कछुओं को बचाने की मुहिम
के.पी. सिंह
क्या आपको मालूम है कि इस धरती में सबसे पहले से कौन रह रहा है? जी हां, ये कछुआ है, जो 20 करोड़ साल से भी पहले से इस धरती पर विचरण कर रहा है, जब न तो सांप थे, न पंछी थे, न छिपकलियां और शायद हम भी नहीं। इस तरह से देखें तो धरती में कछुआ सबसे पुराना जीव है, इसलिए वह हमारा सबसे पुराना पुरखा है। कछुओं की सैकड़ों प्रजातियां होती हैं, उनके दर्जनों आकार होते हैं। 4 इंच का छोटा कछुआ भी इस धरती में मौजूद है और 2 मीटर लंबा कछुआ भी इस धरती का बाशिंदा है। कछुओं को इंसान इसलिए भी जानता है, क्योंकि कछुए सबसे ज्यादा दिनों तक जीने वाले प्राणी हैं। कछुओं का औसतन जीवनकाल 170 से 188 वर्ष तक होता है। कछुए इस धरती में डायनासोरों को अपने सामने विलुप्त होते हुए देखा और खुद जिंदा बच गये। जरूर उनके पास डायनासोरों के खात्मे का राज होगा। वैज्ञानिक हैरान हैं कि समुद्री कछुओं के पास प्राकृतिक रूप से अपना एक ऐसा जीपीएस सिस्टम होता है, जो न सिर्फ उसे रास्ता दिखाता है बल्कि इसकी बदौलत वे अपने चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र को भी महसूस करते हैं।
पिछली सदी के आखिरी तक ऐसी स्थितियां हो गई थीं कि जीव वैज्ञानिकों को लगा कि कहीं कछुए इतिहास का हिस्सा न हो जाएं। तभी अमेरिका में एक कछुआ बचाव संगठन ‘अमेरिकन टर्टाइज रेसक्यू’ (एटीआर) स्थापित हुआ और इसके वॉलियंटर धरती के इन पुरखों की सुरक्षा के लिए आगे बढ़कर आये। एटीआर ने करीब 5000 कछुओं को बचाकर उन्हें नये घरों में सुरक्षा और संरक्षण प्रदान किया। साल 2000 में इस संगठन ने पारिस्थितिकी विशेषज्ञों के साथ मिलकर वैश्विक स्तर पर इस जागरूकता का प्रसार किया कि अगर कछुए धरती से गायब हो गये तो पारिस्थितिकी की सबसे पुरानी और जीवंत कड़ी गायब हो जायेगी। इस चिंता के तहत हजारों कछुआ पालकों को प्रेरित किया गया कि वे कछुओं की सुरक्षा और संरक्षण में सहयोग करें।
इन प्रयासों से कछुओं के संरक्षण का काम शुरू हुआ। इसी संगठन ने साल 2000 में 23 मई को कछुओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिए दुनिया का ध्यान खींचने हेतु विश्व कछुआ दिवस मनाना शुरू किया। पिछले 24 सालों से 23 मई को पूरी दुनिया में कछुआ दिवस मनाया जाता है। हर साल इस दिन की एक विशेष थीम होती है। जैसे साल 2023 की थीम थी- ‘आई लव टर्टल’ जो लोगों को कछुओं के घटते और खत्म होते आवासों तथा लुप्त होती कछुओं की विशिष्ट प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए प्रेरित और जागरूक किया था। कछुए वास्तव में ऐसे सरीसृप हैं, जो दुनियाभर में विभिन्न प्रकार के वातावरण में जीवित रहते हैं। कछुओं को लेकर यह धारण बनाना गलत है कि वह सिर्फ पानी या समुद्र में ही रहते हैं। कछुए हर तरह के वातावरण में सर्वाइव कर लेते हैं। कम पानी वाली जगहों पर भी कछुए रह लेते हैं। कछुआ एक शानदार प्राणी है और इसकी 300 प्रजातियों में से 129 प्रजातियां लुप्त हो गई हैं बाकी प्रजातियां भी लुप्त न हों, इसके लिए दुनियाभर के कछुआ प्रेमी, पारिस्थितिकी विशेषज्ञ और जीव वैज्ञानिक धरतीवासियों से कछुओं को बचाने की प्रार्थना करते हैं। इस साल विश्व कछुआ दिवस की थीम है- लेट्स पार्टी। दरअसल इस थीम का मतलब है आओ कछुओं को बचाने की मुहिम का आनंद उठाएं। विश्व कछुआ दिन पर न सिर्फ हमें खुद कछुओं के बारे में जागरूक होना चाहिए बल्कि बच्चों को विशेष तौर पर कछुओं के महत्व को बताना चाहिए।
भारत दुनिया के उन कुछ गिने-चुने देशों में से एक है, जहां कछुओं की कई प्रजातियां पायी जाती हैं। गोवा के गलगीबागा तथा पुरी के समुद्रतट पर कछुओं के संरक्षण के लिए उन्हें अंडे देने हेतु घोसले बनाये जाते हैं और जब तक उन अंडों से फूटकर बच्चे नहीं निकल आते, उनकी देखरेख की जाती है। हमें लुप्त होते कछुओं के महत्व को समझते हुए इनके संरक्षण पर अपना योगदान देना चाहिए।
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