भारतीय समरसता की सतरंगी संस्कृति का उत्सव
ये भारतीय समरसता की, संस्कृति की खूबसूरती है कि मुस्लिम के घर का बना रंग हिंदू के गाल पर रंगत ला रहा है। भला रंग में रंगे आदमी को देखकर कौन बता पायेगा कि कौन हिंदू है, कौन मुसलमान और कौन ईसाई। मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि गले मिलने से सारे गिले शिकवे भी पक्के दूर हो जाते हैं।
नरेश कौशल
वाकई होली रंगों से जीवन को जीवंत बनाने का त्योहार है। रंग-भेद खत्म करके गले मिलने का त्योहार है। समाज में गोरे-काले का भेद खत्म करने का रंगमय होने का अवसर। दूसरे अर्थों में देखें तो विभिन्न संस्कृतियों में होली के रंग रिश्तों को चटख बनाने का ही अवसर है। समाज में छोटे-बड़े, ऊंच-नीच, अफसर-कर्मचारी, धर्म-संप्रदाय, जाति-वर्ण, अमीर-गरीब के फर्क से परे सबको गले लगाने का त्योहार है होली। होली का त्योहार तब दस्तक देता है जब प्रकृति अपने पूरे यौवन पर होती है। प्रकृति भी रंग-बिरंगे फूलों और कोपलों से खिल उठती है। किसानी संस्कृति के प्रदेश हरियाणा-पंजाब में खेतों में नयी फसलों का रंग किसान के जीवन में नयी उम्मीद भरता है। किसान के चेहरे पर खुशी है कि नयी फसल उसके सपने पूरे करेगी। वह पुराने कर्जे चुका सकेगा। भरोसा है कि फसल की बिक्री से हुई आमदन से परिवार की जिम्मेदारियां पूरी हो सकेंगी। देखा जाए तो इस मौके पर सारा वातावरण ही होलीमय नजर आता है। ठंड विदा हो रही है, मौसम खुशगवार है। मन और कुदरत के आंचल में चटख रंग खिल रहे हैं। जैसे कुदरत भी बुला रही : आओ होली खेलें। गिले-शिकवों का रंग पानी से धो दें, नया जीवंत रंग बनाएं। रंग जो ऊर्जा का हो। रंग जो उत्साह का हो। रंग का उमंग जिंदगी में नयी ताजगी भर दे। मिटा दें सब रंग-भेद, सब एकता के रंग में रंग जायें। भाईचारे के रंग में रंग जाएं। सद्भाव के रंग में रंग जाएं। फिर भी कोई कसक बाकी रहे तो गुजिया की मिठास से उसे भी दूर कर दें। धन्य हैं हमारे पुरखे जिन्होंने कुदरत की रंगीनियों के बीच कैसे इस पर्व की संकल्पना की होगी। गरीब-अमीर हफ्तों पहले से होली मनाने की तैयारी में जुट जाता है। इस त्योहार में धर्म-जाति के भेद मिट जाते हैं। हिंदुओं का त्योहार है, मुस्लिम उसकी तैयारी में जुटा है। देश का बड़ा मुस्लिम तबका रंग बनाने के कारोबार में लगा है। ये भारतीय समरसता की, संस्कृति की खूबसूरती है कि मुस्लिम के घर का बना रंग हिंदू के गाल पर रंगत ला रहा है। भला रंग में रंगे आदमी को देखकर कौन बता पायेगा कि कौन हिंदू है, कौन मुसलमान और कौन ईसाई। मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि गले मिलने से सारे गिले-शिकवे भी पक्के दूर हो जाते हैं।
निर्विवाद रूप से गंगा-जमुनी संस्कृति का गाढ़ा रंग देश को एकता के सूत्र में पिरोता नजर आता है। दरअसल, वित्तीय दृष्टि से भी देखें तो मार्च का महीना साल का आखिरी महीना है। सरकारी दफ्तरों में साल भर उपयोग न हुए धन को उचित रूप से उपयोग में लाने का मौका होता है। अफसर की होली, बाबू की होली, ठेकेदार की होली। पैसे की बरसात से हजारों-लाखों परिवारों की होली। कारोबारियों के लिये भी होली बहुत कुछ लेकर आती है। हर कारोबारी वर्ष के आखिरी महीने में मकसद यही होता है कि सालभर का मुनाफा हासिल करके होली खेली जाये। नया अनाज व दूसरी फसलें मंडी पहुंचने की तैयारी में हैं। किसान इस तरंग में है कि उसके घर धन-धान्य से महकेंगे। बाजार गुलाल-अबीर से गुलजार है। इस दौरान मिठाइयों की रिकॉर्ड खरीदारी दुकानदारों के जीवन में समृद्धि के नये रंग भर देती है। सही मायनों में यह त्योहार हमारी अर्थव्यवस्था में उत्साह का नया रंग भर देते हैं। गरीब को काम मिलता है। उसका चूल्हा नकद-नारायण से गुलजार होता है। हर छोटे बड़े कारोबारी के घर में बरकत आती है।
