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काजू-कतली की हालत पतली, लड्डू हर दौर में भारी

06:43 AM Feb 15, 2024 IST
काजू कतली की हालत पतली  लड्डू हर दौर में भारी
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शमीम शर्मा

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शादी की बात सुनकर मन में जो लड्डू फूटता है उसके सामने तो काजू-कतली और कलाकन्द भी फेल हैं। यह बात और है कि जो शादी का लड्डू खाए वो पछताये और जो न खाये वो भी पछताये। शादियों में और कुछ हो न हो पर अपने यहां लड्डू जरूर बंटते हैं। शादी में बंटने वाली मिठाई को भाजी कहा जाता है और इस भाजी में लड्डू जरूर होते हैं। गांवों में तो आज भी इस बात पर कहासुनी हो जाती है कि हमने तो अपने पड़ोसियों को सवा सेर भाजी दी थी और उन्होंने सिर्फ आध सेर। खैर, अपने यहां खुशखबरी का मतलब है- लड्डू। कोई नया काम शुरू करो तो लड्डू, परीक्षा में अव्वल आओ तो लड्डू। सरकारी नौकरी लग जाओ तो आजकल कहा जाता है दोनों हाथ में लड्डू और सिर कढ़ाई में। यानी कि खुशी का डबल धमाका। सगाई, शादी, मंुडन, गृहप्रवेश, जन्मदिन, जमानत मिल जाये या बरी हो जायें तो लड्डू, किसी भी फील्ड में सफलता या धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन हो तो लड्डू। मीठा मुंह करवाने का मतलब ही लड्डू खिलाना है।
प्राचीन अभिलेखों की मानें तो सत्य यह है कि हलवाई ने लड्डू का आविष्कार नहीं किया। बल्कि यह श्रेय सर्जरी के जनक भारतीय चिकित्सक सुश्रुत को जाता है क्योंकि वे तिल, मूंगफली, गुड़, पौष्टिक बीज, जड़ी-बूटी, शहद और घी से बने लड्डुओं का इस्तेमाल अपनी औषधीय प्रक्रिया में किया करते थे। आजकल लड्डुओं की अनेकानेक किस्में हैं। मोतीचूर लड्डू, बेसन के लड्डू, तिल के लड्डू, मूंग दाल लड्डू, नारियल के लड्डू आदि। जाप्पे पर जच्चा के लिये पंजाब में पिन्नी, हरियाणा में गूंद के लड्डू बनाने का प्रचलन है। महाराष्ट्र में जाकर यही लड्डू मोदक हो जाता है। एक चतुर महिला ने रसोई का नुस्खा साझा करते हुए कहा कि लड्डू पर काजू लगायें और फिर उतार लें, खाने वाले को लगेगा कि काजू उतर गया होगा।
आम पब्लिक लड्डू पसंद करती है। इलेक्शन में झंडों-डंडों के साथ-साथ लड्डुओं की मांग भी उछाल खा जाती है। चुनाव सिर पर हैं। देखते हैं कि कौन-सी पार्टी को लड्डू बंटवाने का मौका मिलता है। एक लड्डू ने थाली में रखी बूंदी से पूछा तुम कौन, तो बूंदी बोली- ए मालिक तेरी बूंदी हम।
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एक बर की बात है अक नत्थू एक फूल लेकै रामप्यारी धोरै पहोंच ग्या। रामप्यारी उसकी बात सुणकै धड़ाधड़ रैपटे रसीद करण लाग्गी अर फेर उसकी कालर पकड़ कै जमीन पै ढा लिया अर सौड़ सी भर दी। आखिर मैं नत्थू अपणे कपड़ां की मिट्टी झाड़ते होये बोल्या- तो फेर ईब मैं इंकार समझूं?

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