सूर्य मंदिर की आभा में ओडिशा की संस्कृति का उत्सव
कोणार्क का सूर्य मंदिर और रेत कला महोत्सव ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह महोत्सव नृत्य, संगीत, और रेत कला के अद्वितीय संगम के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध है, जिसमें भारतीय शास्त्रीय नृत्य से लेकर समकालीन पर्यावरणीय संदेशों तक का समावेश होता है।
धीरज बसाक
यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित कोर्णाक का सूर्य मंदिर अपनी वास्तुकला और धार्मिक कला महोत्सव के आयोजन के लिए पूरी दुनिया में विख्यात है। साथ ही यह स्थान ओडिशा की समृद्ध नृत्य, संगीत और मूर्तिकला का केंद्र भी है। यहां के चंद्रभाग समुद्र तट पर, जहां कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष स्नान की परंपरा है, वहीं यह समुद्र तट ओडिशा के रेत कला महोत्सव के जरिये दुनिया के हर सांस्कृतिक पर्यटक का पसंदीदा स्थल है। कार्तिक पूर्णिमा के साथ ही ओडिशा में कला और संस्कृति की एक समूची शृंखला जीवंत हो उठती है। सर्दियाें में यहां देश-विदेश के सैलानियों की भरमार रहती है और उसी दौरान ओडिशा में मोहक सांस्कृतिक गहमागहमी भी रहती है। इन जीवंत कला महोत्सवों के जरिये ओडिशा का एक ऐसा अद्वितीय सांस्कृतिक रूप निखरकर आता है, जो दुनियाभर के सांस्कृतिक पर्यटकों को अपनी तरफ खींचता है।
इस शृंखला का सबसे महत्वपूर्ण आयोजन कोर्णाक का रेत कला महोत्सव है। हर साल आयोजित यह महोत्सव, इस साल 1 से 5 दिसंबर तक आयोजित किया गया। कोणार्क के इस विश्व प्रसिद्ध महोत्सव का आनंद लेने के लिए देश-विदेश के लाखों पर्यटक यहां पहुंचते हैं। इस सांस्कृतिक महोत्सव में सिर्फ ओडिशा के ओडिसी शास्त्रीय नृत्य का प्रदर्शन नहीं होता बल्कि 13वीं शताब्दी के इस सूर्य मंदिर की लुभावनी पृष्ठभूमि में समूचे भारत के शास्त्रीय नृत्यांे के प्रदर्शन की छटा बिखरती है। यह महोत्सव अपने अलौकिक और अविस्मरणीय अहसास के लिए जाना जाता है। पांच दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव में देशभर के कलाकार अपनी कला का उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं।
कोर्णाक के कला महोत्सव की भारत के प्रमुख कला महोत्सवों मंे गिनती होती है। इस दौरान यहां ओडिसी, भरतनाट्यम, कथक, कुचिपुड़ी, मणिपुरी और मोहिनीअट्टम जैसे सांस्कृतिक नृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं। भक्ति, प्रेम और कालातीत पौराणिक कथाओं पर सजी ये प्रस्तुतियां जब नरम और सुनहरी रोशनी से जगमगाते खुले मंच पर प्रस्तुत की जाती हैं तो लगता है इंद्र की अलकापुरी अगर वास्तव मंे होगी, तो ऐसी ही होगी। इस साल का कोर्णाक कला महोत्सव इस आयोजन का 35वां संस्करण है। इसमें सिर्फ भारत के कलाकार ही नहीं बल्कि अमेरिका के भी सांस्कृतिक कलाकारों हिस्सेदारी रही। कोर्णाक कला महोत्सव की नृत्य प्रस्तुतियां तो विश्व प्रसिद्ध हैं ही, हाल के सालों में इस महोत्सव ने जिस एक और वजह से दुनियाभर के सैलानियों को अपनी तरफ आकर्षित किया है, वह है- रेत कला की प्रस्तुति।
ओडिशा में जिस तरह कलाकार किसी भी विषय पर बिल्कुल जीवंत रेत की मूर्तियां बनाते हैं, वैसा पूरी दुनिया में और कहीं देखने को नहीं मिलता। ओडिशा की इस रेत कला ने पूरी दुनिया में रेत कला के विकास को प्रोत्साहित किया है। ओडिशा के महान रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक ने इस कला को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाया है और भारत को अपनी कला वैभव से विश्व में गौरवान्वित होने का अवसर दिया है। सच बात तो यह है कि सालों से अपनी मोहक नृत्य प्रस्तुतियों के लिए विख्यात कोर्णाक कला महोत्सव आज जितना नृत्य प्रस्तुतियांे के लिए विख्यात है, उससे कहीं ज्यादा रेत कला प्रस्तुतियों के लिए भी लोकप्रिय है। यहां न सिर्फ देश के कोने-कोने के नर्तक-नर्तकियां और रेत कला के कलाकार अपनी कला का उत्कृष्ट रूप प्रदर्शन के लिए एकत्रित होते हैं बल्कि अब पूरी दुनिया के कलाकार इसमें भाग लेने के लिए लालयित रहते हैं। रेत की मूर्तियों के माध्यम से समकालीन, सामाजिक, सांस्कृतिक और विशेष रूप से पर्यावरणीय संदेशों से सजा यह महोत्सव विश्व शांति, सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों को बार-बार अपनी आकर्षित करने वाली कला के माध्यम से केंद्र में लाता है।
इसके जरिये कोर्णाक के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को तो करीब से जानने का मौका मिलता ही है, यह भारत की सांस्कृतिक छवि को भी पूरे विश्व में बेहद सकारात्मकता से प्रदर्शित करता है। विदेशी सैलानियों के लिए यह महोत्सव महज ओडिशा की नहीं बल्कि समूचे भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और रचनात्मकता का आनंद लेने का मौका देता है। ओडिशा का सूर्य मंदिर वैसे भी दुनियाभर के सैलानियों के बीच ताजमहल के जितना प्रसिद्ध है। जो भी विदेशी सैलानी, खासकर जिसकी भारत की सभ्यता और संस्कृति को जानने में रुचि है, कोर्णाक का सूर्य मंदिर हमेशा सबसे ऊपर पहले तीन स्थानों में एक के रूप में दर्ज रहता है। यही वजह है कि इस डिजिटल युग में भी जब एक क्लिक में दुनियाभर की सांस्कृतिक गतिविधियों से दो-चार हुआ जा सकता है, संस्कृति प्रेमी यहां दौड़े चले आते हैं। इस डिजिटल युग में न सिर्फ विश्व विरासतें पूरी दुनिया के संस्कृति प्रेमियों को आकर्षित करती हैं बल्कि ये जगहें ग्लोबल संवाद का जरिया बनकर भी उभरी हैं। दुनियाभर के युवा इन जगहों में पहंुचकर सही मायनों में वैश्विक नागरिक होने का आनंद उठाते हैं। इ.रि.सें.