है। इसलिए वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर गंगा स्नान तथा अन्न और कपड़ों का दान, जप-तप एवं उपवास आदि करने से सभी पापों का नाश होता है और अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होती है। भगवान शिव का गंगा जल से अभिषेक करने पर भगवान शिव एवं मां गंगा की कृपा प्राप्त होती है।