कनाडा की जवाबदेही
यूं तो कनाडा की धरती से भारत विरोधी गतिविधियों की खबरें अक्सर आती रहती हैं लेकिन बीते सप्ताह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी निकालने की घटना ने सभी हदें पार कर दी। जो बताती है कि कनाडा में भारत विरोधी पृथकतावादियों के हौसले कितने बुलंद हैं और उन्हें सत्ता में शामिल लोगों का संरक्षण मिला हुआ है। चार जून को हुई इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद हर भारतीय राष्ट्रवादी उद्वेलित हुआ है। जिसके चलते भारत सरकार ने भी घटना का कड़ा प्रतिवाद किया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कड़े शब्दों में कहा है कि ये घटना न तो भारत-कनाडा संबंधों के लिये और न ही कनाडा के लिये ठीक है। यूं तो कहने के लिये भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरन मैक ने इस घटना की निंदा की है, और कहा है कि उनके देश में हिंसा व नफरत के महिमामंडन के लिये कोई स्थान नहीं है। लेकिन वहीं कनाडा सरकार के एक मंत्री ने भारत पर उसके अंदरूनी मामलों में दखल देने का कुतर्क दोहराया है। दरअसल, कनाडा को समझ नहीं आ रहा है कि चरमपंथ, पृथकतावाद और हिंसा की तपिश का ताप देर-सवेर उसे भी महसूस करना पड़ेगा। दुनिया के कई देशों ने ऐसे कृत्यों को संरक्षण की कालांतर कीमत चुकायी है। इस बात का अहसास कनाडा के हुक्मरानों को जितनी जल्दी हो सके, अच्छा है। दरअसल, कनाडा में अलगाववादियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि कभी वे पृथक देश के मुद्दे पर जनमत संग्रह की बात करते हैं, कभी भारतीय उच्चायोग को घेरते हैं, भारतीयों पर हमले करते तो कभी मंदिरों को निशाना बनाते हैं। जिसको देखकर भी कनाडा सरकार चुप्पी साध लेती है। दरअसल, अलगाववादी उस स्याह सच पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं जिसकी बड़ी कीमत पंजाब ने चुकायी है। बड़ी कुर्बानी देकर पंजाब आज शांत माहौल में प्रगति के नये आयाम स्थापित कर रहा है।
निस्संदेह, ऐसा भी नहीं है कि कनाडा में रहने वाले सारे भारतीय मूल के लोग अलगाववाद के पक्षधर हैं। आज कनाडा विकास के जो नये मानक स्थापित कर रहा है उसमें पंजाब के लोगों का बड़ा योगदान है। लेकिन सकारात्मकता और नकारात्मकता के बीच स्पष्ट विभाजन जरूरी है। विडंबना यह है कि वोट बैंक की पॉलिटिक्स के चलते कनाडा सरकार चरमपंथियों के खिलाफ कार्रवाई करने से गुरेज कर रही है। दरअसल, पंजाब मूल के लोगों के वर्चस्व वाले एक राजनीतिक दल का ट्रूडो सरकार की बैशाखी होना भी इस तरह की घटनाओं के प्रति वहां सरकार की अनदेखी की एक वजह है। इस दल में भी अलगाववादियों का दबदबा बताया जाता है। जाहिर है जब तक भारत कनाडा सरकार पर कूटनीतिक दबाव नहीं बनायेगा तब तक इन बेलगाम हरकतों पर काबू पाना मुश्किल होगा, तब तक ब्रैंपटन शहर जैसी परेड की घटनाएं दोहरायी जाती रहेंगी। जो किसी भी सभ्य समाज को परेशान करती रहेंगी। इतना ही नहीं कनाडा की धरती से जो भारत विरोधी गतिविधियों व अपराध का संचालन हो रहा है उसे रोकने के लिये भी केंद्र सरकार को सजग रहना होगा। वहीं दूसरी ओर कनाडा में पढ़ने गये सात सौ के करीब छात्रों के भविष्य को लेकर उठ रहे सवाल भी परेशान करने वाले हैं। एजेंटों की धोखाधड़ी से कनाडा गये ये छात्र पढ़ाई के बाद कनाडा में नौकरी भी कर रहे हैं। लेकिन जब उन्होंने स्थायी नागरिकता के लिये आवेदन किया तो पाया गया कि उनके कागज जाली थे। जिसके चलते कनाडा सरकार उन्हें वापस भारत भेजने का प्रयास कर रही है। जिसके खिलाफ ये छात्र आंदोलनरत हैं और इसकी सरगर्मी पंजाब में भी दिखायी दे रही है। हालांकि, कनाडा के प्रधानमंत्री ने मामले के न्यायसंगत समाधान का वायदा किया है लेकिन इन छात्रों के भविष्य पर तलवार तो लटक ही रही है। निश्चित रूप से घटना के आलोक में पंजाब में सक्रिय एजेंटों व इमिग्रेशन एजेंसियों पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है। अन्यथा इस तरह की घटनाओं से दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा पर आंच आएगी। छात्रों को भी चाहिए कि विदेश जाने के सम्मोहन में वे अपने प्रमाणपत्रों की जांच-परख करने से न चूकें।