युवाओं में कैंसर
निश्चित रूप से यह बेहद चिंता बढ़ाने वाला निष्कर्ष है कि भारत में कैंसर तेजी से युवाओं को अपनी चपेट में ले रहा है। जो हमारी जीवनशैली व खानपान की आदतों में आये बदलावों का भी सूचक है। दरअसल, कैंसर विशेषज्ञों के समूह द्वारा कैंसर मुक्त भारत फाउंडेशन के तहत एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया कि कैंसर तेजी से युवाओं को प्रभावित कर रहा है। अध्ययन बताता है कि देश में बीस फीसदी मामले चालीस वर्ष से कम आयु के पुरुषों व महिलाओं में पाए गए हैं। जिसमें साठ फीसदी मरीज पुरुष हैं। कैंसर के सबसे ज्यादा मामले सिर व गर्दन के कैंसर के हैं, जो करीब छब्बीस प्रतिशत बताए गए हैं। इसके बाद ये आंकड़े बताते हैं कि सोलह फीसदी मामले गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर के, पंद्रह फीसदी स्तन कैंसर तथा रक्त कैंसर के मामले नौ फीसदी हैं। कैंसर विशेषज्ञों का मानना है कि युवा पीढ़ी में बढ़ते कैंसर के खतरे की वजह तंबाकू व शराब का सेवन है। वहीं दूसरी ओर मोटापा भी एक बड़ा कारक है। जिसके मूल में युवाओं का निष्क्रिय जीवन भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि कैंसर के मामले बढ़ने की एक वजह प्रोसेस्ड भोजन का अधिक सेवन भी है। दुर्भाग्य से चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि दो तिहाई मामलों में कैंसर का पता तब चलता है जब तक उपचार में देर हो चुकी होती है। दरअसल, देश में कैंसर की समय रहते जांच कराने के प्रति उदासीनता के चलते भी इस जानलेवा रोग का देर से पता चलता है। ऐसे में सरकार और सामुदायिक स्तर पर कैंसर को लेकर देशव्यापी अभियान चलाने की जरूरत है। कम से कम लोगों को इस बात के लिये मानसिक रूप से तैयार किया जाए कि प्राथमिक संकेत मिलने पर समय रहते जांच तो करा ही लेनी चाहिए। स्वयं सेवी संगठन ग्रामीण इलाकों में जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को सचेत कर सकते हैं।
यही वजह है कि एक प्रमुख बहुराष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा समूह द्वारा हाल ही में जारी अपनी एक रिपोर्ट में भारत को ‘दुनिया की कैंसर राजधानी’ के रूप में वर्णित किया है। इसकी वजह हर साल कैंसर के लाखों मामले दर्ज किया जाना भी है। दरअसल, भारत में हर साल कैंसर के दस लाख नये मामले दर्ज किये जाते हैं। आशंका जतायी जा रही है कि यह वृद्धि वर्ष 2025 तक वैश्विक औसत को पार कर जाएगी। दरअसल, युवाओं के मामलों को संभालने के लिये एक विशिष्ट केंद्रित दृष्टिकोण की जरूरत होती है। यह देश के कामकाजी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। जिसके लिये उन्हें जीवनशैली में बदलाव के लिये प्रेरित किया जा सकता है। साथ ही प्रारंभिक अवस्था में कैंसर का पता लगाने वाली प्रभावी स्क्रीनिंग रणनीति को प्रोत्साहित करके संकट को दूर किया जा सकता है। सही मायनों में भारत को इस छद्म महामारी से मुकाबले के लिये अच्छी तरह से तैयार रहना होगा। यह खतरा बड़ा है और इसमें कैंसर की प्रभावी देखभाल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। समय की जरूरत है कि कैंसर विषयक अनुसंधान को विशिष्ट महत्व दिया जाए। विभिन्न अध्ययनों के निष्कर्ष कैंसर के प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालते हैं। मसलन शरीर में टैटू गुदवाने वाले लोगों में रक्त कैंसर होने का खतरा ज्यादा होता है। इस तथ्य को युवाओं तक पहुंचाने की आवश्यकता है। कैंसर के खिलाफ जागरूकता के लिये ऐसे कदम उठाने जरूरी हैं। एक बहुआयामी रणनीति ही भारत को सभी बीमारियों से मजबूती से लड़ने में मदद कर सकती है। दरअसल, कैंसर के संकट के मुकाबले के लिये हमारे खानपान में सुधार, सक्रिय जीवनशैली तथा तनावमुक्त जीवन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इस संकट में भारत के परंपरागत उपचार के तौर-तरीकों को भी तरजीह दी जानी चाहिए। साथ ही योग व प्राणायाम तथा प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति भी खासी कारगर साबित हो सकती है। कैंसर रोगियों का मनोबल ऊंचा रखा जाना भी एक उपचार का काम करता है।