सही मायनों में होली के रंग मन के कलुष के रंग भी मिटा देते हैं। त्योहार की खासियत यह भी है कि तमाम लोग वर्षों की दुश्मनी भुलाकर गले मिल जाते हैं। सालों की कड़वाहट पर सद्भाव का रंग चढ़ जाता है। रिश्तों में भी रंग अपना सुरूर दिखा जाता है। मौका देवर का भी है। होली के दिन देवर को भाभी को रंग लगाने का मौका मिल जाता है। साल में एक दिन तो ऐसा होता है जब हर रिश्ता रंग में रंग जाना चाहता है। क्या बड़ा, क्या छोटा- हर किसी को रंग लगाने की आजादी होती है। कोई बुरा नहीं मानता कि रिश्तों में कौन छोटा और कौन बड़ा। इस बहाने सास-बहू में खूब आत्मीय बोलचाल हो जाती है। बहू अगर ससुर पर रंग डाल भी दे तो कोई वर्जना नहीं टूटती। सच पूछो तो होली बच्चों का सबसे पसंदीदा त्योहार है। हफ्तों से वे इस त्योहार की तैयार में लग जाते हैं। शहर-गांव-कस्बों में होली जलाने की होड़ रहती है। शहरों में तो होली जलाने का चलन कम हो गया है, मगर गांवों और छोटे कस्बों में तो नजारा ही हुल्लड़ भरा होता है। शहर-गांव में बच्चों की टोलियां होली का चंदा मांगती, मनुहार करती नजर आती हैं। फिर बढ-चढ़कर होली खेलती हैं।
देश के विभिन्न बोर्डों की परीक्षाएं चल रही हैं। पढ़ाई की एकरसता से ऊब चुके बच्चे होली खेलकर आने वाली परीक्षा के लिये तरोताजा हो जाते हैं। रंगों में भीगकर सारी थकान मिट जाती है। फिर पढ़ाई के लिये तैयार हो जाते हैं। त्योहार की खूबसूरती देखिए कि वक्त बदला है और तीज-त्योहारों के तौर-तरीके बदले हैं, मगर जो न बदला वह है होली का हुल्लड़। होली के गानों में थिरकते युवा और सकुचाते व सुरक्षित दूरी बनाती नव यौवनाओं की होली देखने लायक होती है।
ऐसा नहीं है कि रंग की तरंग भारत में ही है। भारत के पड़ोसी देश नेपाल और भारतवंशियों के प्रभाव वाले देश सूरीनाम, फिजी, मॉरीशस जैसे देश ही नहीं, दुनिया के सैकड़ों मुल्कों में होली जैसे कई त्योहार खूब धूमधाम से मनाये जाते हैं। मौके भले ही अलग-अलग हों, मगर रंग सब पर हावी होता है। रंगमय होने की होड़ होती है। हर जगह आदमी अपनी-अपनी पहचान भूलकर रंगमय होने की फिराक में होता है। इसके बावजूद हमें होली के मकसद को सच्चे अर्थों में समझना होगा। इसकी सामाजिक जरूरत को समझना होगा। हमें नयी ऊर्जा से भर के नयी सिरे से शुरुआत करने का मौका देता है यह त्योहार। खाने-पीने और मिठाइयां बांटने से जो मिठास हमारे रिश्तों में आती है उसे सालभर कायम रखने की जरूरत है। ब्रज में बरसाने की होली हो या आम लोगों की होली- मकसद यही है कि इस त्योहार में जीवन चटख रंगों में रंग जाए।
जरूरी है हम त्योहार के परिवेश को समझें। देखें कि कुदरत के आंचल में जो रंग-बिरंगे फूल महक रहे हैं हमारे भीतर भी वे महक भर जाएं। इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं कि बदलते वक्त के साथ त्योहार के तौर-तरीके भी बदले हैं। बदलाव प्रकृति का भी नियम है। समय के साथ-साथ कुछ बुराइयां भी आती हैं। ये स्वाभाविक बात भी है। मुनाफे के बाजार के बीच में आने से भले कुछ दिखावटी चीजें भी त्योहार में आ गई हों, मगर फिर भी त्योहार की आत्मा कायम तो रहनी चाहिए। ताकि होली का रंग हरेक जीवन में जीवंत रंग भर जाये।