सोनीपत में तहसीलदार व नायब तहसीलदार समेत 11 के खिलाफ मामला दर्ज
सोनीपत, 13 अगस्त (हप्र)
सोनीपत शहर में भू-माफिया द्वारा अधिकारियों से मिलीभगत कर बेशकीमती जमीन को कृषि भूमि दिखाकर काफी कम रेट पर रजिस्ट्री कराने का मामला सामने आया है। इससे सरकार को करीब 6 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ। मामले में खुलासे के बाद मुख्यमंत्री उड़नदस्ते की टीम ने तत्कालीन तहसीलदार, नायब तहसीलदार, गिरदावर, पटवारी, निगम के सहायक अभियंता समेत 11 को नामजद कराया है।
शहर के आईटीआई चौक के पास कस्टोडियन की 3 बीघा जमीन को लेकर मामला सामने आया था कि कलेक्टर रेट के हिसाब से 3 बीघा जमीन की कीमत करीब 5.20 करोड़ रुपये होती है, वहीं खुले बाजार भाव के हिसाब से जमीन की कीमत 17 करोड़ से अधिक है। तत्कालीन पटवारी राजेंद्र ने उस जमीन को कृषि भूमि बताकर मूल्याकंन 1.60 करोड़ रुपये करा दिया। साथ ही बाजार भाव के रूप में कीमत 2.30 करोड़ रुपये दर्शाई गई। बाद में वह सरकारी जमीन प्राइवेट लोगों के नाम हो गई है। उस सेल डीड को यह कहकर बनाया गया है कि उस जमीन को जिन लोगों को दिया गया है, उनका जमीन पर काफी समय से कब्जा था। वहीं तहसीलदार बिक्री के प्रतिनिधि का दावा है कि उस जमीन का आवंटन कुछ लोगों के पक्ष में किया गया है।
इस मामले की जांच के बाद अब मुख्यमंत्री उड़नदस्ते की टीम के सदस्य एसआई सुनील कुमार ने सिविल लाइन थाना पुलिस को दी शिकायत में बताया कि वर्तमान में 7 हिस्सों में विभाजित 3 हजार गज की जमीन की बिक्री में गड़बड़ी हुई। सुनील कुमार के बयान पर तत्कालीन तहसीलदार विकास, नायब तहसीलदार बलवान, पटवारी राजेंद्र, गिरदावर सुरेश कुमार, नगर निगम के सहायक अभियंता देवेंद्र, प्रॉपर्टी डीलर हरेंद्र सैनी, रामचंद्र, मामन, सतबीर, ओमी व रणधीर को नामजद किया गया है। आरोप है कि तहसीलदार पर अपनी देखरेख में जमीन की रजिस्ट्री कराई और एक परिवार ने कब्जा करके उसे अपने नाम करा लिया। सिविल लाइन थाना पुलिस जांच कर रही है।
एक महीने बाद ही टुकड़ों में रजिस्ट्री
विवादित जमीन का मालिक बनने के बाद हरेंद्र सैनी, रामचंद्र, मामन, सतबीर, ओमी, रणधीर आदि ने एक महीने बाद ही इस जमीन को बेचना शुरू कर दिया। इसे अलग-अलग लोगों को रिहायशी प्लाट दिखाकर रजिस्ट्री कराई गई। इसकी रजिस्ट्री 12 हजार रुपये प्रति गज के हिसाब से कराई। बाद में इसमें से तीन प्लाट व्यावसायिक बताकर 20 हजार रुपये प्रति गज के हिसाब से बेचे गए। एक प्लाट मालकिन अब यहां शोरूम बना रही है। मुख्यमंत्री उड़नदस्ते की टीम की जांच में सामने आया कि 20 मई, 2020 को हलका पटवारी राजेंद्र सिंह ने तहसीलदार सेल्स कार्यालय के पत्र के बाद मौके पर जाकर जमीन का निरीक्षण किया। जिसमें जमाबंदी में रामदिया 1/2 भाग और जागेराम को 1/2 भाग दर्ज होने पर इनका कब्जा माना। जमाबंदी वर्ष 2018-19 तक भी इनका नाम दर्ज है, जबकि रामदिया की मौत 1981 और जागेराम की मौत 1985 में हो चुकी थी। इसलिए रामदिया व जागेराम के वारिसों रामचंद्र, मामन, ओमी, सतबीर व रणधीर निवासी कबीरपुर का कब्जा माना। पटवारी ने इसे कृषि भूमि बताया था, जबकि गिरदावरी रिकॉर्ड अनुसार वर्ष 1999 से यहां कोई खेती नहीं हुई है। अधिकारियों ने भी पटवारी की रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज नहीं की। यहां खाली कमर्शियल प्लाट अंकित होने के बाद भी रिहायशी भूमि के चार्ज लेकर 25 सितंबर, 2020 को नो ड्यूज सर्टिफिकेट (एनओसी) दिया गया। जांच में आया कि जमीन व्यावसायिक रेट पर बेची जाती तो सरकार के खजाने में 5-6 करोड़ रुपये का राजस्व आता।
विवादित रही है जमीन, सरकार ने जीत लिया था केस
दिसंबर, 2004 में इसके आसपास की कॉलोनी को अधिकृत कॉलोनी में तब्दील किया जा चुका है। सोनीपत के संपत्ति कर रिकार्ड में वर्ष 2016-17 व 2020-21 के अनुसार यह जमीन खाली कमर्शियल प्लाट अंकित है। शहरी क्षेत्र के कलेक्टर रेट की सूची में सड़क के दोनों तरफ 100 फुट की गहराई तक कमर्शियल जगह मानी गई है। ऐसे में यह व्यावसायिक जगह है। यहां का व्यावसायिक रेट वर्ष 2020 में 17 हजार रुपये प्रति गज और रिहायशी रेट 12 हजार रुपये गज था। जबकि जमीन का बाजार भाव इससे काफी ज्यादा है। किंतु जब रजिस्ट्री संख्या 2709 कराई गई तो वह महज 4 हजार 843 रुपये गज के हिसाब से ही करा दी। सरकार को इससे 5 से 6 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ। इस जमीन पर हाईकोर्ट में केस लड़ा गया। जिसमें 5 अक्तूबर, 2018 को सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया गया था। उसके बाद भी जमीन आगे बेच दी गई।