लीव एनकैशमेंट के भुगतान के मामले में भेदभाव नहीं कर सकते
शिमला, 22 नवंबर (हप्र)
लीव एनकैशमेंट का भुगतान करने में सरकार बैक डेट से नियमित किए कर्मचारियों से भेदभाव नहीं कर सकती। अर्जित अवकाश सेवा लाभ का वह हिस्सा है जो कर्मचारी की नियुक्ति की तिथि से ही शुरू हो जाता है। यह बैक डेट नियमितीकरण चाहे न्यायालयों के आदेशों के तहत हो या अन्य किसी कारण से। सरकार कर्मचारी को समय पर नियुक्ति न देने की अपनी गलती के कारण परिणामी लाभ देने से इनकार नहीं कर सकती। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बैक डेट से नियमित किए गए कर्मचारियों को बड़ी राहत देते हुए उन्हें काल्पनिक रूप से नियमित होते ही अर्जित अवकाश के लिए पात्र घोषित किया।
न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ ने कमलेश कुमार परमार की याचिका को स्वीकारते हुए कहा कि याचिकाकर्ता अपनी सेवानिवृत्ति की तिथि पर अपने सेवा लाभों के प्रभाव के रूप में अर्जित अवकाश का हकदार था। इसलिए याचिकाकर्ता के स्वीकार्य अर्जित अवकाश की गणना उसकी बैक डेट से नियमितीकरण की तिथि से शुरू होगी, न कि उस तिथि से जब वह वास्तव में पद पर नियुक्त हुआ था। प्रार्थी को कोर्ट के आदेशानुसार बैक डेट से नियमित किया गया था। जिसके फलस्वरूप याचिकाकर्ता पुरानी पेंशन योजना के दायरे में आ गया, इसलिए नए सिरे से दस्तावेजीकरण प्रक्रिया शुरू की गई। इस प्रक्रिया में प्रतिवादियों ने 11 फरवरी 2021 को एक कार्यालय आदेश जारी किया, जिसमें उल्लेख किया गया कि याचिकाकर्ता 300 दिनों की राशि के स्थान पर 139 दिनों के अर्जित अवकाश के वित्तीय लाभ का हकदार है। अतः याचिकाकर्ता को अपने सेवानिवृत्ति बकाया के निपटान के लिए 161 दिनों के अर्जित अवकाश के लिए भुगतान की गई अतिरिक्त राशि लौटाने को कहा गया। यह आदेश वित्त विभाग के कार्यालय ज्ञापन दिनांक 6 जुलाई 2020 के तहत जारी किया गया। वित विभाग के इस ज्ञापन के अनुसार यह स्पष्ट किया गया था कि चूंकि अर्जित अवकाश का लाभ परिणामी लाभों का हिस्सा नहीं है और उक्त अवकाश को अलग नियमों यानी सीसीएस के तहत नियमित किया जाता है। सीसीएस नियम, 1972 में बैंक डेट से अर्जित अवकाश का लाभ देने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए ऐसे मामलों में जहां कर्मचारियों की सेवाएं बैक डेट से नियमित की जाती हैं, उन्हें बैक डेट से अर्जित अवकाश के संचय का लाभ स्वीकार्य नहीं है।
कोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए कहा कि इस कार्यालय ज्ञापन को पहले ही हाईकोर्ट की खंडपीठ खारिज कर चुकी है। इसलिए याचिकाकर्ता उस समय के अवकाश के वित्तीय लाभ पाने का हक रखता है जिसमें उसे बैक डेट से नियमित किया गया था।